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जैन-मक्तिकाम्बकी पृष्ठभूमि मूर्तियां एक दूसरेके सामने खड़ी हैं।'
चन्द्रगिरि पर्वतपर 'कत्तले बस्ति' नामका एक मन्दिर है । कोई खिड़की आदि न होनेसे इसमें अंधेरा अधिक रहता है, इसीलिए इसे अन्धकारका मन्दिर (कत्तलेबस्ति ) कहते हैं । इसका निर्माण मंत्री गंगराजने अपनी माता पोचब्बेके लिए सन १११८में करवाया था। इसके बरामदेमें पद्मावती देवीको मत्ति है। जान पड़ता है इसीसे इसका नाम 'पद्मावती बस्ति' पड़ गया है ।
नालन्दा ( पास ) के जैन-मन्दिर में प्रवेश करते ही, दाहिनी ओरके एक आलेमें, लगभग डेढ़ फुटकी एक सप्तफणी पार्श्वनाथकी प्रतिमा अवस्थित है। उभय पार्श्वमें चमरधारी पार्श्वद् खड़े हैं और निम्न भागमें चतुर्भुजो देवी पद्मावतीकी मूत्ति है। पूनामें श्री आदीश्वरका मन्दिर है, इसमें पांच मूर्तियाँ विराजमान हैं । मुख्य मूत्ति श्री आदीश्वर भगवान्को है । इसी मन्दिर में एक मूर्ति श्री पद्मावती देवीकी भी है, जो फूलों और सुन्दर वस्त्रोंसे सुसज्जित है। नागपुरके श्री दिगम्बर जैन केवीबाग़-मन्दिरमें पद्मावती देवीको एक काले पाषाणको मूर्ति है, इसपर किसी भाँतिका कोई लेख और चिह्न नहीं है । वर्धा जिलेके सिन्धी ग्राममें, दिगम्बर जैनमन्दिर में, एक अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण पद्मावतीको खड़ी प्रतिमा भूरे पत्थरपर उत्कीर्ण है। जैन वाङमयमें देवी पद्मावतो
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चौदह पूर्वोमें एक विद्यानुवाद नामका पूर्व भी था, जिसका टूटा-फूटा रूप विद्यानुशासन ग्रन्थमें पाया जाता है। इसके रचयिता मुनि सुकुमारसेन ( लगभग ८वीं शतो वि० सं० ) हैं। इस ग्रन्थमें चार कल्प हैं, जिनमें सबसे पहला 'भैरवपद्मावतीकल्प' है। इसमें धरणेन्द्र और पद्मावतीको मन्त्रके अधिष्ठातृ देवताके रूपमें स्वीकार किया गया है। श्री भद्रबाहु स्वामीके 'उवसग्गहर
1. जैनशिलालेखसंग्रह : प्रथम माग, शिलालेख नं० १२४।३२७, भूमिका
प०४३-४४।। २. देखिए वही : भूमिका, पृ० ५-६ । ३. मुनि कान्तिसागर, खोजकी पगडण्डियाँ : पृ० १९९ । ४. Jain Antiquary, Vol. XVI. No. I, June 1950, p. 20 . ५. जैनसिद्धान्तमास्कर : भाग २०, किरण २, दिस० १९५३, पृ० ५१ । ६. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैमव : पृ०४०, पाइटिप्पण ।।