Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 65
________________ (६३) शरीरमें, शील न खंखें सारो जी ॥२२॥ शी॥ कुवचन ब्राह्मण उष्टना,राणी मन न सुहायां जी॥ दशमी ढाल वसंतनी, कनकसुंदर गुणगायाजी॥ ॥दोहा॥ ॥ वचन इस्या राणी प्रतें,बोल्यो विप्र विपुण्य॥ दाधा उपर फोफडो, जाणे नेल्यो खूण ॥१॥ राजाने राणी तणा,कर्म तणी गति जोय ॥ एक एक ढुंती अधिक, फुःखमांहे फुःख होय ॥२॥ कुवचन ब्राह्मण पुष्टनां,सुणि दव लागो शरीर ॥ शीयलशुं अढमन सुंदरी, कहे सुणो वड वीर ॥ ॥ ढाल ग्यारमी ॥ राग वैराडी ॥ जलालियानी ॥ ए देशी ॥ ॥ वचन सुणी ब्राह्मण तणारे,कहेवा लागी एम ॥वीरा ब्राह्मण ॥चतुर माणस तुमें एहवा रे, कथन कहीजें केम ॥१॥ वी० ॥ ए आंकणी ॥ शील न खंॐ काया खंमगुंरे,पडी रे पटोले गांठ ॥ विण ॥ लोहे लोह पड़ी जिसीरे, परबति राय परांठ ॥२॥ वी० ॥ शील सबल हीरा जिस्योरे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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