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कल्पता है । शौच जाने की जगह अच्छी न हो, उपाश्रय में जीवोत्पत्ति हो, कुंथुवे हुए हों, अथवा आग लग गयी हो, सर्पादि का भय हो तो वहां से अन्यत्र विहार कर सकते हैं। यदि निम्न कारण हों तो चातुर्मास के बाद भी रहना कल्पता है । वृष्टि बन्ध न होती हो, और मार्ग कीचडवाला हो तो कार्तिक पूर्णिमा के बीतने पर भी उत्तम मुनि वहां रह सकते हैं। ऊपर कथन किये उपद्रवादि दोष न हों तथापि संयम निर्वाह के लिए क्षेत्र के गुणों की गवेषणा करना युक्ति संगत है। क्षेत्र जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम एवं तीन प्रकार का कहा है। उसमें जो चार गुणयुक्त हो वह जघन्य कहा जाता है। वे चार गुण इस प्रकार हैं-जहां पर जिनमंदिर हो, जहां पर स्थंडिलशौच जाने की शुद्ध और निर्जीव एवं परदेवाली जगह हो, जहां स्वाध्याय करने की भूमि सुलभ हो और जहां पर मुनियों को आहार पानी सुलभता से मिल सकता हो । जो तेरह गुणों से युक्त हो वह क्षेत्र उत्कृष्ट कहा जाता है। वे तेरह गुण ये हैं- (१) जहां पर विशेष कीचड़ न होता हो, (२) जहां पर अधिक संमूच्छिम जीव उत्पन्न न होते हों, (३) शौच जानेका स्थान निर्दोष हो, ( ४ ) रहने का उपाश्रय स्त्रीसंसर्गादि से रहित हो, (५) गोरस अधिक मिल सकता हो, (६) लोकसमूह विशाल और भद्रिक हो, (७) वैद्य मद्रिक हो, (८) औषधी सुलभ हो, ( ९ ) गृहस्थों के घर सकुटुम्ब और धन धान्यादि से पूर्ण हों, (१०) राजा भद्रिक हो, ( ११ ) ब्राह्मणादिकों से मुनियों का अपमान न होता हो, (१२) भिक्षा सुलभ हो और (१३) जहां पर स्वाध्याय शुद्ध होता हो। इन तेरह गुणों युक्त उत्कृष्ट क्षेत्र जानना चाहिये। पहले कथन किये चार गुणों से अधिक अर्थात्
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