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जैन- भक्ति के भेद
अंगोंकी वन्दना की है ।
श्रुतभक्तिका फल
श्री उमास्वाति ने लिखा है कि 'तत्त्वार्थसूत्र' को एक बार पढ़नेसे हो, पूरे दिनके उपवासका फल मिलता है ।
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आचार्य कुन्दकुन्दका कथन है कि 'समयप्राभृत' को पढ़कर, जो उसके अर्थमें स्थित होगा, वह उत्तम सुख, अर्थात् मोक्षका सुख प्राप्त करेगा ।
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जो 'परमात्मप्रकाश' का प्रतिदिन नाम लेते हैं, उनका मोह दूर हो जाता है, और वे त्रिभुवनके नाथ बन जाते हैं ।"
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'सर्वार्थसिद्धि' को भक्तिपूर्वक सुनने और पढ़नेसे परमसिद्धि प्राप्त होती हैं, फिर देवेन्द्र और चक्रवर्तीके सुखका तो कहना ही क्या है।
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१. सिद्धवरसासणाणं सिद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं । काऊ णमुक्कारं भत्तीए समामि अंगाई ||
देखिए वही : आचार्य कुन्दकुन्द, प्राकृत श्रुतभक्ति : पहली गाथा, पृ० १२१ । २. दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति ।
फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवैः ॥
बृहज्जनवाणीसंग्रह, पं० बाकलीवाल संपादित, सम्राट् संस्करण, वी० नि० सं० २४८२, तवार्थसूत्र : अन्तिम ४था श्लोक, पृ० २२५ । जो समयपाहुडमिणं पडिहूणं श्रत्थतच्चओ गाउं ।
अत्थे ठाही चेया सो होही उत्तमं सोक्खं ॥
कुन्दकुन्द, समयसार : पं० परमेष्ठीदास, हिन्दी-अनूदित, श्री पाटनी दि० जैन ग्रन्थमाला, मारौठ, मारवाड़, फरवरी १९५३, ४१५वीं गाथा, पृ० ५६१ । ४. जे परमप्प - पयासयहं श्रणुदिणु णाउ लयंति ।
तुइ मोहु तडति तहँ तिहुयण-नाह हवंति ॥
योगीन्दु, परमात्मप्रकाश श्री आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये सम्पादित, श्री रामचन्द्र जैन - शास्त्रमाला, श्री परमश्रुतप्रभावकमण्डल, बम्बई, १९३७ ई०, २।२०६, पृ० ३४२ ।
५. तत्त्वार्थवृत्तिमुदितां विदितार्थतस्वाः शृण्वन्ति ये परिपठन्ति च धर्मभक्त्या | "हस्ते कृतं परमसिद्धिसुखामृतं तैर्मर्त्यमरेश्वरसुखेषु किमस्ति वाच्यम् ॥ आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि : पं० फूलचन्द्र सम्पादित, मारतोय ज्ञानपीठ, काशी, वि० सं० २०१२, पृ० ४७४ ।