Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ (५३) बहुत कीया अन्याय ॥ मे ॥ ऐसा फुःख हरि चंदका रेहां, क्युं करी कहेणां जाय ॥ १५ ॥ मे ॥ सुखीयां तो माने नहीं रे हां, कनकसुंदर कहे जोय ॥ मे ॥ सोई सत्य करी मानशे रे हां, जिसने वीती होय ॥ १६ ॥ मे ॥ ॥दोहा॥ ॥ नारि वचन प्रमाण करि नृप उठ्यो परजात ॥ पहोतो मारग मांगवी, करम तणे अवदात ॥१॥ सुंदरि शिर मूकी तृणो, श्म दाखे तिणि वार ॥ व्यो कोई उत्तम पुरुष, वेचं माहरी नारि ॥२॥ ॥ ढाल ॥ पांचमी राग धन्याश्री॥नोलीडा हंसारे विषय न राचीयें ॥ ए देशी ॥ तव एक ब्राह्मण आयो तिण समे, पूजे नृ पने रे सोय ॥ मोल सुणावो रे मुजने नारिनो, लाख मोहर एक होय ॥ १॥ नारी वेचेरे हरि चंद पापणी, सहस ग्यारेरे दाम॥एत्रांकणी॥ सही सूधेरे देशुं एहना, जोडे ताहरे काम ॥ ॥ ना ॥ २॥ राये मान्या दीधा वेगशें, खेर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114