Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 155
________________ ११३ नन्दीश्वर-भक्तिकी परिभाषा नन्दीश्वर-द्वीपके अकृत्रिम जिन-मन्दिरों और उनमें विराजमान जिनप्रतिमाओंकी पूजा-अर्चा करना, नन्दीश्वर-भक्ति कहलाती है । कात्तिक, फाल्गुन और आषाढ़के अन्तिम आठ दिनोंमें, सौधर्म प्रमुख विवुधपति, नन्दीश्वर-द्वीपमें जाते हैं और दिव्य अक्षत, गन्ध, पुष्प और धूप आदि द्रव्यसे उन अप्रतिम प्रतिमाओंकी पूजा करते हैं। मध्यलोकके अन्य द्वीपोंके साधारण जीव वहाँ नहीं जा सकते । वे यहाँपर ही अपने मन्दिरोंमें नन्दीश्वर-द्वीपका चित्र बनाते हैं, और अप्रत्यक्षरूपसे प्रतिमाओंको स्थापना करके पूजा-अर्चा करते हैं। यह ही नन्दीश्वरभक्ति है। आचार्य पूज्यपादने इसी भक्तिमें ८ प्रातिहार्य और ३४ अतिशयोंका वर्णन किया है। अष्टाहिक-पर्व उपरोक्त ८ दिनोंमें किया जानेवाला समारोह और पूजन आदि अष्टाह्निक-पर्व कहा जाता है। इन दिनों सौधर्म-स्वर्गका इन्द्र नन्दीश्वर-द्वीपको प्रतिमाओंका अभिषेक करता है। अन्य इन्द्र भी, उसके इस कार्य में सहायक बनते हैं। उनकी महादेवियां अष्ट मंगल-द्रव्य धारण किये होती हैं । अप्सराएँ नृत्य करती हैं। इस पूजा-वभवका वर्णन बृहस्पति भी नहीं कर सकता । श्री रविषेणाचार्य (वि० सं० ७३३ ) ने पद्मपुराणमें लिखा है, "आषाढ़ शुक्ला अष्टमीसे पूर्णिमा तकके लिए, अष्टाह्निका-पर्वका आरम्भ करते हुए, महा१. आषाढकार्तिकाख्ये फाल्गुनमासे च शुक्लपक्षेऽष्टम्याः । आरभ्याटदिनेषु च सौधर्मप्रमुखविवुधपतयो भक्त्या ॥ तेषु महामहमुचितं प्रचुराक्षतगन्धपुष्पधूपैर्दिन्यैः । सर्वज्ञप्रतिमानामप्रतिमानां प्रकुर्वते सर्वहितम् ॥ आचार्य पूज्यपाद, संस्कृत नन्दीश्वरमक्ति : दशमक्त्यादिसंग्रह : श्लो० १३-१४, पृष्ठ २०९। २. देखिए वही : श्लोक ३८-५९, पृष्ठ २१७-२२३ । ३. भेदेन वर्णना का सौधर्मः स्नपनकर्ततामापनः। . परिचारकमावमिताः शेषेन्द्रारुन्द्र चन्द्रनिर्मलयशसः ॥ मालपात्राणि पुनस्तदेव्यो विनति स्म शुमगुणान्याः । अप्सरसो नर्तक्यः शेषसुरास्तत्र लोकनाध्यप्रधियः । देखिए, वही : श्लो०१५-१६, १० २१०।

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