Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 167
________________ भाराध्य देवियाँ १४५ स्तोत्त' का प्रारम्भ भगवान पार्श्वनाथ और पार्श्वयक्षकी स्तुतिसे हुआ है । इस स्तोत्रकी वृत्तिसे स्पष्ट है कि धरणेन्द्र और पद्मावतीकी सहायतासे हो श्री भद्रबाहु स्वामीका संघ एक व्यन्तरके घोर उपसर्गसे बच सका था ।' यह स्तोत्र धरणेन्द्र और पद्मावतीको भक्तिका द्योतक है । भद्रबाहु स्वामो भगवान् महावीरके १७० वर्ष बाद, अर्थात् विक्रमसे ३०० वर्ष पूर्व हुए हैं । भगवती सूत्रके पृष्ठ २११ पर भी पद्मावतीका उल्लेख है। श्री पादलिप्तसूरिकी निर्वाणकलिका-पृ० ३४ और श्री यतिवृषभको तिलोयपण्णत्ति प्रथम भाग ( ४१९३६ ) में भी देवो पद्-.. मावतीके उद्धरण उपलब्ध होते हैं । निर्वाणकलिका ईसाकी तीसरी शताब्दीका . ग्रन्थ है और तिलोयपण्णत्ति विक्रमकी छठी शताब्दीका। ..... . विक्रमकी ९वीं शताब्दीके भगवज्जिनसेनाचार्यने 'पाश्र्वाभ्युदय' का निर्माण किया था। इसमें धरणेन्द्र और पद्मावतीका वर्णन है । श्री वादिराजसूरिने वि० सं० १०८२ में पार्श्वनाथचरित्रकी रचना की थी। इसमें कमठवाली कथाका सन्निवेश हुआ है । धरणेन्द्र और पद्मावतीका पूरा वर्णन है। श्वेताम्बर आचार्य भावदेवसूरिका भी एक पार्श्वनाथचरित्र है, जिसमें यथास्थान पद्मावती और धरणेन्द्रका जीवन निबद्ध है। मल्लिषेणसूरि ( ११वीं शतीका अन्त और १२वींका आरम्भ ) ने भैरवपद्मावती कल्पकी रचना की थी, जो देवी पद्मावतीसे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ १. भद्रबाहु स्वामी, उवसग्गहरस्तोत : जैनस्तोत्रसन्दोह : द्वितीय भाग, पृ० १-१३। Dr. Jagdish Chandra Jain, Life in Ancient India, As depicted in Jain Canons. p. 226. उन्होंने यह उद्धरण गच्छाचार वृत्ति : पृ० ९३-९६ से लिया है। २. जैनस्तोत्रसन्दोह : द्वितीय भाग, भूमिका, पृ०४-५ । ३. फतेहचन्द बेलानी, जैनग्रन्थ और ग्रन्थकार : जैनसंस्कृति-संशोधन-मण्डल, बनारस, १० २। ४. पं० जुगलकिशोर मुख्तार, पुरातन जैनवाक्य-सूची : सरसावा, भूमिका, ५. डॉ. विण्टर नित्सके अनुसार श्री भावदेवसूरि १२५५ ई० में हुए हैं। देखिए-History of Indian Literature, Vol. II. p. 512-13. ६: यह अन्य श्री हरगोविन्द दास और पं० बेचरदास-द्वारा संपादित होकर बनारससे सन् १९१२ ई० में प्रकाशित हो चुका है।

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