Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ (११) प्रीतम विरचे नही॥रए॥श्लोक ॥कोकिलानां खरं रूपं,वनेरूपंतपस्वीनां ॥ विद्यारूपं कुरूपाना, नारीरूपं पतिव्रता ॥२०॥ चोपा॥ विचविच मनराखे वैराग, शील, प्रताप घणो सोनाग ॥ दान शील तप जाव विचार, धरे धर्म मन चार प्रकार ॥१॥ श्राराधे अरिहंत नवकार, जीव दया जयणा सुविचार ॥ वर्जे जीव मारता लोक, इण दृष्टांते सांजलो श्लोक ॥२२॥ यद्यद त्कांचनंमेरु,कृत्स्नांचे ववसुंधरां॥एकस्य जिवितां दद्या, नच तुख्यांयुधिष्टिर ॥२३॥चोपा ॥जाणे एह संसार असार, जुख अनेक तणो नंमार ॥ वीतरागनां धर्म विहीण, मुगति न पामे को मति लीण ॥२४॥ साधु सुगुरु सेवा सुविशाल, पात्र दान दीजें जजमाल॥ जन्मथयो गोवालने घरे, शछि लहे शालिननी परें ॥२५॥ सूधो शील मुगति दातार शील विना पामे नही पार॥ शू बितें सिंहासन थयुं, शेठ सुदर्शन संकट गयुं ॥ ॥ २६ ॥ शील प्रताप सुनमा सती, चालणि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114