Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 63
________________ (६१) पुःख दंदोजी ॥ ७॥ शी० ॥ टीकी काजल रा खडी, गोहीरा जिम गाढे जी॥ परड पाश्ल पग वीडीया, मेखलडी कडि वाढे जी ॥ ॥ शी० ॥ विरहे व्याकुल विरहणी, विरह वसंत शत व्या पेजी॥ काया कापडा दरजी ज्युं, कातरणी तन कापे जी ॥ ए ॥ शी० ॥ फूल्या मरवा मोघरा केसु चंपक फूल्यो जी॥ जाणी दावानल जिस्यो, ज्वालानलनी फुल्यो जी ॥ १० ॥ शी० ॥ देखी सरोवर जल नस्यो, सेतो लहर हलूरोजी॥ काल नुजंगम फणफटी, मूके फूक फररोजी ॥ ११ ॥ ॥ शी० ॥ प्राण पीयारे कंतविना, सविसुख तन न सुहायो जी॥कोकिल मोर पपीयडा, प्रशमन ज्यु ऽखदायों जी ॥१॥ शी० ॥ उदासीन राणि रहे, बूटे वेणी दंमो जी ॥ जोगिण ज्युं पियुपियु जपे, पाले शील अखंमो जी ॥ १३ ॥ शी० ॥ बह अहम मास खमण करे, घृत विख जेम वि कारोजी॥अरिहंतदेव आराधती,ध्यान धरे नव कारो जी ॥ १४ ॥ शी० ॥ रूप अनुपम सती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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