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जैन मक्तिकाव्यकी पृष्ठभूमि
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नीचे लटकने लगीं । पके हुए आमोंसे पुत्रोंकी भूख शान्त हुई। उधर गिरिनगर ग्राममें आग लग गयी और अग्निलाके घरको छोड़कर सभी जल गये । भूखे ब्राह्मण वहाँपर ही लौटकर आये और अग्निलाके पुण्य तथा शीलकी प्रशंसा की । अनेक ब्राह्मणोंने भोजन किया फिर भी भोज्य पदार्थोंका भण्डार अक्षय रहा। इस घटना से प्रभावित हो पति पत्नीको लेनेके लिए पर्वतपर गया, किन्तु उसके भावको दूषित अनुमान कर अग्निला पुत्रोंसहित पर्वतकी शिखासे झम्पापात कर मर गयी । वह ऋद्धिशालिनी यक्षी हुई । इस दुःखसे दुःखी पति भी मर गया और वह देवीका वाहन सिंह बना ।
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पुण्यास्रव कथाकोषकी एक प्राचीन प्रतिमें 'यक्षी - कथा' के शीर्षकसे अम्बिकाकी कथा हो निबद्ध है । कथानक वादिचन्द्रकी कथा जैसा ही है, केवल सोमशर्मा राज-पुरोहित न होकर गिरिनगरका एक साधारण वेदपाठी ब्राह्मण है, और जैन मुनिका नाम ज्ञानसागर न होकर वरदत्त दिया हुआ है ।
भट्टसूरकी चतुविशतिका में 'अम्बिकादेवीकल्प' नामका एक अध्याय है । उनके अनुसार सोमशर्मा सौराष्ट्र देशके कोडीनगरका रहनेवाला था । उसकी पत्नीका नाम अम्बिका था। उसके सिद्ध और बुद्ध दो पुत्र थे । पितृ श्राद्ध के दिन पत्नीने ब्राह्मणोंसे पहले एक मासोपजीवी जैन भिक्षुको आहार दे दिया । अम्बिकाकी सास, जो स्नान करने गयी थी, जब लौटकर आयी और इस आहारदानको जाना तो स्वयं क्रुद्ध हुई, और अपने पुत्रसे भी सब वृत्तान्त कह दिया । उसने पत्नीको घरसे निकाल दिया। वह सिद्धकी अंगुली पकड़, बुद्धको गोद में ले, एक ओर चल दी । मार्ग में जब पुत्रोंको प्यास लगी, तो सूखा तालाब जलसे भर गया और जब भूख लगी, तो आम्रका वृक्ष फलोंसे लद गया । इधर अम्बिकाके सासरे में एक स्त्रीने उच्छिष्ट भोजन बाहर फेंका, तो वह स्वर्णमय हो गया । सासने इसे सुलक्षणी बहूका पुण्य प्रभाव समझा, बहूको वापस लानेके लिए पुत्रको भेजा, किन्तु अम्बिका उसे आता देख भयभीत हुई और एक कुऍमें जा गिरी। मरकर सौधर्म स्वर्गसे चार योजन नीचे कोण्ड विमानमें अम्बिका नामकी देवी हुई । विमानके नामसे वह कोहण्डी कहलायी । इस दुःखसे पति भी मरा और आभि
१. वादिचन्द्र, अम्बिका-कथा : ३२ वाँ श्लोक 1
२. बहीं : ४३वाँ श्लोक |
३. देखिए वही : ४८वाँ श्लोक ।