Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAM Asia TOSTERhdoorsGOOTEReasooTEGOR कनकसुंदर विरचित. श्री हरिया राजानो रास. ahishasdildarliardinidinahodadachtensidiardandidahandidadadlatolodstdai तेने द्वितीयावृत्तिने तेनं सर शील महात्म्य रूप जाणीने पथामति संशाधन करी. श्रावक नीमसिंद माणकें ॥ श्री मुंबईमां॥ निर्णयसागर मेसमा छपाच्यो छे. संवत् १९५३. सन १८९७. PSIgOGRESIDEBEEGeegRECIGADEDICgeee SCREEP egEALESOLIDEReigencegRECEPHEDASHEECREDY Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवीतरागायनमः अथ श्री हरिचंदराजानो रास प्रारंनः ॥दोहा॥ ॥ पास जिनेसर पाय नमी, थंजण पुर थिरवास ॥ जुग जुगमांहें दीपतो, पूरे वांबित आश ॥१॥ अदि लखे कुण एहनी, वर्ष ग्यारे लद ॥ वर्णत पछिम देवता, कीधी पूज प्रत्यद ॥२॥ एंसी सहस वर्ष अचल, सेवा कीधी सार ॥ वासुक विष हरता हरि, प्रनु पाता ल मकार ॥३॥ पछिम महोदधि पाखती, पूज्यो राजा राम ॥ सात मास नव दिवस प्रति, तेहनां सीधां काम ॥४॥ नारायण बहु दिन नम्यो, बार वरस करी पत्त ॥ छारिका दाह जले वशे, प्रगट्यो सायर दत्त ॥ ५॥ कांति न गरी प्रगटीयो, योगी नागार्जुन ॥सेढी तट सीधो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिहां, सोवन पुरिस रतन्न ॥६॥ वेबु अंतरें जिनवरू, रह्यो विबुझ तरु गूढ ॥ तुरत गया तस देहथी, गाली अढारे कोढ ॥ ७॥ त्रिनु वन पति तारण तरण, खंज नयर अहिगण ॥ सकल मूरति प्रज्जु निरखीया, जीवत जन्म प्र माण ॥ ७ ॥ हुं शरणे आव्यो हवे, अशरण शरण जिणंद ॥ सन्निध्यकारी तुं सदा, मुफ कर परमाणंद ॥ ए ॥ मुक मति बोटी मूढ मति, महोटा गुणशुं मोह ॥ मेरु चढे किम पां गलो, जे अति अधिक सोह ॥ १० ॥ नक्ति शक्ति मुज उपनी, पंखीने जिम पांख ॥ तिम श्रावी सेवक तणे, अंधाने जिम ांख ॥११॥ बोली न जाणे बोबडो, करे तर्कीशुं वाद ॥ श्रा संर्गे जिनर मट्या, तिहां गयो संवाद ॥ १२ ॥ जन्म सफल तो जाणीयें, कहीयें, गुण सत्य वंत ॥ आगें थोडो आउखो, बालस बंघ अ नंत ॥ १३ ॥ धंधो पण बूटे नहिं, क्रोध मो हने काम ॥ कर्म सबल दल काठीया, लेण न ये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को नाम ॥ १४ ॥ पण में कीधी विविध परें, श्रीजिन पास पुकार ॥ अंगथकी अलगा रह्या, बोलीस अक्षर सार ॥१५॥ धर्म विशेषे जे जला, दान शीयल तप नाव ॥ पण सहुको दाखे सही, सबलो शील प्रत्नाव ॥१६॥ शील सत्त केडे सहु, दान मान तप धर्म ॥ हवे हुँ तेह वखाणशुं, में जाण्यो ए मर्म ॥१७॥राजा हरिचंद साहसी, सती सु तारा नारि ॥शील सत्त तेहनां चरित्र, सांज लजो नर नारि ॥ १७ ॥ गांउ गरथ लेखा पखें, प्रगटी हीरा खाण ॥ लाखजली कुण मोलवे, एहवो अवसर जाण ॥ १५ ॥ सुणतां अमी य समान गुण, रंजे चतुर सुजाण ॥ नीजे पण नेदे नहीं, पाणीमांहि पाषाण ॥ २० ॥ श्री जगवंतजी पूज्यजी, कहो वधे जिम मुज ॥ मूर ख नर जाणे नही, हाहा करे अबुऊ ॥१॥ मन संदेह म राखजो. फरि पूरजो वात॥कह्या विना कम जाणीये, अंतर कथा अखात ॥ २२ ॥ आलस निझा परिहरो, कच पच म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करो कोय gamaase.ait.org ,मीने, दूध पीयो सहु कीय ॥ २३ ॥ नवरस नेद वखाणशु, डे मुफ मन कबोल ॥ कनकसुंदर एक चित्तशृं, सरस कथा रंगरोल ॥ २४ ॥ नवरस नामानि ॥२सोकः॥ श्रृंगारकरुणाशांता, बिजत्स जय मनु तं॥हास्य वीरं रसं रौउं, रसैतानिनवान्यपि ॥२५॥ ढाल पहेली ॥ राग केदारो ॥ पैसा सोदा ___ गरकुं चलण न देणुं ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीजिन त्रिजुवन मंमल माया, मध्य मा नव जन जवन वसाया ॥ सो अपरंपर अलख निरंजन, सुर नर नाग जना मन रंजण ॥ ए आंकणी ॥१॥ सोअपरंपरं ॥ आदि पुरष श्री आदि जिणंदा, दीपे ज्योति सरूप दिणंदा॥ ॥ सो ॥ मीन तणा पग नीर वहंता, पंखी मारग गगन नमंता ॥२॥ सो० ॥ नाद श ब्दकुं वाकी डाया, अनहद ब्रह्मम पिंम समाया ॥ सो ॥ आदि पुरुष परमेश्वर ऐसा, ज्योति स रूपी दीपे जैसा ॥ ३॥ सो ॥ तेहनी झछिनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) पार न कोई, जंबुद्वीप तणो विधि जोइ ॥ सो० ॥ लाख जोयण जंबू परिमाणो, वृत्ताकारें तेह व खाणो ॥ ४ ॥ सो० ॥ क्षेत्र जरत तस जीतर सोहे, पंच सया जोयण मन मोहे | सो० ॥ ब कला ने जोयण बबीसें, श्रागममांदे कह्यो जगदीशें ॥ ५ ॥ सो० ॥ देश बत्रीश सहस नर नारी, जल थल मानव जरत मऊारी ॥ सो० ॥ आज देश साडा पचवीश, धर्म कर्म सेवा जगदीश ॥ ६ ॥ सो० ॥ अवर देशमां धर्म न ध्यान, देव न पूजा दान न मान ॥ सो० ॥ सांकेत देश अयोध्या चंगी, नव बार जोयण नवरंगी ॥ ७ ॥ सो० ॥ सहस त्र्यासी त्रण सय पचवीश, गाम एहनां कह्यां जगदीश ॥ सो० ॥ सोहे देवपुरी अनुमानी, राजा हरिचंदनी राज धानी ॥ ८ ॥ सो० ॥ नगरतणो विस्तार कहेशु, कनकसुंदर कहे सुजश लहेशुं ॥ सो० ॥ ढाल संपूर्ण कीधी पहेली, कीर्त्ति प्रगट थई जग व हेली ॥ ए ॥ सो० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ढाल बीजी ॥ राग रामग्री ॥ शीता तो रूपें रूडी, जाणे आंबामाले सूडी हो ॥ ए देशी ॥ ॥ अयोध्या अधिक विराजे, जिण आगल लंका लाजे हो।नगरी नवरंगी॥चवडी दीर्घ च तुरंगी, तेढी त्रिकूट त्रिनंगी हो ॥१॥न ॥ए आंकणी ॥ लांबी शेरी विच शेरी आडी अवली अधिकेरी हो ॥ न ॥ नर बयल विराजे बाजे, वलि पडहा बहुविध वाजे हो ॥२॥ न ॥ गोंखे बेठी गयगमणी, मन मोहे मृगा नयणी हो ॥ न ॥ कपूरे करुला कीजें, रंग जरी श्रा लिंगन दीजेहों ॥३॥ न० ॥ गढ कोट नदी वन वाडी, दीसे उछाह दिहाडी हो ॥ न एक वणज करे वणजारा, कर दाण न मंग लगारा हो ॥४॥ न० ॥ काश्मीर लाहोर अटारो, सो दागर अंत न पारो हो ॥न० ॥ खंगायत दीप प रारा, दक्षिण गुर्जर धरारा हो ॥५॥न० ॥ कर अकर न विकरे वराति, नरेनोगन माप मुकाती हो ॥ न० ॥ पर छिपे प्रवहण पूरे, देशांतर सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ऊ सनूरे हो ॥६॥न ॥ कुसल में घर आवे, उत्सव करी नारी वधावे हो ॥ न ॥ कोटीधर माया उंमी,परदेशे पहुचे हूंमी हो ॥७॥ न॥ माहाजन सुखीया सुविशेषी, लाखे कोडे नही लेखो हो ॥ न ॥ देवल जिन हरि हर दीपे, जाणे मंदर गिरि जीपे हो ॥ ७ ॥ न० ॥ पो शाले धरम सुणावे, वमेरा निशाल नणावे हो ॥ ॥ न ॥ बहु होम यज्ञ ध्वनि झानी, हरिचंद तणी राजधानी हो ॥ ए॥ न ॥ विप्र दीसे वेद नणंता, हाहें होकार करता हो ॥ न० ॥ तिहां दीन फुःखी नहिं कोई, सुखवासी लोक सहु कोई हो ॥ १० ॥ न० ॥ ए ढाल कही श्म बीजी, सांजलीने करजो जीजी हो ॥ न ॥ मुनि कनकसुंदरनी वाणी, सुणतां रस अमिय समाणी हो ॥ ११॥ न ॥ ॥दोहा॥ ॥ नवरंगी नगरी तिहां, श्रीहरिचंद नरिंद ॥ तेज प्रता आगलो, दीपे जेम दिणंद ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) न्याय नाव राजा निपुण, शूर सुनट सत्यवंत ॥ मन वयणे पोषे प्रजा, वन तरु जेम वसंत ॥२॥ साहसीक नूपति सबल, धरे सदा दृढ धर्म ॥ वीर विचदण अति चतुर, जाणे सगला मर्म॥६॥ ॥ ढाल त्रीजी॥राग ललित रामग्री॥सर __णीयानी देशी ॥ चोपाश्मां ॥ ॥ विलसे राजा विविध प्रकार,सत्तावीश अंते तर नारिहय गय रथ पायक परिवार, शूरवीर नी अंत न पार ॥१॥ बीजा मणि माणिक नंमार, रयण जेटला समुद्र मजार ॥ महोटा नृप तस नामे शीश, जिसो जाणे अवनीश ॥२॥ सति सुतारा सुंदर नार, पटराणीशुं प्रेम अ पार ॥ मतिसागर मंत्री मतिवंत, सामि धर्म साचो सत्यवंत ॥३॥ सकल कला गुण मणि का मिनी, प्राण प्रिय पीयु मनगामिनी ॥ पूर्णचंद्र वदनी निकलंक, लघींत केसरी सम कटि लंक ॥ ॥४॥कीकी जमर कमलदल जिसी, विकसित लो यण सोहे तिसी ॥ सूक्ष्म रेखा काजल सारी, म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धुकर बेठा बाह पसारी॥५॥ काने रवि कुमल फल हले, अंधकार क्षण क्षणमांहे टले ॥ को किल कंठ सरिखो जीण, मणिधर श्याम जुयंगम बेणि॥६॥पीन पयोधरतंबा जिस्या,अमृत कलश बिराजे तिस्या ॥ हंस गयंद अनोपम गेलि, जाणे अनिनव मोहनवेलि ॥७॥अधर प्र वाली हीरा दंत, पावस वीज जिसी ऊलकंत ॥ अधर रंग तंबोल रसाल, सति शील सीता सुवि शाल ॥ ७॥ रूपे रंना लाजी रही, त्रिजुवन नार उपम नह। ॥ देव जगति सहगुरुनी सेव, पतिव्रता धर्म धरे नित्यमेव ॥ ए ॥ राजा राणी वाक्य ॥ गाहा गूढा अरथ अपार, राग रंग गुण गीत प्रचार ॥ बोले चौबोला सुविचार, प्रत्युत्तर आपे तत्काल ॥ १०॥ राज्ञीसवाक्यं ॥ एकनारी अति सुंदर रूप, प्रथविमांहे अधिक अनूप ॥ चतुर तणे मनमांहे तेह, पंच सखीसुं घणो स नेह ॥ ११ ॥ ऊंची चढि नीची उतरे, सुर नर नाग असुर मनहरे॥ चरण घणा पण चाले नही, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) वस्त्रघणा ने उघाडी रही ॥ १२ ॥ न जमे अन्न न पीवे नीर गुह्य न राखे निपट अधीर ॥ पर न रशुं परउप गारणी, पुत्र जणे पण ब्रह्म चारिणी ॥ ॥ १३ ॥ फल लागां पण वंध्या सही, प्राण व कहो ते कुण कही ॥ ति कारण मुऊ मन संदेह, कहो प्रीतम कुण नारि तेह ॥ १४ ॥ रा जवाक्यं ॥ नवमंगल रूपी ते नारि, कहीये सुख करणी संसार ॥ रमणीसुर नर रलियामणी, वारु सुंदर सोहामणी ॥ १५ ॥ लीलावंती मोहन गारी, पंच वरण धुरि र नारि ॥ एम अनेक गुणनेद प्रकाश, पंच विषय सुख लील विलास ॥ १६ ॥ राजा राणी विलसे, जोग, जमर केतकी जिम संयोग ॥ मनरंगें सुख लीला रमे, एक निमेष वि रहो नवखमे ॥ १७ ॥ कंत तो मन मानी इसी, नयन मांडेलि की की जिसी ॥ कहे तिका विध राजा करे, जीवन प्राण जिसी यादरे ॥ १७ ॥ सोहाग पिसाची ते नार, जे मनमानी निज न रतार ॥ सबल शील जिमांहे लही, तिपशुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) प्रीतम विरचे नही॥रए॥श्लोक ॥कोकिलानां खरं रूपं,वनेरूपंतपस्वीनां ॥ विद्यारूपं कुरूपाना, नारीरूपं पतिव्रता ॥२०॥ चोपा॥ विचविच मनराखे वैराग, शील, प्रताप घणो सोनाग ॥ दान शील तप जाव विचार, धरे धर्म मन चार प्रकार ॥१॥ श्राराधे अरिहंत नवकार, जीव दया जयणा सुविचार ॥ वर्जे जीव मारता लोक, इण दृष्टांते सांजलो श्लोक ॥२२॥ यद्यद त्कांचनंमेरु,कृत्स्नांचे ववसुंधरां॥एकस्य जिवितां दद्या, नच तुख्यांयुधिष्टिर ॥२३॥चोपा ॥जाणे एह संसार असार, जुख अनेक तणो नंमार ॥ वीतरागनां धर्म विहीण, मुगति न पामे को मति लीण ॥२४॥ साधु सुगुरु सेवा सुविशाल, पात्र दान दीजें जजमाल॥ जन्मथयो गोवालने घरे, शछि लहे शालिननी परें ॥२५॥ सूधो शील मुगति दातार शील विना पामे नही पार॥ शू बितें सिंहासन थयुं, शेठ सुदर्शन संकट गयुं ॥ ॥ २६ ॥ शील प्रताप सुनमा सती, चालणि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) जल काढ्यो जिन मति ॥ चंपापोल उघाडी जिणे प्रह ऊठी प्रणमीजें ति ॥ २२ ॥ ब्राह्मी चंदनवाला मती, इत्यादिक में शोले सती ॥ शि वपुर पद पाम्युं निराम पाप जाये समरंतां नाम ॥ २८ ॥ सूधो त्रिविध पांलंता शील, शिव पद विहड लहीयें लील ॥ जंबुस्वामीने या Sकुमार, कायवन्नो धन्नो अणगार ॥ २ ॥ बार कोडी धन विलस्यो जेण, मुगति पुहुतो श्रीनंद पेण ॥ कूड कपटि लडवारी लबाड, ते नारद ऋषि पाम्यो पार ॥ ३० ॥ तप विए शिव पुर लही नहीं, तप विष कर्म न बूटे कहीं ॥ जुवो हरिकेशी चंगाल, दृढप्रहारी पापी विकराल ॥ ॥ ३१ ॥ तप तपीने निर्मल थयो, कर्म खपावी मुगतें गयो || जाव विना पण मुगति न होय, नाव समोवड धर्म न कोय ॥ ३२ ॥ यतः ॥ दानेन प्राप्यते लक्ष्मी, शीलेन प्राप्यतेयशः ॥ तप शादीयते कर्म, जावेन मोक्षसंपदः ॥ ३३ ॥ चो पाइ ॥ वीरवंदण दर्डर मन रंग, जातां चांप्योच Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) पल तुरंग ॥ पश्चात्ताप करे अंदोय, जिनवर दरि सण करवा मोय ॥ ३४ ॥ कर्म कठिन दर्शन नवि थयो, ध्यानधरी सुर लोकें गयो ॥ नाव धरी जो दीजे दान, तेह तणुं फल एक प्रधान ॥ ३५ ॥ नाव विना तो न पले शील, अण मिलते गंगेव अहिल ॥ धन यौवन मलियो संयोग, शय्या शील सजे सुर लोक ॥३६ ॥ नावे तप तपिये ते खरो, नवियण नाव सदा मन धरो॥ दान शील तप नावे करी, शीघे वरीयें शिव सुं दरी॥३७॥ श्स्योजाव राणी मन वस्यो, कुंदन उपर हीरो किस्यो ॥ सुरत संजोग तणां सुख सार, नागलता चंदन जरतार ॥ ३ ॥ श्म लीनोहरिचंद, नरिंद, नारी सुतारा नयणानंद ॥ एक थंनो चंचो आवास, विलसे दंपति लील वि लास ॥३ए ॥ राजा राणी रंग रसाल, कनक सुंदर कहे त्रीजी ढाल ॥ सुणतां रीके चतुर सु जाण, उठी परहा जाये अयाण ॥ ४० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ( दोहा ) ॥ एक दिवस हरिचंद गयो, वन क्रीडा बहु सेन साधु एक मोटो महंत, बेठो दी वो तेण ॥ १ ॥ राजा पग प्रणमी करी, बेठो मुनिवर पास ॥ सा धु सुणावे देशना, हरिचंद सुणे उल्लास ॥ २ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ रागकाफी हुसेनी ॥ || निंदी लोयणा ॥ ए देशी ॥ ॥ दुख सागर संसार ए, सायर जव जारि लाल ॥ चतुरनर चेतियें ॥ काम क्रोध मद लोन ए, ड खके अधिकारी लाल ॥ १ ॥ च० ॥ मोह मि थ्यात न राचीयें, जीउ जोइ विमासी लाल ॥ ॥ च० ॥ लाख चोरांशी जीउरा, जमे योनि म जारी लाल ॥ २ ॥ च० ॥ दान शील तप जा वना, ए नावे निबंधी लाल ॥ च० ॥ नवसाग रके पारकू, पामे एह प्रबंधी लाल ॥ ३ ॥ च० ॥ देव एक अरिहंत है, साधु सुगुरु सूधा लाल ॥ च ॥ केवल धर्म प्रकाशिया, नूपति प्रतिबुद्धा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) लाल ॥४॥ च० ॥ दीधी त्रण प्रदक्षिणा, उत्त रासण गये लाल ॥च ॥ मुनिवर बंदि नावां निजमंदिर आये लाल ॥ ५॥ च ॥ समकित व्रत नृप श्रादरे, आनंद अंग न माये लाल ॥ ॥ चन ॥ अंग उमंगे महीपति, मन जरम गमा ये लाल ॥ ६॥ च ॥ नेद जणाये नारिकुं, स मकित महिमा लीने लाल ॥ च०॥ जन्म सफल अब जाणीयें, देही पावन कीने लाल ॥७॥च॥ दान महीपति देत हे, अब होत वधाई लाल॥ ॥ च ॥ घर घर गूडी उबले, निसाणे घाये लाला ॥ ७ ॥ च ॥ प्रथम खंम पूरो हुवो, ह रिचंद नरिंदा लाल ॥च॥ परमानंदनी संपदा, सुरलोक सुरिंदा लाल ॥ ए ॥ च ॥ श्रीनावड गह नूपति, मणिरत्न मुणिंदा लाल ॥ च० ॥ स गुरु श्रीउवकायजी, कर डं आणंदा लाल ॥१०॥ ॥ च ॥ कनकसुंदर शिष्य वीनवें, प्रनु चरण प साया लाल ॥ च ॥ चोथी ढाल रसाल ए, शृं गार रस गाया लाल ॥ ११॥ च० ॥ इति श्रीक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) नकसुंदरविरचितो श्रीहरिश्चन्छ तारालोचनि चरित्रे सत्यशीलाधिकारे नवरसवर्णन मध्ये श्रृं गार रस वर्णन नामा प्रथम खंग संपूर्णः ॥१॥ ॥ अथ दितीय खंडप्रारंनः॥ ___॥दोहा॥ ॥ श्री सदगुरु प्रणमुं सदा, सिद्धिदाय सुवि शेष॥ जावडगढ मुकुट मणि, श्रीउपाध्या यम हेस॥१॥ हवे बीजो खंग बोलशु, हरिचंद सत्य अधिकार ॥ विरहागम विक्रय करय, राणी राज कुमार ॥२॥णे अवसर सुरलोकमें, सनायें बेगे इंड॥ एम नाखे नर लोकमें, सबल सत्य हरिचंद ॥३॥ शूरवीर अति साहसी, दीसे राजा सोय॥आजतणे वारे तिहां, अवर न दीसे कोय॥४॥ मिथ्यात्वी माने नही.उवचन सर एक॥मुज आगल कुण मानवी, राखे निश्चल टेक ॥५॥पूरवनव संतापीया, विण अपराधे साध ॥ वैर संजायुं आपणुं, देशे फुःख अगाध ॥ ६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) ॥ ढाल पहेली | राग केदारो ॥ नरेसर नेट्यो साहस धीर ॥ ए देशी ॥ ॥ देव परीक्षा या वियोजी, मानव लोक म कार || अयोध्यानी पाखतीजी, बाग रच्यो वि स्तार ॥ १ ॥ महिपति वीनती अवधार ॥ ए कणी ॥ कर जोडी तापस कहे जी दुःख अ मारां वार ॥ २ ॥ महिपतिवी० ॥ तापस ब हुविध उतरया जी, तापस णि परिवार जटाजूट ते जंगमी जी, साथै शिष्य अपार ॥ ४ ॥ म० ॥ एक दिन तापस यवीयो जी राजसना मन रंग ॥ नृप यागल उजो रह्योजी, उलट आणी अंग ॥ ४ ॥ ० ॥ राय करे तस वंदनाजी, दीधुं यादर मान ॥ दीन वचन कृषि वीनवे जी, सुण हरिश्चंद्र राजान ॥ ५ ॥ म० ॥ अविचल बत्र तु मारडोजी, तुंबे प्रजा सुखकार ॥ तेजे सूरज सारि खोजी, दाने जिस्यो जलधार ॥ ६ ॥ म० ॥ ता पस बहु परदेशना जी, वस्या तुमारे वास ॥ महोटो राजा तुं सही जी, वैरी जाये नाशि ॥ ७ ॥ म० ॥ २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) सघली वाते सोहिलो जी, तापस दे श्राशीष ॥ सूअर एक अमारडेजी, थरि सबलो अवनीश॥ ॥७॥ म ॥ मारि ताडि दूरे करोजी, माख्या तापस चार ॥ नव तापसिणी संहरी जी, दशमि महारी नार ॥ ए॥ म ॥ वारु राये वीनव्यो जी, तेहने दीधी शीख ॥ जे तुमने नित्य मुह वेजी, तेहने हुँ उलीख ॥ १० ॥ म ॥ तापस श्राश्रम बावियोजी, राय चढ्यो ततकाल ॥ते व नमांहि आवियो, चतुरंग दल नूपाल ॥ ११ ॥ ॥म०॥दीगे सूवर दोडतोजी,जरि करि मूक्यो बाण ॥ गरज सहित हरणी हणी जी, चिंता पडि असमाण ॥ १२॥ म०॥पहिली केदारा तणीजी, दाखी ढाल रसाल ॥ कनकसुंदर मन रंजिया जी, सांजलि बाल गोपाल ॥१३॥ म०॥ ॥दोहा॥ ॥मंत्रिप्रत्ये राजा कहे,मतिसागरसुण वात॥ में पातक महोटुं कियुं, अधर्मनो अवदात ॥ ॥ १॥ ए पातक किम बूटशे, की, खोटं का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) म ॥ रति परति हास्या विना, नरके नही मुक ठाम ॥ २ ॥ अपाराधि मुऊ सारिखो, श्रवर नही जग कोय ॥ कर्म सबल मुकिं शिर चढयुं, किम निस्तारो होय ॥ ३ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग गोडी ॥ मनज मरारे ॥ ए देश ॥ ॥ राजा हरिश्चंद्र चिंतवे, मे कीधो रे ॥ मारी बला बाल, पाप में लीधो रे । हुं अपराधी पापियो. में० ॥ जन्म थयो विसराल ॥ १ ॥ पा० ॥ हिरण एकलो विलविले ॥ में० ॥ देशे मोहे शाप ॥ पा० ॥ जे गति ए बिहुं जीवनी ॥ में० ॥ सो गति करशुं आप || पा० ॥ २ ॥ तापस खायो दो डतो ॥ में० ॥ हरणी मारी केण ॥ पा० ॥ जस्म करुं नरके धरुं ॥ मे० ॥ विंधी मृगली जेण ॥ ॥ पा० ॥ ३ ॥ हरिश्चंद्र पायलागी कहे ॥ में० ॥ सबलुं पाप अघोर ॥ पा० ॥ जे विध दाखो ते करूं ॥ में० ॥ केहो कीजें सोर ॥ ४ ॥ पा० ॥ धूजे राजा धडहडे ॥ मे० ॥ हाहाकरे हरिश्चंद्र || Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) ॥ पा० ॥ बिहुं श्रखे श्रांसु ऊरे ॥ मे० ॥ नामे शीश नरिंद ॥ ५ ॥ पा० ॥ राज समर्पु माहरुं ॥ ॥ मे० ॥ हुं जाउं एकपोत ॥ पा० ॥ अंग करो मुऊ निर्मलो ॥ मे० ॥ दूर निवारो बोत ॥ ६ ॥ ॥ पा० ॥ चेलो गुरुने वीनवे ॥ मे० ॥ वचन सुपो ऋषिराज ॥ पा० ॥ पाप उतारो एहनुं ॥ ॥ में० ॥ श्रापे सहु इद्धिराज ॥ ७ ॥ पा० ॥ राज दीयो तापस जणी ॥ मे० ॥ शिष्य बोल्यो वलि एक ॥ प० ॥ माहारी हरणी किणे हणी ॥ ॥ में० ॥ प्रज्वालुं सुविवेक ॥ ८ ॥ प० ॥ राय मनावें तेहने ॥ में० ॥ देशुं लाख दिनार || पा० ॥ खस्ति जणावी एटले ॥ में० ॥ है है कर्म विकार ॥ ए ॥ पा० ॥ मंदिर राजा आवियो ॥ मे० ॥ बारीमांहे होय ॥ पा० ॥ राजा हरिचंद्र शुं कियो ॥ ० ॥ लोक कड़े सहु कोय ॥ १० ॥पा० ॥ पट राणी पासें गयो ॥ ० ॥ उनी आगल आइ ॥ पा० ॥ नारी सुतारा वीनवे ॥ में० ॥ प्रीतम चिंता कांइ ॥ पा० ॥ ११॥ चिंता सायर जेटली ॥ में० ॥ सुंदरि सां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) जल वात॥पा॥राजाधि उदकी करी॥मे॥ कीधो निर्मल गात्त ॥ १२॥पा॥ मारि सगर्ना हरिणलीमे॥पाप कीयो परिहार ॥ पा॥ दंग कीयो शिर माहरे॥मे॥ एक लाख दिनार ॥पा॥१३॥बीजी ढाल पूरी कही ॥मे॥ गोडी राग मकार ॥ पा०॥ कनकसंदर मुनि वीनवे, ॥ मे ॥ सत्यवादि सुखकार ॥ १४ ॥ पा० ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग सारंग मल्हार ॥ ॥ नणदलनी देशी ॥ ॥ नारि सुतारा वीनवे, सांजल प्राण आधा रहो ॥प्रीतम ॥ चिंता कीसी मनमें करो, केहना धन जमार हो ॥१॥जी॥चिं०॥ पाप गमायु आपणुं निर्मल कीg अंग हो ॥प्री० ॥ देशां तर हवे साधशु, अंग धरी उबरंग हो ॥प्री० ॥ ॥२॥जे शूरा अति साहसी, जे साचा सत्यवंत हो ॥ प्री० ॥ देशांतर तेहने किस्या, पग पग सुख अनंत हो ॥३॥ प्री०॥ जन्म कृतारथ जाणीयें, जे पातक वरजीत हो॥प्री०॥ सत्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) सोहस चूके नही, तेहने केश् चिंत हो ॥४॥ ॥जी॥त्रीजी ढाल सोहामणी, राग सारंग म हार हो॥प्री०॥ कनकसुंदर नृप धीर दे, राणी निज जरतार हो॥प्री० ॥५॥ ॥दोहा॥ ॥ तापस श्राव्यो एटले राजजवन तिणि वार ॥रे रे पापी माहरा, दे तुं लाख दिनार ॥ ॥१॥रायें मंत्रीश्वर तेडियो,बोल्यो एहवी ना ख ॥ काढो धन नंमारथी, आपो एहने लाख ॥ ॥२॥ तापस त्रटकी बोलीयो, रिछि अमारी एह ॥ए माहेशू ताहरूँ, तुं मुझ श्रापे जेह ॥२॥ तव राजा नगरी तणो, तेडी माहाजन पास ॥ बेकर जोडी वीनवे, हरिश्चं वचन विकास॥४॥ ॥ ढाल चोथी॥राग सिंधु ॥ चरणाली चामुमारण चढे ॥ए देशी ॥ ॥माहाजनगुंराजा वीनवे, वचन सुणो सुवि चारो रे ॥ में तुमने कदि दूहव्या, तो दाखो इणि वारो रे॥ामा॥हो में तो दाणदंग कीयो नही, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) न दीयुं कूडं आलो रे ॥ पुत्रतणी परें पालतो, करतो सहनी संजालो रे ॥ २ ॥ मा० ॥ हो में दीदीठी करी, सुणी करी असुणी जाणो रे ॥ चोणि चालण परहरि, में न्याय कियो निर्वाणो रे ॥ ३ ॥ मा० ॥ ज्युं वन तरुवर पांगरे, आयो मास वसंतो रे ॥ त्युं सघली प्रजा माहरी, मुक बेठां विकसंतो रे ॥ ४ ॥ मा० ॥ ज्युं तरुवर सीचे सदा, माली रहट नीरो रे ॥ त्युं तुमनें हुं सींचतो. प्रेम नयन जलधारो रे ॥ ॥ ५ ॥ मा० ॥ हो तापस पण धरमातमा, में ते हने सोंप्यो राजो रे ॥ लाख महोर व्याजें करी, यो मुऊने तुमें जो रे ॥ ६ ॥ मा० ॥ ढाल कही चोथी जली, नीको सिंधु रागो रे ॥ कन कसुंदर माहाजन कहे, हवे राय तो कुण लागो रे ॥ ७ ॥ मा० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सुए राजा महाजन कहे, द्रव्य नहिं श्रम पा स ॥ लाख महोर किम संपजे, अवसर इणे विमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) स ॥ १ ॥ वलतो नृप बोले नही, हास्यो वचन नरिंद ॥ गयो माहाजन फरी ने सहु, एह करम हरिचंद ॥२॥ दिन प हिड्यां प हिडी सहु, लोक माहाजन मि त ॥ पटराणी पहिडी नही, एहिज रूडी रीत ॥३॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग केदारो चंद्रावलानी देश ॥ ॥ ॥ राजा हरिचंद्र वीनवे रे, सुणो तापस मुऊ वात ॥ एकज महिने पशुं रे, लाख महोर विख्या त ॥ १ ॥ लाख महोर आणी ने देशुं, जे न कीया ते काज करेशुं ॥ देशांतर इणिवार चलेशुं, उसिं गण तुमचा थायेशुं ॥ २ ॥जी राजेसरजी रे, हरिचंद राजा साहसी रे विनयी ज्ञानी जाण ॥ तव तेणेही तापसे रे, वचन की यो परिमाण ॥३॥ वचन कीयो प रिमाण जिवारे, चाल्यो श्रीहरिचंद तिवारें ॥ सत्य कर्म मन मांहि विचारे, नारि सुतारा श्राइ लारें ॥ जीजी वनजीजी रे ॥ ४ ॥ जीवन प्राण श्राधार, वा लिम माहरारे ॥ पाय न बोडुं श्राज, प्रीतम ता हरारे ॥ ५ ॥ पायन बोडं ताहरारे, श्रवीश ता हरे साथ ॥ विरह लगार सहू नहीरे, विलगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) प्रीतम हाथ ॥ ६॥ विलगी रही निज प्रीतम हाथें, खामि मयाकरि तेडो साथें ॥ हुँ हजूर र हेशुं दिन रातें, विपत पाडुं नही बीजी वातें ॥ ॥७॥ जी प्रीतमजीजी रे ॥जीप्रीतम आधार, हार हीया तणारे ॥ अंगतणा सिणगार, सलू णा साजणा रे॥७॥सयण सलूणे साहिबेरे, निरखि सवुणी नयण ॥ तब तापस आव्यो ति हारे, बोले एहवां वयण ॥ ए॥ तापस वयण कहे अविचारी,वेगे आणो महोर हमारी॥साथें जाण न देसुं नारी, राजरमणी झकि सहु हारी॥ ॥१०॥जीराजेसर जी रे, जीराजेसर राय ॥ मंत्रि कहे सही रे, परनारि कुण लाग, जावा द्यो न ही रे॥११॥जाण न द्यो परनारिने रे, ए तुम नही आचार ॥ राणा पण दंगे घणो रे, पण न लीये पर नारि ॥ १२ ॥ पण न लीये परनारिने कोश, एह श्रख त्रि किहां नवी हो॥ तापस हीए विमासी जोश, मतिसागर दाखे श्म सोश ॥ ॥ १३ ॥ जीराजेसर जी, जीराजेसर राय ॥ ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) पस कोपीयो रे, मंत्रि कस्यो शुक पंखि ॥ उ डीने गयो रे ॥ १४ ॥ मंत्रीसर उडी गयो रे, भ्रूज्यो राजा ताम॥ श्रागल बोढुं नहीं रे, दीगं एहनां काम ॥ १५॥ दीगं एहनां काम सवाया, राज झछि रमणी धन माया ॥राखो मुनि वरजे मन नाया ॥ कनकसुंदर एह वचन सुणाया, जी राजेसर जी रे ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ तापस जावा दे नही, राणी रहे न लगार॥ विलवंती श्म वीनवे, सुणहो प्राण आधार ॥१॥ ॥ढाल ही॥राग सोरठी ॥ पीयारे हो वालेसर रामजी ॥ ए देशी॥ ॥वीनवे तारा लोचनीरे. सांजल प्राण पी यार॥ विण अवगुण मुज वालहारे, कांश बोडो निरधार ॥१॥ रंगीला हो राजिंद हरिचंदजी, निरधारीहो वालेसर क्युं तजी॥बोडि न जाये हो. नितुर न थाये हो, दिलतो सूरजी ॥२॥रं॥ ए आंकणी ॥तुंमुज जीवन जीवनो जी, तुं ही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) डानो हार ॥ सोजागी शिर सेहरो रे, अंग तो शणगार ॥ ३ ॥ रं० ॥ तुं मुक निमेष न वीसरें रे, ज्युं जल मीन जपंत ॥ तडफि मरुं हुं तुज विना रे, कमल नयण सुणि कंत ॥ ४ ॥ रं० ॥ लोटी जरि आगें धरूं रे, हुं बजं तोरि दास ॥ कि अगल उजी रहुं रे, वालम हिडे विमास || ॥ ५ ॥ रं० ॥ महेर करी मन मोहनां रे, मुने तेडो साथ || आगल करीय पधारजो रे, हित करी जाली हाथ ॥ ६ ॥ रं० ॥ हुं अरधंगी ताहरी रे, तुं मुऊ जीवन प्राण || अंगणी बाया समी रे, सांजल कंत सुजाण ॥ ७ ॥ रं० ॥ दीयर परघर सासरो रे, सवि उऊड मुऊ मन्न ॥ जो तुम संग सदा रहुं रे, तो वेलावल रन्न ॥॥॥ शील रहे किम माहरो रे, वेडमें वसतां वास ॥ वली ए ता पस पापीयो रे, करशे शील विनास ॥ ९ ॥ रं० ॥ प्राण हडे पण नां हडें रे, शील रयण समतोल ॥ एक शील नग उपरें रे, सहस तापस व्यो मोल ॥ ॥ १० ॥ रंग० ॥ तुम वेचे विक्रय करूं रे, तुज मारे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) मरीजालं ॥ वारि सहस हुँ वारणा रे, नहीं तुम मीणे नाम ॥ ११ ॥ २० ॥ हुं नहीं बोडं साहि बा रे, चरण कमल तुम वास ॥ सन्मुख जुवो सुं दरी रे, उनी करे अरदास ॥ १२ ॥रं ॥ चंद्र मुखी श्म वीनवे रे, वलि वति अबला बाल ॥ तन मन तारालोचनी रें, प्रियशुप्रीति रसाल ॥ ॥ १३ ॥ २० ॥ केसरि लंकी कामिनी रे, मृग नयणी मूंजाय ॥ उनीथी घर आंगणे रे, धरणी ढलि ध्रसकाय ॥१४॥२०॥ शीतल नीरे सुंदरी रे, बांटयुं सतप शरीर ॥ दासी कर रही वीज यो रे, लावे शीत समीर ॥ १५ ॥रं ॥ चंदन खेपन बावना रे, उन्नी करिय सचेत ॥ प्रीय मुख देखी पदमणी रे, नीर जरे मृगनेत्र ॥१६॥रं॥ ढाल बीजेखमें कही रे, बही सोरठ राग॥सुणतां जोगी सुख लहे रे, वैरागी वैराग ॥ १७ ॥रं॥ ॥ दोहा॥ कुंतल सेवक नृप तणो, तापसने कहे वात ॥ रे पापी तापस नही, अधम तणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) वदात ॥१॥ पुत्र विडोहो मातनो, नारि वि बोहो कंत ॥ अघ अघोर ए किम मिटे, जां शशि सूर तपंत ॥२॥ तव तापस कोपे चढ्यो, कुं तल कीधो शीयाल ॥ वडवडतो रणमें गयो, चित्त चमक्यो नूपाल ॥३॥ ॥ ढा सातमी॥राग आशावरी सिंधु ॥ प्रणमीपास जिणंद परधान ए देशी ॥ ॥रायकहे सांजल ऋषिराया,राज रमणी राणी धन माया ॥राखो जे तुम आवे दाया, कांहि कीजे कोप कसाया ॥१॥ नारि सुतारा शी लवंती, माहरे मन मानेती महंती ॥ ब्राह्मी उ पम अधिक लहंति, कूड कपट न को कहंती ॥ ॥२॥ सूरज पश्चिम दिशिजो ऊगे, पांगलो मेरु शिखरने पूगे॥ महा उदधि मरजादा मूके, सति सुतारा शील न चूके ॥३॥गिरि शिर कमल तणो वन होश, माखण काढे नीर विलो ॥ पाणी मांहे अग्नि जो लागे, सती तणुं व्रत किमही न जागे ॥ ४॥ मेरु शिखर धू चले कदापि, खर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) बोले षटराग आलापी॥ दमावंत मुनिवर पण कोपे, नारि सुतारा शील न लोपे ॥ ५ ॥ जैसी कोमल कांब कणेरी, जैसी कुंपल पीपल केरी॥ जैसी मीणनी पुतली जाणो, तैसी कोमल नारि वखाणो ॥६॥ ए नारी मुख बोली न जाणे, ए नारी मन गर्व नाणे ॥ ए नारी मन मत्सर नांही, दयावंत ए जे मन मांही ॥॥ ए हने में न दीयोरे कारो, सुपनेही न कह्यो जी कारो ॥ वचन कगेर न में बोला, रीसाणी दण मांहें मना॥७॥ एहने मुनिवर गाल म देजो, धर्म सुता ते करिने खेजो॥रांधण इंधण काम म देजो, शीलतणा एहना गुण खेजो ए॥ ए मुज जीवन सम जाणेजो, एहने कठिन वचन मत कहेजो॥ ए पासें म अणावशो पाणी, अति सुकमाल आडे ए राणी ॥१०॥ रोहीताश्वसुंध रजो रंग, नणशे पंमित चेला संग॥वांबित मीग मोदक देशो, बालक आपणुं करि जाणेजो ॥ ॥ ११ ॥ टाकर कांव पाटु मत मारो, जेमारे ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) हित करी वारो॥चेलाने तुमे कहेजो सामी, मत खडशो इणशुं श्रनिरामी॥१२॥ हितकारी फेरी माथें हाथ, नणावजो लघु कुखक साथ ॥ अ कल प्रमाणे सूत्र नणाजो, वेद पूराण वखाण सु णाजो ॥ १३ ॥ मत दूहवशो मत रीसाशो, कु मया करीअविनय मकराशो॥घणुं घणुं तुमने शुं कहीयें, जला बूरा पण जे निर्वहीयें ॥ १४ ॥ महोटा मनमें कोप न आणे, महोटा शत्रु मित्र सम जाणे ॥ तुमेबो तापस दीन दयाल, तुमेडो तापस परम कृपाल ॥१५॥ तुमे बो तापस खीर मुणिंद,तुमे बोतापस दीनदिणंद॥तुमे बो तापस तप साधन्न. तुमे बो देव जिस्या महारे मन्न ॥१६॥ तुमे बो तापस करुणागेह, तुमे डो तापस ब्रह्मा देह ॥ तुमे डो तापस परम पुनीत, तुमे डो तापस अकल अजीत ॥ १७ ॥ में मृगली निरपराध वि राधि, हुं पापी सबलो अपराधि॥श्म कही राजा आघो चाख्यो, मन पांखे मेलीने हाख्यो । ॥ १७॥ पुर्वासा तापसें बोलायो, दोडी राजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) पाटो आयो । नारी पुत्र दीया तस बेइ, राजा ह रिचंद साथै लेइ ॥ १५ ॥ राजा मनमां गाढो रंज्यो, मननो जरम तिवारे ज्यो । सुंदरि सुत स्वामी ससनेह, सुकृत खेति वुव्यों मेह ॥ २० ॥ jघ्याने पाथरियें तलाइ, श्रमलियाने अमल ख वाइ ॥ मूख्या नरने खीर जिमाइ, तरस्यो नीर पीये सुखदायी ॥२१॥ जमरें लाघ्यो कमलनो वन्न, तिम जलस्युं हरिचंदनुं मन्न ॥ पगपंथे चाल्या प रदेश, श्रव्य उजल वेडि नरेश ॥ २२ ॥ लोक नगरना हाहा करता, उजा मूक्या आंसु करता ॥ कर्म करे ते सत्य विचार सुखने दुःख ते कर्मनी लार ॥ २३ ॥ बीजो खंग थयो संपूर्ण, हरिचंद नृपनो दुःख अंकूरण | वनवासें राजा परवस्यो, सुंदरी सहित गहन संचस्यो ॥ २४ ॥ त्री जे खंग क हिरा अधिकार, कठिन कर्मगति एह विचार ॥ साते ढाल रसाल वखाणी, सुणतां प्रतिबूजे ज त्तम प्राणी ॥ १५ ॥ श्रीजावड गछ कमल दिणंद, तस गुरुश्री मणि रत्नमुणिंद ॥ श्रशित लब्धि अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) नंत उवकाय, कनकसुंदर कहे तास पसाय ॥ ॥१६॥ इति श्री कनकसुंदरगणि विरचिते शील त्वाधिकारे नवरसवरणने करुणरसवर्णन नामा द्वितीयःखंमःसंपूर्णः ॥ ॥ अथ तृतीय खंडप्रारंनः॥ (दोहा) ॥ हवे त्रीजे खंमें प्रणमुं,सान्निध्यकारी देव ॥ सरुने श्रीशारदा, सहसकिरण प्रणमेव ॥१॥ राजछि रमणी सुता, देश हुरी परदेश ॥ श्रल हाणा वनमे चल्या, श्रीहरिचंद नरेश ॥२॥ जे दिन दत्त न आपणो, ते दिन मित्त न कोय ॥ कमलनदीने बाहिरो, दिणयर वैरी होय ॥३॥ राणी पग लोही फरे, पर खूचे पाय ॥ चरण सकोमल कमल दल, चंप्रवदनकुमलाय ॥॥ हो प्रीतम हो वालहा, हो तन जीवन प्राण ॥ खिण एक बाया विसमो, सोनल कंत सुजाण ॥५॥ करशुं कर ग्रहि कामिनी, कांधेकरी रोहिताश॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) विशामो क्षण क्षण विचें, चाले लील विलास ॥ ॥६॥पुःख म करे गजगामिनि, मृगनयणी मन मांहि ॥ सुख दुःख बेहु सारिखां, निबंध पल टे नांहि ॥७॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग केदारो विरहि मल्हार॥ आज विमल गिरि नेटशुंहो सहीयर, श्रा दीसर जिनराय ॥ ए देशी ॥ ॥हरिचंद मनमांहिं चिंतवे हो,श्रातम॥कर्म न बूटे कोय॥ःख नवि धरिये सांजलो हो, श्रा तम ॥ कर्म करे तेम होय ॥१॥ दोष न दीजे कोश्ने हो ॥ श्रा० ॥ कर्म विटंबन हार ॥ कर्म रुलावे जीवनें हो ॥श्रा ॥ जवजव फुःख अपा र ॥२॥ कर्म प्रमाणे पामशे हो॥श्रा० ॥ ल खमण बंधव राम ॥ सीता रावण लजशे हो ॥ ॥श्रा०॥ कर्मतणा ए काम ॥३॥ कर्म प्रमाणे नीपजे हो ॥ श्रा० ॥ देत्रे वाव्युं धान ॥ काने खीला गेकीया हो ॥ आ ॥ नवि बूट्या वर्क मान ॥॥ कर्म तणी गति एहवी हो ॥ श्रा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) मुक्ति सजीवन दान ॥ सुर नर कर्मे विडंबीयाहो ॥ श्रा० ॥ तोहुँ केहे ग्यान ॥ ५ ॥ श्रागल आवी चालतां हो॥था॥गंगानदी असराल ॥ दूध सरीसो उज्ज्वलो हो ॥ श्रा॥ जल जेहवो सुविशाल ॥ ६ ॥ हंस विराजे पांखती हो ॥ ॥श्रा०॥ नीर हीलोले जाय ॥ शुक बक पंखी सारिका हो ॥ श्रा० ॥ बेग केति कराय॥७॥ तट श्रावीने ऊतस्या हो ॥आ॥ बहुविध पूरित फुःख ॥ बालक सोहग सुंदर हो ॥श्रा०॥ तेहनें लागी नूख ॥॥श्राडोमांमें श्रावटे हो॥श्रा॥ रोवे रीशे सोय ॥ सहेजे डोरू एहवां हो ॥श्रा॥ मरम न जाणे कोय ॥ए॥ यतः ॥ राजा वेश्या यमोवन्हिः ॥ प्राघूर्णो बालयाचकः ॥ परपीडां न जानाति, अष्टमोग्रामकोटकः ॥ १० ॥ ढाल पूर्वली ॥ माय समजावे पुत्रने हो ॥ श्रा॥ रोय म राजकुमार ॥ ढाल प्रथम मुनि वीनवे हो ॥ श्रा० ॥ राग जले केदार ॥ ११॥ गंग विमल दल दंपती हो ॥ श्रा० ॥ श्रास्थान कीयो सुवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चार ॥ थाक उताख्यो श्रापणो हो ॥ श्रा० ॥क नक सुंदर सत्यधार ॥ १२ ॥ ॥दोहा॥ ॥ बालक रोवे रडवडे, आकुल व्याकुल होय ॥ नान्हडीयो नूख्यो घणुं, सात वर्षनो सोय ॥१॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग गोडी ॥ नथ गई मेरी नथ गई ॥ ए देशी ॥ ॥लाडुदे मोने लाडुदे, लाडुदेमाता लाडुदे ॥ लाडुदे मोने पेंडा दे, गुंदपाक गुंदवडां दे ॥१॥ ॥ मो० ॥ मुरकी मांमा मोतीचूर, बुंची लापसी घेवर पूर ॥ मो० ॥ खाजां ताजां वेग अणाव, ज रहरती सी जलेबी लाव ॥ मो॥२॥सेव सुदा लीनेसतपूडी,दालीनालाडुदेमावडी।मोमग दल मीठा कोहोला पाक, कीटीना लाडु दे आप ॥ मो० ॥३॥ षट्रस आणी दे रे समी, सरस मिगई श्रमृत समी ॥ मो० ॥ फीणी नुखती सी रा तूत, चारोली नालेर मागे पूत ॥ मो॥४॥ साल दालने सूरहां घीह, जीमावो मोने माताजी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) य॥ मो० ॥ तलिया पापड साकर खीर, दे माता अब म कर बधीर ॥ मो॥५॥ साकर, नेली सीखरणी दही, लवंग एलची श्राणो सही ॥ बालक वचन सुणी माय बाप, राजा राणी रे श्राप ॥ मो० ॥६॥ किसुं संतापे पूत्र आबुऊ, लाडु किहांथी श्रापुं तुऊ ॥ मो० ॥ बीजी ढाल ए श्रावक सुणो, हठ न बूटे बालकतणो॥मो॥॥ ॥दोहा॥ ॥ माता बालकने कहे, नेडो दीसे गाम ॥ तिहां जश् लावी आपशु, धीर धरो वत्स ताम ॥ ॥१॥ माता संपति क्युं मिटी, दशा घटी किम श्राज ॥ किहां जास्यां करस्यां किस्युं, किहां थ योध्या राज ॥२॥ बेटा बोलीजें नही, करम करे ते प्रमाण ॥तुज पिताना पुण्यथी, थाशे जय कल्याण ॥ ३ ॥ बालक बत्रीश लक्षणो, मान्यु वचन प्रमाण ॥ वलतो अणबोल्यो रह्यो, सम ज्यो चतुर सुजाण ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ॥ ढाल त्रीजी ॥श्रहो करमर वरसे मेहके जीजे चुंदडी रे केली ॥ए देशी ॥ ॥ अहो तिण अवसर तिहां एक के, श्रावी मोकरी रे के॥ श्रावी॥मोदक जरीयो माट के, संबल शिर धरी रे के॥ सं०॥धूजें कंपे शरीर के, नजर नही तिसी रे के ॥ नि॥ ओढण धवलो वेश के, देवी हुए जिसीरे के॥दे॥१॥मुखे एहवी वाणि के, ते देवी वदे रे के ॥ ते ॥ अयोध्यानो पंथके, कोश्क दाखवेरे के ॥को०॥ देखावे को इमार्ग के, मावो जीमणो रे के ॥ मा॥ एह करे उपगार के, खेचं तस नामणोरे के॥खे ॥२॥ उठ्यो श्रीहरिचंदके,बोल्यो श्रावीने रे के॥बो॥ कर ग्रही आणी तास के, पंथ बतावीने रे के॥६॥ राजा हरीचंद पास के, बेठी मोकरी रे के॥॥ धरती नजर निवाड के, जोवे हित धरी रे के ॥ जो ॥३॥रे बेटा हरिचंदके, क्युं बेठगे शहां रे के॥क्यु॥वहु सुतारा नारि के, ते पण ने किहां रे के ॥ ते ॥ ए बेठी मुज पूठ के, निरखो मात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) जी रे के॥ नि॥पटराणी ततकालके, मनमा उ खजी रे के ॥म॥४॥राज कि सब बोडीके, वनमें क्युं रह्या रे के ॥व०॥उजड वेडि मकार के, बेसी क्युं रह्या रे के बे॥कर्म तणी गती मात के, मामीने कही रे के ॥ मांग ॥रोवा लागी ताम के, मोसी लहबही रे के ॥ मो० ॥ ५॥ दुःख म करजो पुत्र के, सहु थाशे नलो रे के ॥ स॥ जोगवशो कृतकर्मके, हजीय डे केटर्बु रे के ॥ 5 ॥रोवे क्यं रोहिताश्वके, बेटो नूखीयो रे के ॥ बे ॥ मोदक जरीयो माटके, आगल मू कीयो रे के ॥ श्रा० ॥ ६ ॥ बालक ते सुकमाल के, गाढो रंजीयो रे के ॥गा०॥ देवी थर अंत रिक्षके, फुःख तस नंजीयो रे के ॥०॥ त्रीजी ढाल रसाल के, कनकसुंदर कहे रे के ॥ क० ॥ सांजली चतुर सुजाणके, मनमें गहगहे रे के ॥७॥ ॥दोहा॥ ॥ सान्निध्य शासन देवता, एम,कीधिणिवार॥ राजा राणी चालियां, तिहां थकी तिणिवार॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) दिन दश मारग चालतां, बायो नगर उदार ॥ काशी नामें परगडो, नव जोयण विस्तार ॥२॥ सुंदर मंदिर मालियां, एक थंना आवास ॥ देह रामां हरिचंद गयो, रयनि निशा निवास ॥३॥ पंथीडा देवल शरण, के सरवरकी पाल ॥ पंथी होवे दयामणा, जिम जिम पडे वयाल ॥४॥ राजा राणी रंग जरे, सुतां मंझपमांहीं ॥ ऊबकें राजा जागयो, उःख सत्यो मनमांहीं ॥५॥ पुःखको पालण दे सखी,जो निश्वास न हंत ॥ हीयडो वेडि तलाव ज्युं, फुटि दह दिशि जंत ॥६॥ निःपुरातन गहिनी, सो किम नावत रात ॥ चित्त नवल धन देखीने काखि फिरफिर जात ॥७॥ नींद न घडी एक नीपजे, कहीस मन कवणाह ॥ अधिक सनेही बहु झणी, वयर खटुं कत ज्यांह ॥ ७॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग केदारो गोडी ॥ काम ____णी काया वीनवे रेहां ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे राजा फुःख सालियो रे हां,रोवा लागो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) जाम ॥ मेरेजीउरा ॥ हिवे मोकुं किस्या जीवणा रे ह, कर्म कमाया काम ॥१॥ मे ॥ सत्य गयो तब क्या रह्यो रे हां, प्राणगयां परमाण ॥ मे॥ सत्य न चूकुं आपणो रे हां, तो जीव्यु उनियां न ॥२॥ मे ॥ अवधि करी एक मासनी रेहां पख वोलायो एक ॥ मे ॥ लाख मोहर किम संपजे रे हां, टलती दे टेक ॥३॥ मे ॥न रि आवे बातीनरी रेहां, सेतो श्वास प्रकास ॥ मे ॥ बहु पुःखे पूस्यो नूपति रेहां, नयणे पा वस मास ॥४॥ मे० ॥ धूजे नृप धरणी ढले रेहां, खिण खिण होत अचेत ॥ मे ॥ शीतल वाय ऊकोलती रे हां, सुंदरि करत सचेत ॥५॥ मे ॥ नारि सुतारालोचनी रेहां, आंसु बूहे चीर ॥ मे ॥ कां रो वालमा रेहां, साहि ब साहस धीर ॥ ६ ॥ मे ॥ सुण प्रीतम प्राणेसरू रेहां, अरज हमारी एक ॥ मे ॥ मुज वेची दमडा जरो रेहां, उनी राखो टेक ॥ ७॥ मे ॥ सत्य राखो पीयु आपणो रेहां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) साहिब सत्य न गमाय ॥ मे० ॥ सत्य राख्यां स बहिं रहे रे हां, सत्य गयां सब जाय ॥ ८ ॥ मे०॥ इणि वाते लगा नही रे हां, में प्रभु तोरी दास ॥ मे० ॥ चिंता सब दूरे हरो रे हां, वालिम चित्त विमास ॥ ए ॥ मे० ॥ नीर जरुं लगा नही रे हां, रांधण ईंधण काम ॥ मे० ॥ वासीडुं पण करूं रेहां, शील न खंकु स्वामि ॥ १० ॥ ० ॥ जायी चंद्रसेनकी रेहां, जो राखुं व्रत शील ॥ मे० ॥ जे में कर तेरो बब्यो रेहां, एहिज टेक अहील ॥ ० ॥ ११ ॥ करवत वूही अंगमें रे हां, वचन सुणी हरिचंद ॥ मे० ॥ र उपाय कतु नही रेहां, श्रावी पड्यां दुःख दंद ॥ १२॥ मे० ॥ सत्य सुतारा तें कह्यो रेहां, वचन होवे ए सत्य ॥ मे० ॥ शुभ अशुभ नवि जाणीयें रेहां, दैव करे सो सत्य ॥ १३ ॥ मे० ॥ क्षणमांदे प रगट थयो रेहां, कालरनो कणकार ॥ मे० ॥ वाग्य तिहां ति देहरे रेहां, सूरज उगणहार ॥ १४ ॥ मे० ॥ चोथी ढाल कही इसी रेहां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) बहुत कीया अन्याय ॥ मे ॥ ऐसा फुःख हरि चंदका रेहां, क्युं करी कहेणां जाय ॥ १५ ॥ मे ॥ सुखीयां तो माने नहीं रे हां, कनकसुंदर कहे जोय ॥ मे ॥ सोई सत्य करी मानशे रे हां, जिसने वीती होय ॥ १६ ॥ मे ॥ ॥दोहा॥ ॥ नारि वचन प्रमाण करि नृप उठ्यो परजात ॥ पहोतो मारग मांगवी, करम तणे अवदात ॥१॥ सुंदरि शिर मूकी तृणो, श्म दाखे तिणि वार ॥ व्यो कोई उत्तम पुरुष, वेचं माहरी नारि ॥२॥ ॥ ढाल ॥ पांचमी राग धन्याश्री॥नोलीडा हंसारे विषय न राचीयें ॥ ए देशी ॥ तव एक ब्राह्मण आयो तिण समे, पूजे नृ पने रे सोय ॥ मोल सुणावो रे मुजने नारिनो, लाख मोहर एक होय ॥ १॥ नारी वेचेरे हरि चंद पापणी, सहस ग्यारेरे दाम॥एत्रांकणी॥ सही सूधेरे देशुं एहना, जोडे ताहरे काम ॥ ॥ ना ॥ २॥ राये मान्या दीधा वेगशें, खेर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) चाख्यो वर नार ॥ तब राजा धसके धरणी ढल्यो, मृतक तणे अनुहार ॥३॥ तव पटराणी गाढी गाबरी, आघो पग न नराय ॥ पाली परवस श्रावी शके नही, वयण न कहेणोरे जाय ॥४॥ ना ॥ प्रीतम सामुरे जोवे पदमणी, बेटो आवे रे लार ॥ बेडे वलग्यो रे रढ मांगी रह्यो, सुण माता सुविचार ॥५॥ ना ॥ साथें ते डोरे मुझने मात जी, न रखें राजा पास ॥ व ति देवरावो रे दाम ते महारा, कहे कुमर रो हिताश्व ॥ ६॥ ना ॥ दश मस वाडा उदरें तें धस्यो, दोहिला गर्लावास ॥ वरस दसां लगे सारे ताहरे, के सारे सुर वास ॥ ७॥ ना ॥ पाला श्रावो फरी एक वारसुं, ब्राह्मण वेद नंमार ॥ तातनणी समजावी द्यो तुमें, दश ह जार दिनार ॥ ॥ ना ॥ ब्राह्मणने मन करु णा उपनी, फिर आयो तत्काल ॥ सुंदर श्रावी तारालोचनी, मूर्गगत नूपाल ॥ ॥ ए ॥ ना॥ राजा बांट्यो ताढा नीरशुं, विंऊणे वीं वाय॥ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) रिचंद राजा उठि बेठो थयो, धन विष रह्यो विलाय ॥ १० ॥ ना० ॥ जोवा लाग्यो नारि नजर जरी, रोवा लाग्यो ताम ॥ कहेवा लागी तारालोचनी, सुपीयु श्रातम राम ॥ ११ ॥ ना० ॥ धीर धरो पीयु डा साहस धरो न करो विरह विलाप | लिखियो विधाता बही रातनो, सुख दुःख सदेशो याप ॥ ॥ १२ ॥ ना० ॥ सांजल कंता को केहनो नहीं, ए संसार असार ॥ नाम संजारो श्री जगवंतनुं, जवो दधि तारणहार ॥ १३ ॥ ना० ॥ जेम सरजे बे तिम प्रभु थायसी, सुख, दुःख राज नमार ॥ लिख्यो लेख शिर कुण टालि शके, जे सरज्यो किरतार ॥ ॥ १४ ॥ ना० ॥ ढाल वैरागनी कही ए पांचमी, राणी पे धीर ॥ राग धन्याश्री कनकसुंदर कहे, राजा साहस धीर ॥ १५ ॥ ना० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ बेटो मातने वीनवे, हुं श्रावश तुम साथ ॥ वली देवरावो दश सहस्स, मोहर पिताने हाथ ॥ १ ॥ वचन सुणी बालक तणां, करुणा मनमें प्राण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) बाल वीबहो मातने, हुँ किम करुं सुजाण ॥२॥ ॥ ढाल बही॥रागसारंग मल्हार॥ देखो गति दैवनी रे॥ ए देशी॥ ॥ हवे ते ब्राह्मण वीनवे रे, इणिपरे वचन वि चार ॥ ले हुँ देखें तुऊने रे, दश सहस दीनार ॥ ॥१॥ हैहै गति हरिचंदनी रे, कर्मविटंबण हा र॥ है ॥ एकणी ॥ वेच्यो पुत्र महीपति रे, रमऊमतो रोहिताश्व ॥ पटराणी जोती रही रे, वालम लील विलास ॥२॥ है ॥ चाल्यो बा जण चोपशुं रे, चाख्यो राजकुमार ॥ चाली ता रालोचनी रे, राजाको जीउ लार ॥३॥ है ॥ हीयो न फूटे वज्रनो रे, आज न बेटे काय ॥ प्राण न बूटे पापीयो रे, मुफ तन मन ले जाय ॥४॥ है०॥ यतः॥ मुफ हीयडो अतिहे नितुर, प्यारी तणे विडोह ॥ फाटी शत खंम होवतो, तो हुँ जाणत मोह ॥ १॥ पाणी तणा प्रवाह, आंखे दीसे श्रावणा॥ जाणत हेज हीयाह, लो ही श्रावत लोयणे॥२॥ढाल पूर्वली॥दीशें फिरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) फिरि देखती रे, जाती रोती नार ॥ रोतें रोयां पंखीयां रे, सघलाही तिण वार ॥५॥ है ॥ हो वालिमजी कंतजी रे, हा हा प्राण आधार ॥ कब मुख पेखीश प्रीतमा रे, मन मोहन जरतार ॥६॥ है ॥ वनिता पहोती वेगला रे, बाडी श्रावी जीत ॥ध्रसकेशुं धरणी ढल्यो रे, राय थयो चलचित्त ॥ ७ ॥ है ॥ लांबी बाह पसा रीने रे, मूकण लाग्यो घाह ॥ प्रिया प्रिया मुख उच्चरे रे, विलवंतो नरनाह ॥ ७॥ है ॥ केमें इंमा फोडीयां रे, सरोवर जांजी पाल ॥ के तरु कूपल तोडीयां रे, तोडी नीली माल ॥ ए॥ है ॥ राखी थापण पारकी रे, दीधां कूडांक लंक ॥ माडीशुं पुत्र विद्रोहीयां रे, के में कीधा वियोग ॥ १० ॥ है० ॥ के परनारी अपहरी रे, के किधी परतांत॥के डं पुष्ट जे पापीयो रे,जीम्यो आधी रात ॥ ११ ॥ है ॥ के में ब्राह्मण मारी या रे, के में मारी गाय ॥ के में साधु संतापी या रे, के में दीधी लाय ॥१५॥ है ॥ के में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) व्रत लइ कापीयां रे, के मारी जूं लीख ॥ के कूडां व्रतमें कीयां रे, के में जांजी दीख ॥ १३ ॥ है० ॥ के सुत शोक तथा दण्या रे, के में लीधी लांच ॥ के खट दरसण पोषिया रे, पर मारगमांहिं राच ॥ ॥ १४ ॥ ० ॥ के पासीगर हुं थयो रे, के में पाडी वाट ॥ के में गुरु जन लोपीया रे, के पाड्या घर हाट ॥ १५ ॥ ० ॥ के में साप विणासी या रे, बिमें रेड्यो नीर ॥ माढ बंधावी जीव नी रे; ते सहु सहे शरीर ॥ १६ ॥ ० ॥ पाप अघोर कीयां इस्यां रे, कहेतां न यावे बेह ॥ आज उदय श्राव्या तिके रे, जोगवे प्राणी ते ॥ ॥ १७ ॥ धि कमाई माहरी रे, धिग् जीव्यो मुफ आज || नारि विना बेटा विना रे, जीव्यां केही काज ॥ १८ ॥ है० ॥ कुण जाणे थाशे किस्युं रे, पद संपद होय ॥ कृत्य कमाइ आपणी रे, होणहारते होय ॥ १५ ॥ ० ॥ बवी ढाल पूरी य रे, कनक सुंदर मुनिराय ॥ विवरी शु वखातां रे, हिडे गर्व न थाय ॥ २० ॥ | है | || Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ॥दोहा॥ ॥ वलि वाजे विरहलहरी, वलि वलि करे विलाप ॥ मन जाणे जश्ने मबुं, घणुं पढतावे आप ॥१॥ बहु गुणवंती गोरडी, चंद वदन कटि दीण ॥ आशाबुब्धी साहीधणी, में वेची मति हीण ॥२॥रे मन दृष्ट दरात्मा. पापी कर कठोर ॥ तूं किम उडी नां गयो, करी अबलासुं जोर ॥३॥ हा हवे हुँ जाउँ किहां, केहसुं करूं आलोच ॥ महोर हजी थाके घणी, सबल पड्यो एम सोच ॥४॥ वेंची तारालोचनी, वेच्यो रा जकुमार ॥ वेच्या मंदिर मालीयां, राजाधि नं मार ॥५॥ हजीय दंम आगे लग्यो, करीयें क वण उपाय॥के अकर्म करणी करूं, के मुज वाचा जाय ॥६॥श्म चिंतवतां चित्तमें, सूर गयो पर तीर ॥ श्रीहरिचंद महिपति, जव्यो साहस धीर॥ ॥७॥ दिन दूरंतां निर्गम्यो,रयणी रोयंति विहाय॥ सऊन पाखे जीववो, ते जीव्यो श्योमाय ॥७॥ किण मंदिर सूतो जश्, आशा बुब्ध निराश ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) खिण जागे खिण विलववे, खिण नाखे निश्वास॥ ॥ए॥चंकीधो चांजणो, राय थयो चलचित॥ मधुरखरे मन फुःख नरे, गावे विरही गीत॥१०॥ दिवसे तूटित तारका, ज्योती जागि असमान ॥ विरही जनके कारणें, चंद चलावत वाण ॥११॥ ॥ ढाल ॥ सातमी राग सारंग मल्हार ॥णे ____ अवसर तिहां बनो रे ॥ ए देशी ॥ सुण ससीहर एक वीनती रे लाल, तुमने कहूं कर जोडि रे॥ चंदलीया ॥ में वेची वर वा लही रे लाल, लागी सबली खोडि रे ॥१॥ ॥०॥ कहेने संदेशो मोरी नारिन रे लाल, तुं मुज प्राण आधार रे ॥ चं० ॥ क० ॥ तुं सहुने देखे सहि रे लाल, तुजने देखे संसार रे ॥२॥ ॥ चं० ॥ क० ॥ हुँ सबलो पापी ह रे लाल, कीधी घात विश्वास रे॥ चं॥ पुत्र सहित हाथ पारके रे लाल, वेची वेची नारि निराश रे॥३॥ ॥चं ॥ सुंदर सुरंगी मादरी रे लाल, माहरी जी वन जीव रे ॥ चं० ॥ रोतां कुण मुज राखशे रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) लाल, केही केही की जे रीव रे ॥ ४ ॥ चं० ॥ वा लही विरंगी रंगी में तजी रे लाल, मन विलखाणी नारी रे ॥ चं० ॥ समय प्रमाण कीयो सती रे लाल, बहु दुःख हीया मऊार रे ॥ ५ ॥ चं० ॥ पति जति महोटी सती रे लाल, शीलवती मन शुद्ध रे ॥ चं० ॥ हरिणाक्षी पर हब हुइ रे लाल, मोहन वेलि मन शुद्ध रे ॥ ६ ॥ चं० ॥ ऊर नि शासा मूकती रे लाल, हियडे विरह प्रकाश रे ॥ ॥ चं० ॥ बहुं दुःखें नूपति पूरियो रे लाल, नयणे पावस मास रे ॥ ७ ॥ चं० ॥ ग्रथिल पणे गीत गावतो रे लाल, करता निकरणां नीर रे ॥ चं० ॥ चंद्र प्रतें संदेशडो रे लाल, दाखे दाखे दुःख अ पार रे ॥ ८ ॥ चं० ॥ चंदे मानी वीनती रे लाल, जश्ने को हित जाणि रे ॥ चं० ॥ यांख फरुकने अंतरे रे लाल, पाठा दीधा आणि रे ॥ ए ॥ चं० ॥ सुण राजा कहे चंद्रमा रे लाल, संदेशा सुविचार रे ॥ चं० ॥ पटराणीयें तुजने कह्या रे लाल, रोति रोति अबला नार रे ॥ १० ॥ चं० ॥ सुंदरि सं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) देशा मोकले रे लाल, प्रीतम प्राण आधार रे॥ ॥चं ॥माहरे मन पीयु तुं वस्योरेलाल, जिम चातक जलधार रे॥११॥ चं० ॥ सुं०॥ ब्राह्मण मृजने वेश् चल्यो रे लाल, जीत तणे अंतराल रें ॥ चं॥ध्रसके\ धरणी ढली रे लाल, मूळणी तत्काल रे॥१२॥ चं० ॥ सुंग ॥ विधुर मन थयो माहरूं रे लाल, कंतडो न दीसे केथ रे॥ चं० ॥ नीर बांटी चित्त वालियुं रे लाल, उवि बेठी थश्ते थ रे ॥ १३॥ चं ॥ सुं० ॥ वलि चित्त चेतन आवियो रे लाल, हा मुफ वेची नाथ रे॥ चं०॥ विरहे विलाप करे इस्या रे लाल, श्रावी बीजाने हाथ रे ॥ १४ ॥ चं० ॥ सुंग ॥ ब्राह्मण घरे पो हती सती रे लाल, रहती शील अखंग रे॥॥ तुझ्ने एम कहावीयो रे लाल, पीउ फुःख म कर प्रचंम रे ॥ १५ ॥ चं० ॥ सुंग ॥ साहसधीर प्रा णांतमे रे लाल, बंधन बांध्यो ज्यु कोय रे ॥चं॥ लाख महोर विधे पूरजोरे लाल, जिम मन निर्जय होय रे ॥ १६ ॥ चं० ॥ सुं ॥ ढाल सुरंगी सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) तमी रे लाल, गाथा शोले एह रे ॥ चं० ॥ कनकसुंदर कहे सांजलो रे लाल, हवे आगल थयुं जेह रे ॥ १७ ॥ चं० ॥ सुं॥ ॥दोहा॥ ॥राजा हरिचंद साहसी, उठ्यो थयोप्रजात॥ राणी तारालोचनी, नली कह| ए वात ॥१॥ सोंपी सागर शेग्ने,महोरसहसएकवीश ॥राजा रण मांहे गयो, नदि तीर अवनीश ॥२॥ बेगे तरुवर वासतले, बोडयुं मूल सरूप ॥ अंग वि लेपण धूलनो, निकुक रूप सरूप ॥३॥ ॥ ढाल आग्मी ॥ राग केदारो गोडी ॥ कु मरी जाणुं कारज सीधुं ॥ ए देशी ॥ ॥एक चंमाल तिहां आयो, राजा हरिचंदे बो लायो॥ करी लंगोटी करमें लाठी, बोले वचन वाणी पण काठी ॥१॥ काल रूप को कलकलतो, गालि देतो बलतो उबलतो ॥ धर्म तणी मति कीधी पाठी, जाल ग्रहिने आणी माजी ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) दूहव्यो राणो जिम तडके. लघु बालक देखिने नडके ॥ माखी दीले करे गुंजार, कूतरा चितरा श्रावे लारं ॥३॥ पाप करेजे अति असुहातां, उढण वस्त्र रूधीरें रातां ॥ अति पुरगंध उबाले अंबर, दीगो श्रीहरिचंद नरेसर ॥४॥ कहे चं माल सांजल हुं नाखू, रही शके तो तुने हुँ राखं॥ मृतक तणा खापण नित ग्रहणा, आधी रात म साणमें रहेणां ॥ ५॥ मुझ घरका नित वहणा पाणी, रहेगा तो रहो श्म जाण ॥ मानी वात घरे देश आयो, उत्पति चोथो नाग लिखायो॥ ॥६॥ काज अकाज करे जगजाणे, घर चंगाल तणे जल आणे ॥ राते मसाण सदा रखवाले, आपणो सत्य किमें नवि टाले ॥७॥ कोरा अन्न तणो आहार, स्नान करिने जिमे एक वार ॥ कु ल रीत किमे नवि मूके, सत्य शील साहस नवि चूके ॥ ७॥ आराधे जगवंत वीतराग, मनमांहे राखे वैराग ॥ ए संसार असार अपार, उःख अ नेक तणो नंमार ॥ ए ॥ कर्म प्रमाणे सुर नर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) खूट्या, कर्म अग्निश्री को न बूट्या ॥ कर्मे राम पांमव वन वासी, कर्मे सुरपति कष्ट प्रकासी ॥ ॥ १० ॥ कम कुबेरदत्ते मात विलसी, हरिचंद नगर विकाणो काशी।कम रावणे सीतापहारी, कमें माख्यो ना मोरारी॥११॥ कर्मे कौरवनो कुल खोयो, कर्म प्रमाणे समुख विलोयो । कर्म प्रमाणे रिसह जिणंद, पारणुं न लडं जगदा नंद ॥ १२॥ पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधा,कर्म प्र माणे कम फुःख दीधां ॥ कर्मे स्वामी श्रीवर्क मान, बिहुँ उदरें आया उधान ॥ १३॥ एहवो कर्म तणुं परिमाण, कर्म प्रतें नवि चाले प्राणि॥ चंद सूरज नमता न विलंबे, वलि म्लेड जे राहु विटंबे ॥१४॥ एह याठमी ढाल सुणाश, कर्म तणी गति देखो ना॥ मत करशो मनमांहि व डा, दण एक आपणी होय पराश॥ १५ ॥ च उदे चोकडी रावणे हारी, राजा मुंज थयो जी खारी॥ बोडी गयो रणमें नल नारी, कनकसुं दर कहे वात विचारी ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) ॥ दोहा ॥ ॥ काल दंम चंमाल घरे,रहतो इणिपरे राय॥ कार्य कार्य सहुकरे, हरियो नाम कहाय ॥१॥ कर्म कमाईनोगवे,शुन अशुन फल जीव ॥बेह न श्रावे पापनो, त्यां लगि दुःख सदीव ॥२॥ मन मूरखमम मुंफतुं, न मिटे सुख उःख लीह ॥ विण सरज्या मेलो नहीं, ज्यां लगि वांका दीह॥ ॥३॥ मन संवर करि धीर धर, म कर मिल गरी माम ॥ कुण जाणे कबही वसे,उजड खेडा गाम ॥४॥रे मन म करे उरतो, देखी परायु राज ॥ तड फड मरेसी सिंह ज्यु, सुणि श्राव णकी गाज ॥ ५॥ आशा विलुछा माणसां, क दिही मिलणो होय ॥ कादव पामी वरजीयुं, जे उर फटणो न होय ॥६॥ आशा संपें अखय धन, उपकारी जीवंत ॥ पंथि चले देशावरें, व रखां सफल फलंत ॥॥गाहा।। नवरस विलास समये, कंठं गहिऊण मुक्क निस्सासं ॥ सारयणी सो दोहो,तं पुःखं सहए हीयए ॥॥श्लोक॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 49 ) विधिना च कृतः श्रेष्टो यो निःश्रासो विनिर्मितः ॥ अर्द्ध दुःखं समं येन, गृह्णीयाद्विरही जने ॥ ९ ॥ ॥ दोहा ॥ विरही जन सहको मिले, यशाने आधार ॥ मिल डुली वल्लही, स्वहस्तें वेची नारि ॥१०॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग मारु || प्रीत लागी हो कान्हा, प्रीत लागी हो ॥ ए देशी ॥ ॥ मिलण डढेलो हो, वालहि मिलण दोहेलो हो ॥ मिला दो हिलो माननी, नहीं ताने सो हिलो हो ॥ १ ॥वाल हि० ॥ एक दिन मोकुं सोहना, वर सेज विद्याया हो ॥ रंग रमणी गयगामिनी, जरसुं उर लाया हो ॥ २ ॥ वा० ॥ एक दिन आज इस्या जया, सुतां समसाणे हो ॥ सेज बिठाया काजका, मध्यरात्रि मसाणे हो ॥ ३ ॥ वा० ॥ एक दिन मोकुं सोहता, दीवान जुडंता हो ॥ ग यंद पट्टाधर घूमता, आगें मल्ल लडता हो ॥ ४॥ ॥ वा० ॥ एकदिन आज इसा बन्या, वरते जयं कारि हो ॥ नूतलडे रौद्रामणा, व्यंतरदे जारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) हो ॥५॥ वा ॥ एकदिन मोकुं सोहता, सिर बत्र धरंता हो ॥ शूरसुजट आगे खडां, कर जोडी रहंता हो ॥६॥ वा०॥ एक दिन आज इस्या नया, शिर धूणंता हो ॥ आगें मृतक बिहा मणां, पहिरा ते दीयंता हो ॥ ७॥ वा० ॥ एक दिन मोकुं सोहता, नीसाण घुरंतां हो ॥ चिहुं दिशे चंड मनोहरु, वर चमर ढलंतां हो ॥॥ ॥वा॥ एक दिन आज इस्या बण्या, नूति का हुली वाजे हो ॥ जे किरतार स्वयं करे, ते स घलो बाजे हो ॥ ए ॥ वा ॥ सुख फुःख सही ए आपणा, अनेरासुं न कीजें हो ॥ दे परमे श्वर सींगतो, ते साँग सहीजें हो ॥१०॥वा॥ ढाल कही नवमी नली, मारुणी रागें हो ॥ क नकसुंदर मुनीश्वरें, ए विरचि वैरागें हो ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ श्म विरहातुर नूपति, रहतो एहवी ना ति ॥ एकवार मलवा तणी, पटराणीशुं खांति ॥ ॥१॥ परघर जाश् शके नही, राणी न शके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) श्राय ॥ मनह मनोरथ उपजे, मनही मांहिं स माय ॥२॥ मनकी आशा पूगशे, मिलशे ना रि संयोग॥ दिन वलियां वलसे सहु,टलसे विरह वियोग ॥३॥ गाहा ॥ आसा न दे मरणं, विणा मुयेण न लपये पेमं॥अवसरजे नमरिजर, तो लऊसामी सुंदरिहो॥४॥आसा समुह पडि यं, चिहुं दिसिचाहंति विम्मला नयणी ॥ हे कोश समडो, जो बाह विलंबणं देश ॥ ५॥ दोहा ॥ बाह विलंबण जे दीये, सहुथी ते समरब ॥ र यणायर बुडंतडा, कवण पसारे हब ॥६॥ध न सो दिन वेला घडी, सुंदरि मुख सुविहाण ॥ निरखिश तारालोचनी, जीवत जन्म प्रमाण ॥ ॥७॥ श्राशा अमरी अनेक युग, मरि मरि गये ज्यु लाख ॥ पुष्य मरे परिमल रहे, लोक नरे ए साख ॥ ७॥ हवे सुणजो राणी तणो, एक मना अधिकार ॥ ब्राह्मण घर जिणि परे रहे,ते विरतांत विचार ॥ ए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ॥ ढाल दशमी ॥ राग वसंत ॥ सुमति जिणंद जूहारीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे राणी ब्राह्मण घरे,रहेती फुःख अपा रो जी॥ श्रीपरमेश्वर ध्यावती, समरंती नवका रोजी ॥१॥शील सुरंगी चूनडी, सोहे तन श णगारोजी॥टीकाकजाल परिहस्या,सरसतज्यो आहारो जी ॥२॥ हार तज्यो काया तणो, मेख लनो ऊमकारो जी॥ नवो कंचुक पण परिहस्यो, ज्यां न मिले जरतारो जी॥३॥शी॥ बोड्या नेउर वाजणा,कर कंकण न सुहायो जी ॥तिलक तज्यो वली बहिरखो, हुलडी कंठ रहायो जी॥ ॥४॥शी० ॥ स्नान मजान नूखण तज्या, कुं मल युगल कपोलो जी ॥ राख्यां मंगलिक का रणे, चीर तज्यां रंगरोलो जी ॥५॥ शी० ॥ काथों पानसोपरडी, पीउ विण रंग न लागे जी ॥ मेंदी कुंकु कमकमा, अंगे अग्नि ज्युं लागे जी॥ ॥६॥शी० ॥ दर्पण दर्शन मुख तणो, राहु ग्रहे मुख चंदोजी ॥ चंद किरण चंदनविना दावानल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) पुःख दंदोजी ॥ ७॥ शी० ॥ टीकी काजल रा खडी, गोहीरा जिम गाढे जी॥ परड पाश्ल पग वीडीया, मेखलडी कडि वाढे जी ॥ ॥ शी० ॥ विरहे व्याकुल विरहणी, विरह वसंत शत व्या पेजी॥ काया कापडा दरजी ज्युं, कातरणी तन कापे जी ॥ ए ॥ शी० ॥ फूल्या मरवा मोघरा केसु चंपक फूल्यो जी॥ जाणी दावानल जिस्यो, ज्वालानलनी फुल्यो जी ॥ १० ॥ शी० ॥ देखी सरोवर जल नस्यो, सेतो लहर हलूरोजी॥ काल नुजंगम फणफटी, मूके फूक फररोजी ॥ ११ ॥ ॥ शी० ॥ प्राण पीयारे कंतविना, सविसुख तन न सुहायो जी॥कोकिल मोर पपीयडा, प्रशमन ज्यु ऽखदायों जी ॥१॥ शी० ॥ उदासीन राणि रहे, बूटे वेणी दंमो जी ॥ जोगिण ज्युं पियुपियु जपे, पाले शील अखंमो जी ॥ १३ ॥ शी० ॥ बह अहम मास खमण करे, घृत विख जेम वि कारोजी॥अरिहंतदेव आराधती,ध्यान धरे नव कारो जी ॥ १४ ॥ शी० ॥ रूप अनुपम सती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) तणो, सूरज ज्योति प्रकाशो जी ॥ एक दिन ब्रा ह्मण वीनवे, वचन सुणो सुविलासो जी ॥१५॥ ॥शी ॥ विप्र नणे सुण सुंदरि, परिहर अंग उदासो जी ॥ मुजसेंती सुख जोगवो, नवरस जोग विलासो जी ॥ १६ ॥ शी० ॥ दासी किम तुजने करूं, तुंमहोटाघरनी नारिजी॥तुंपटराणी माहरे, नोगव नोग अपार जी ॥१७॥ शी०॥ सोवन खाट हिंगोलडे, केलि करो मनरंगोजी॥ मनोवंबित नोजन करो, अंगधरो उबरंगोजी॥ ॥ १७ ॥ शी० ॥ हार मोर मन मानतो, साडी चीर सिणगारो जी॥हुं तुज आपुंकरी मया, श्रा लरण अधिक उदारो जी ॥ १ए ॥ शी० ॥ रत्न कनक मणि मुण्डी, कोडी सवानो हारोजी ॥ तुजने सोहे सुंदरी, हुं तुज शिर जरतारो जी॥ ॥२०॥ शी० ॥ तुं मुह मागे जेटली, आएं दासी अनंत जी॥ तप करी काया कां दमो, नांजो मननी ब्रांतो जी ॥१॥ शी० ॥ जाणे पावक घृत तणो, नाम्यो वचन विचारो जी॥लागी आग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) शरीरमें, शील न खंखें सारो जी ॥२२॥ शी॥ कुवचन ब्राह्मण उष्टना,राणी मन न सुहायां जी॥ दशमी ढाल वसंतनी, कनकसुंदर गुणगायाजी॥ ॥दोहा॥ ॥ वचन इस्या राणी प्रतें,बोल्यो विप्र विपुण्य॥ दाधा उपर फोफडो, जाणे नेल्यो खूण ॥१॥ राजाने राणी तणा,कर्म तणी गति जोय ॥ एक एक ढुंती अधिक, फुःखमांहे फुःख होय ॥२॥ कुवचन ब्राह्मण पुष्टनां,सुणि दव लागो शरीर ॥ शीयलशुं अढमन सुंदरी, कहे सुणो वड वीर ॥ ॥ ढाल ग्यारमी ॥ राग वैराडी ॥ जलालियानी ॥ ए देशी ॥ ॥ वचन सुणी ब्राह्मण तणारे,कहेवा लागी एम ॥वीरा ब्राह्मण ॥चतुर माणस तुमें एहवा रे, कथन कहीजें केम ॥१॥ वी० ॥ ए आंकणी ॥ शील न खंॐ काया खंमगुंरे,पडी रे पटोले गांठ ॥ विण ॥ लोहे लोह पड़ी जिसीरे, परबति राय परांठ ॥२॥ वी० ॥ शील सबल हीरा जिस्योरे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) जांज्यो न लाजे तेहावी॥ सूरज पलटे उगतो रे, नियम न पलटे एह ॥३॥ वी० ॥ शी० ॥ सो ने श्याम लागे नही रे, रयण न कांखो होय ॥ ॥ वी० ॥ विषधर चंदन वींटीयो रे,वास न मूके तोय ॥४॥ वी० ॥ शी॥ रांधण इंधण हुँ क रूं रे, कहोतो आणुं नीर ॥ वी० ॥ कहोतो वा सीएं करूं आंगणे रे, व्रत न खंडं मोरा वीर ॥ ॥५॥ वी० ॥ शी० ॥ एहवां रे वचन उच्चारती रे, कां न पड्यो श्राकाश ॥ वी० ॥ कां न मुश्त काल हूरे, न हुओ प्राण विणास ॥६॥ वी०॥ ॥शी ॥ तुं मुज बंधव धर्मनो रे,तुं मुज पिताने गम ॥वी० ॥ जो तुनलु चाहे आपणुं रे, ए हवं मत दाखे नाम ॥ ॥ वी० ॥ शी० ॥ ए धिक् करणी ताहरी रे, ए धिक् तुज आचार ॥ वी० ॥ वारु त्रिवाडी ताहरो माहाजनोरे, षट कर्म तुजधिःकार ॥॥वीशी॥ जो तुं करी स हठ एहनो रे,तो मरसुं एकताल ॥वी॥ सां जली वचन सतीतणां रे,विप्र शिर पडी वज्रता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ल ॥॥ वी० ॥ शी॥ वलतोरे विप्र बोल्यो नहीं रे, लाज्यो हृदय मकार ॥वी०॥ धन धन तारा लोचनी रे, शील राख्यु एणी वार ॥१०॥वी॥ ढाल रसाल ग्यारमी रे, वैराडी ए राग वी॥ कनकसुंदर महिमा शीलनो रे, प्रगट्यो जग सोजाग ॥ ११॥ वी० ॥ शी० ॥ ॥दोहा॥ ॥वलतो ब्राह्मण वीनवे, बेहेनी सुणो मुजवा त॥राखो शील नली परे, में तुज परखी मात॥ ॥१॥ ए सघj घर ताहरूं, हुं तुज बंधव जे म ॥ में वचने करी दुहवी, खमजो करजो खे म ॥२॥ सति हटकथी कंपीयो, मत दे मुज ने शाप ॥ त्रिविध पणे खमजो वली, लाग्यो मुजने पाप ॥३॥ पाप कटे तुज नामथी, शी लतणे अधिकार ॥ में तुज मानी माजणी, ब हिन तणे अनुहार ॥४॥श्म अपराध खमा वतो, दीगे ब्राह्मण तेह ॥ सति सुतारा लोच नी, धरे धर्मशुं नेह ॥ ५॥ सुखे रहे दिन वो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) लवे, ध्यान धरे नवकार ॥ फुकर तप करणी करे, शील अखंमित सार ॥६॥ हरिचंद राय तिहां रहे, तापस लाग्या लार ॥ पण राजा चू के नही, सत्य सबल अधिकार ॥७॥ ॥ ढाल बारमी॥राग सोरठ॥ यतणीनी देशी॥ ॥एक दिवस सुतारा राणी, सहजे मन उल ट श्राणी ॥ वली पुरोहितनी प्रोतापी, गई नर ण सरोवर पाणी ॥१॥ पहोती सरोवर अनि राम, तिहां बाग अजे विसराम ॥ शिव निमित्त चंपकनी पांती, लेवा नर यौवन माती ॥२॥ बागमें वीणवा ते आई, हरियो दीयो वेग पठा ६॥ को तोडो रखे वनराश, कालदंम चंमाल री उवाच॥३॥चंमाल तणी ए वाडी, देखो जण जा उघाडी॥श्रावती दीठी पटराणी, हैहै ए जी वन प्राणी ॥४॥ गती जरी उःख समाणी, रो मंचक आंसु खूहाणी ॥ वलतां मन जाय न व लीयो, टलतां पग जाय न टलीयो ॥५॥ वर जंतां न जाए वयणे, निरखंता न जाए नयणे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) हिडामें दरख न मावे, राणी मन प्रीतम आवे ॥ ६ ॥ वलि वेदन विरहे संतापे, घन नयण घटा र पे | वलि प्रोहितणी समजावे, दुःख म कर दिवे किस्युं पावे ॥ ७॥ धन धर्मी बोले कंता, वालेसर तु गुणवंता || मेलशे दैवतो मिलरयां, दुःख विरह सह निकलश्यां ॥८॥ धन सो दिन संग सुरंगी, मृगा नयणी त्रिया मनरंगी ॥ चंद्र जाए तो कुलचंगी, लहस्यां सुख वास अनंगी || निठ निव निहोरे कीधो, डुजी नारी उलं afa ॥ राणीने घेर लेई आई, सही सुद्ध कर जे सहराइ ॥ १० ॥ कहे ए निकली जासे, चं काल प्रीतमनी पासें ॥ केहने पढी दोष म दे जो, पेहलेथी जतन करेजो ॥ ११ ॥ एहनो दी वो श्राज तमासो, एक दुःख अने वली हासो ॥ शुं घणा वचनशुं कहीयें, राखीयें तो सोहीरा रहीयें ||१२|| बारमी ढाल सोरठ रागे, सुणतां पण मीठी लागे ॥ संपूर्ण खंग कह्यो त्रीजो, रा णीने रखे को पतीजों ॥ १३ ॥ जोतां मति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) नासी जाय, जाणहार तिके न रहाय ॥ पुत्री करी विप्रेमानी, ते साच वचने वींधाणी ॥ १४ ॥ आश्वास घणो वलि दीधो, राणी मनहाथें लीधो॥ जावड गड कमलदिणंद, सुरतरु जेम सुगुरु सु रिंद ॥१५॥ मुनिरत्न नमुं उवकाय, जिणे दीधो अंग उपाय ॥ पादांबुज तास पसाय, कहे कनक सुंदर मुनिराय ॥१६॥ इतिश्री हरिचंद तारालो चनीचरित्रे सत्यशीलाधिकारे स्त्रीपुत्र विक्रय क रण सत्यशील सुदृढ करण नवरस वर्णने चतु रसे वर्णननामो तृतीयः खंमः संपूर्णः ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थखंडः प्रारन्यते॥ ॥ ढाल पहेली ॥ चोपाश्नी ॥ रागमारू ॥ ॥ चोथे खंग प्रणमुंए चार, गुरु गणपतिरवि ब्रह्म कुमार ॥ सरस चरित्र कहीश उपगार, श्री हरिचंद तणो अधिकार ॥१॥ हवे अयोध्यो नगरी तिहां, दिव्य रूप तापस बे तिहां ॥ पूरव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) वैर रायशुं रोष, दाखे बल बल मन धरि शोष ॥॥ तो पण सत्यवादी नूपाल, नाम गम कुख गोपवि काल ॥अकल अबीह थको अणजीत, सत्त न खंभे राय वदीत ॥३॥ तापस मनमांहे चिंतवे, एक सबल बल करवो हवे ॥ तिणे बले अमग रहे जो एह, तोसत्यवंत नहि संदेह ॥४॥ श्लोकः राज्यं दत्तं धनं दत्तं,सत्यं शीलं नखं मितं॥ हरिश्चंउसमो त्यागी, न नूतो न भविष्यति ॥५॥ चोपाय॥ मुखक नासे देखी मंजार, नकुल देखी नासे विषधार ॥ सिंह देखी मृग नासे जेम, श्वा न देखी हुड कंपे तेम ॥६॥ देखी सीचाणो उडे चर्ड, तिम एहनो सत्त न रहे घडं। ॥ अमरूठे अविहड सत्त रहे, तो सुरपति न्याही गुण कहे ॥७॥ जोशुं एहना सत्यनी वात, वली खेलशुंब हु परें घात ॥ एम सबल छुःख देवा नणी, 3 ष्ट बुद्धि कीधी मन तणी ॥॥ चोथा खंमनी प हेली ढाल, सुंदर मारू राग रसाल ॥ कनकसुंद र कहे एह वृत्तांत, सत्य न चूके ए सत्यवंत ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 30 ) ॥ ढाल बीजी ॥ राग आशावरी सिंधु ॥ विषय न राचीए ॥ ए देशी ॥ || हवे तापस वली विया रे, काशी नगर मकार ॥ रूप रच्यो माकण तणो रे, मारे पुरुष श्र पारो रे ॥ १ ॥ कर्म न बूटीयें, कर्म विटंबण हारो रे ॥ कहो कीजें किस्युं, सुख दुःख होये संसारो रे ॥ कर्म० ॥ २ ॥ ए आंकणी ॥ तापस तेहिज पापीया रे, मारे लोक अांत ॥ हाहाकार हू घणो रे, लोक हुआ जयत्रांतो रे ॥ कर्म० ॥ ३ ॥ राजा पडद वजडावीयो रे, माकणी जाले जेह ॥ तव निश्चें हुं तेहने रे, मुह माग्यो धुं ते हो रे ॥ कर्म० ॥ ४ ॥ ते तापस माकणि विद्या रे, मंत्र तं त्र अबेद || वली छाया मंत्री कन्हे रे, मंत्र वादी हुआ तेहो रे ॥ कर्म ॥ ५ ॥ होम अगर मलयागिरि रे, बेठा करवा ध्यान ॥ रायें कह्यो आणी इहां रे, जे जग नोख नवीनो रे ॥ कर्म० ॥ ॥६॥ श्राँझी झाँ कुं मंत्रे जपे रे, श्रोत्तर सत्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) वार ॥ आमा पडदा बांधीया रे, तिल घृत होम अपारो रे ॥ कर्म॥७॥ सति सुतारा लोचनी रे,करी माकिणनो वेश॥हाथ बुरी रुछिरें नरीरे, आणी पास नरेसो रे ॥ कर्म॥७॥ तेडाव्यो राजा तिहारे,कालममचंमाल॥हरियो पणसाथें श्रो रे, दीसंतो विकरालो रे ॥ कर्म० ॥ ए॥ राय कहे चंमालने रे,मुंमो एहनो शिश॥ खर च डावी सूली धरो रे, जय जय तुं जगदीशो रे ॥ ॥ कर्म०॥ १०॥ कालदंग हरिया प्रते रे, हुकम कीयो अविनीत, ए माकणने जालीने रे, माथो मुंमि तुरंतो रे ॥ कर्मः ॥ ११॥ एह तो माहारी नारी रे,सतीय शिरोमणी सार ॥ पापी पैशून्य विचें पड़ी रे, कर्म नडिया निरधारो रे ॥कर्मा ॥१॥ चंडजाणनी नंदनी रे, अबला नारी अ नाथ ॥ सती तणो शिर मुंमता रे, किम वहेमा हारा हाथो रे ॥ कर्म ॥ १३ ॥ तदपि हरिये मुख हाजणी रे, वचन की, परिमाण ॥ काम एह चांमालनुं रे,में करवो निरवाणो रे ॥कर्म॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ॥ १४॥ बीजी ढाल पूरी कही रे, श्राशा सिंधु लाख ॥ हियडो नृपनो कल कले रे, जिम सू रज वैशाखो रे ॥ कर्मः ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥णे अवसर देशांतरी,आयो एक नृपपास। करी सुपंखी नेट', बोले वचन विकाश ॥१॥ एक वचन नृपर्नु हुवं, दोय वचन वलि धीर ॥ त्रिहुं वचने कारज तणी, कण नवि होवे धीर ॥ ढाल त्रीजी राग केदारो गोडी ॥ सुण मोरी सजनी रजनी न जावे रे ॥ ए देशी ॥ ॥सुण राजेसर वात हमारी रे, मुजने सबली श्राश तुमारी रे॥साचो दाखं वचन विचारीरे, कूड न बोर्बु राज कुवारी रे ॥ सु॥१॥ जाति टुं ब्राह्मण निर्धन फुःखीयो रे, माया विण नर नहि सुखीयो रे ॥माया विण निःस्वारथ ना रीरे, नीकली जाये स्वछंदा चारी रे॥सु० ॥२॥ मान न दीये को विण माया रे, पीडे सजन कुटुंब सखाया रे ॥ सुख महेल न होये गज घो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) डा रे, पूगे नहि मनोरथ कोडा रे ॥ सु० ॥ ३ ॥ माया विण निंद न आवे रे, मृग नयणी पण निं द निवारे रे ॥ प्रीतम प्राणी विना धन पहिडेरे, वन पुत्र कलत्र घणुं विहडे रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ तिए कारण मुऊ नारि संतापे रे, जइ परदेश ध न कांइ न व्यावे रे | यालयाने लखमी किहाथी रे, वि उद्यमे धन मिलतुं नथी रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ हाथ पग जांजी जे रहे बेठा रे, ते नर न्यायें जा णो देवा रे ॥ वचन पडुत्तर देवा शूरो रे, गीत जाषित पंदित पूरो रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ विदेशे जश् विद्या चलावो रे, देश जला बे मोहन मलवो रे ॥ मालवे जश्ने रहे जे पीयुडा रे, लोक जलां बे तिहांनां रूडां रे ॥ सु० ॥ ७ ॥ द्रव्य उपजावी वहेला जो रे, घणा नगरनां शालु लाजो रे ॥ वाडी तुमारी हरि फरि जोती रे, मुजनें आ जो गजने मोती रे ॥ सु०॥ ॥ सुंदर जांतिनुं श्रा जो रूडो रे, चंद्र वदनीने योग्य जे चूडो रे ॥ प्राण वल्लन वीनति अवधारो रे, नकवेसण लां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) वजो न्यारो रे ॥ सुम् ॥ ए॥अबला माटे बहुध न याची रे, आणशो जाणशुं प्रीतम साची रे॥ तुम विण साहेब निंद न आवे रे, प्राण पीयारा अन्न न जावे रे ॥ सु०॥१०॥ कांता माता पिता परिवार रे, कंत विबोहो करे वली नार रे॥स बल सुख धनधी लहीयें रे,धनविण पीयुडा बहु पुःख सहियें रे॥सु० ॥ ११ ॥श्म ब्राह्मणीयें मुऊ प्रतिबोध्यो रे, में पण हियडामांहे शोध्यो रे ॥ वचन विशेषे नारी समजायो रे, मुज मन माहे उद्यम आयो रे ॥ सु॥ १२ ॥ तिण कार ण हुं घेरथी चाल्यो रे, हलवे हलवे मारग हा ट्यो रे॥ श्रागें एक महावन आयो रे,नूख ला गीने थयो तृषायो रे ॥ सु ॥ १३ ॥ गाथा ॥ लवण समो नथी रसो, विन्नाणसमो विधानो नथी॥ मरण समो नथी नयं,कुधा सम वेयणा नथी ॥१॥ ढाल पूर्वली ॥ बारे कोश अटवी नदी गंगा रे,निर्मल नीर लहेर तरंगा रे॥ स्नान करी निर्मल जल पीधुं रे, पावन तन राजन में की, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (gu) रे ॥ सु० ॥ १४ ॥ कैवच कांटामांदे विलो रे, में दीठो शुक पंखी को रे ॥ उडी न शके पांख अजाणी रे, लागी जाल जिहां लपटाणी रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ एक वार जो जावुं जीवा रे, इण वन क दीय नया सूवा रे ॥ मूलो चूको कदे ही जो श्रा लटकण फल कदेही न खातुं रे ॥ सु०॥ १६ ॥ दोहा ॥ में जाएयो चंदन बडो, बेटो घाली बाथ ॥ सुकी रुखी सुही जणो, वली न घालुं बाथ ॥१॥ सुरुतरु जाणी सेवियो, जमरो बेठो श्राय ॥ सुतो तिहां कि लोजीयो, पांख रही लपटाय ॥२॥ रे केशु म म गर्व कर, मुऊ शिर जमर बइ ॥ माल ति विरहें विखोहियो, पावक जाणी पश् ॥३॥ ॥ ढाल ॥ यतन करी में तिहांथी लीधो रे, पांख समारी सुसतो कीधो रे ॥ हाथ ग्रहीने पंख स मारी रे, इणी परें एहनी देह उगारी रे ॥ सु० ॥ ॥ १७ ॥ नीरशुं बाटी प्रफुल्लित कीधो रे, साथ नो मोदक दीधो रे || दया उपर नही धर्म अनेरो रे, पर जीव सरिखो आप केरो रे ॥ सु० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ॥ १८ ॥ श्लोक ॥ कृपानदी महातीरे, सर्वे धर्मा स्तृणांकुराः ॥ तस्यां शोषमुपेतायां, किंपुनस्ते तु नं दति ॥ १ ॥ सर्वशास्त्रमयी गीता, सर्वदेवमयो हरिः ॥ सर्वतीर्थमयी गंगा, सर्वधर्मोदयापरः ॥२॥ ढाल ॥ जीव दयायें कर ही लीधो रे, मारग चाल्यो कारज सीधो रे ॥ जिहां पंखी कहे तिहां मूकुं रे, ए वचन बे वाम न चूकुं रे ॥ सु० ॥ १७ ॥ पंखी बोल्यो अमृत वाणी रे, जीव दान दीयो वड दानी रे ॥ तुजशुं केम उसींगण थाउं रे, पण एक सूधो मर्म बताऊं रे ॥ सु० ॥ २० ॥ काशी राजाने नेट करेजे रे, लाख टकानी कांग णी लेजे रे || ति कारण तुम पासें श्राण्यो रे, वे करशो आपणो जायो रे ॥ सु० ॥ २१ ॥ वली शुक पंखी साख नरेसी रे, पिंगल जरह तर्क जणेसी रे ॥ लीधो पंखी नृप उबरंगे रे, राजा पूबे निज मन रंगे रे ॥ सु० ॥ २२ ॥ नी ले वरणे शुक नयणे निरख्यो रे, राजा मनमांहे गाढो हरख्यो रे ॥ तीखी चांच चंचल चतुराइ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) रे, अंग सकोमल दल सुखदायी रे ॥सु॥३॥ राता पग नख लोचने रातो रे, घणा पद विशेषे गातो रे ॥ हसि हसि पंखीने जुए नर राया रे, कहो शुक पंखी वचन सुहाया रे ॥ सु० ॥२॥ सांजल स्वामी साचुं हुं ना रे, जे जे पूडो ते ते दाखं रे ॥ पण ब्राह्मणने में देवराव्या रे, लाख टका द्यो एहने राया रे ॥ सु० ॥२५॥ यतः॥ शत्रं प्रति शत्रं कुर्यात्, श्रादरं प्रति आदरं॥मया ते दुंचिताः पदाः, त्वया मेमुंमितंशिरः ॥१॥ मढाल॥ लाख धन दशध्वजने संतोष्यो रे, वस्त्र विशेषे षटरसें पोष्यो रे॥ आशीष देश ध्वज घरें चाख्यो रे, पूरण धन ले दारिज वाट्यो रे ॥ सु० ॥ २६ ॥ हवे शुक पंखी सरस क हेसी रे, राणीशु उपकार करेसी रे ॥ जिम जि म देखे नारी सुतारा रे, तिम तिमपंखी कुःख अ पारा रे ॥ सु०॥ २७ ॥ नयणे निजारमे शुक रोश्रे, कोश्नजाणे कारण सो रे ॥त्रीजी ढाल संपूर्ण कीधी रे, कनक सुंदर कीर्ति प्रसिद्धी रे॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥दोहा॥ ॥हवे शुक पंखी वीनवे, सुण काशीधर राय ॥ ए नारि माकण नथी, मुख दीगं फुःख जाय ॥ ॥१॥ए सेवक चांमालनु, श्रीहरिचंद नरिंद ॥ ढुं मंणी राजा तणो, कर्मे थयो ए फंद ॥२॥ सति सतारालोचनी, ए हरिचंदनी नार ॥ कर्म वशे परवश पड्यां, पायां उःख अपार ॥२॥ सत्य राखण ए नूपति, निश्चल राखण टेक ॥ वेचा णो चंभालने, वेची नारि प्रत्येक ॥३॥ एहिज तापस पापीया, लागा एहनी लार ॥ राज्य ल श्ने दंग कियो, ए शिर लाख दीनार ॥४॥ तो पण राजा साहसी, सत्य राखण सुविशेष ॥ लश् नारि रोहिताश्वशु,परवरिया परदेश ॥५॥श्लोक। राज्यं यातु स्त्रीयां यांतु, यांतु प्राणायपि दणात् ॥ एका एव मया प्रोक्ता, वाचा मा यातु शाश्वती॥ ॥६॥दोहा॥ सत्य राखे थिर संपदा, सत्य गयो पत जाय ॥ सत्यकी दासी संपदा, बहुरी मिलेगी आय ॥ ७॥ साहसीयां लकी मिले, नहु का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) यर पुरिसेह ॥ काने कुंमल रयण मय, नयणे काजल रेह ॥ ७ ॥ शूरा ने सत्यवादीया, धीरा एक मनाह ॥दैव करे तस चिंतडी, वांछित फलशे त्यांह ॥ ए॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग केदारो ॥ हांजा ___ मारूना गीतनी देशी ॥ ॥ वेची तारालोचनी, राजा वेच्यो राज कुमा र ॥ वेच्यां मंदिर मालियां, राजा राज्य शशिनं मार ॥ धन सत्य धारीरे, भूपति शील समो नहीं कोय ॥१॥ धन ॥ ए आंकणी ॥ सत्य अखं मित नूपति, राजा श्ण विध रहे उदास॥हुँ मंत्रि हरिचंदनो, राजा सुण नूपतिसुविलास ॥धन॥ ॥२॥णे मुज तापस पापीए, राजा कीधो प हेलो कीर ॥ तिण कारण तुमने कह्यो,राजा ए वृ त्तांत्त गुण हीर॥धन॥३॥कर्म रूलावे जीवने, राजा आपे पुःख अनंत ॥ पूर्व जवनां जे कीयां, राजा पुष्कृत कर्म पुरंत ॥ धन ॥४॥ तापस पण नासी गया, राजा सुणी शुक वचन सुरेख ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) राजा मन अचरज थयुं, राजा इस्यो श्रचंनो देख ॥ धन० ॥ ५ ॥ राय कहे दीसे नहीं, राजा मंत्रवादी ते कोइ ॥ सजा सकल संशय पडी, राजा हमणा दूता सोइ ॥ धन० ॥ ६ ॥ वली सुक पंखी वनवे, राजा जो ए सती संसार ॥ करडी धीजज ढुं करूं, राजा जलती जलण मकार ॥ धन० ॥ ॥ ७ ॥ राजा मन कौतुक थयुं, राजा जल ज लता अंगार ॥ अग्नि जगावी खेरनो, राजा ज्वाला नल जयंकार ॥ धन० ॥ ८ ॥ रवि सामो उनो रही, राजा पंखी बोले एम ॥ जो ए मा किए बेइ हां, राजा तो हुं होजो जस्म ॥ धन० ॥९॥ सती सुतारा लोचनी, राजा ए हरिचंदनी नार ॥ शील वंत गयगामिणी, राजा तो मुऊने जयकार ॥ ॥ धन० ॥ १० ॥ त्यारें तारालोचनी, राजा शुक सुंदर बोली एम ॥ शुडा सुगुरु पंखीया, राजा तु जने होजो देम ॥ धन० ॥ ११ ॥ श्रर्थ देइ चित्र जानुने, राजा ध्यान धरी नवकार ॥ श्ररिहंत देव राधतो, शुडा जिनशासन जयकार ॥धन० ॥ १२॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) रागकेदारामांकही, राजा चोथी ढाल रसाल।कन कसुंदर मुनिवीनवे,राजा शुकने मंगल माल॥१३॥ ॥ दोहा ॥ ॥ तत्क्षण पंखी श्याम धूम, धडधड पड्यो ध गन्न ॥ पंख समारी पंखीयो, उडी पड्यो अगन्न ॥१॥जिण वेला शुक पंखीये, कीनो कंपा पात॥ शीतल जल परें कमल दल, थर असंचव वात ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग परजीयो, जूठे अगमगति पुण्यनी रे॥ ए देशी॥ ॥ए अधिकार देखी तिहां रे, हरख्यो नृप तत्काल रे॥ हरिचंदने तेडी कहे रे, तुं महोटो नूपाल रे॥१॥ कर्म कमाइ हरिचंद नोगवे रे, सुख दुःख सरज्यां होय रे ॥ कर्म ॥ ए श्रांकणी ॥ राय पसाय करे तिहां रे, दी तुज श्राधो राज रे ॥ वलतो हरिचंद वीनवे रे, रा जथी नथी को काज रे ॥ कर्म ॥२॥ राजा कहे महोटो करुं रे, दलं तुऊ माहारो देश रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) हुं तुज श्रालंबन ग्रही रे, करशुंनगर नरेश रे॥ ॥कर्म ॥३॥ न्हाना महोटा कुण करे रे, कर्म तणे वश होय रे ॥ हुँ सेवक चंमालनो रे, हरि चंद हुँ नहिं कोय रे॥कर्म ॥४॥सती ग घरे विप्रने रे, मन धरि अधिक आनंद रे॥साथ गयो चंभालने रे, श्रीहरिचंद नरिंद रे॥ कर्म ॥५॥ लांबन उतस्यो सती तणो रे, सत्य शीयल सुपसा य रे॥ श्रीनवकार सदा जपे रे, प्रणमु तेहना पाय रे ॥ कर्म ॥६॥ सबल सुदृढ राजा साह सी रे, मंदरगिरि जेम धीर रे॥अचल अनंगरा जा ध्रुव जिस्यो रे, सायर जेम गंन्नीर रे॥कर्म॥ ॥७॥राज गयो विरहो थयो रे, को करे श्रा पघात रे ॥ विष खाईने जति मरे रे, कोई करे ऊपापात रे॥ कर्म॥७॥को थाये घहेलो बा वरो रे, को थाये योगी अवधूत रे ॥ पण सत्य राखण कारणे रे, अमिग रह्यो अनुत रे॥कर्म॥ ॥णा सेज सुखासण बेसतां रे, सोवन खाट पलंग रे॥ते राजा नदीयां वसे रे, आज उघाडे अंगरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥कर्मः॥१०॥पांचमी ढाल राग परजीयो रे,कन कसुंदरमुनि राय रे॥जपे यश कर जोडीने रे, धन धन हरिचंद राय रे ॥ कर्म० ११ ॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिवस रजनी समे, नदी तीर हरिचंद॥ बेठो राखे साहसी, मृतक मसाण नरिंद ॥१॥ नारी रोती वल वले, श्रवण सुण्यो वड वीर ॥ कुण रोवे किण कारणे, जव्यो साहस धीर ॥२॥ सती सुतारा लोचनी, पुत्र मरण विषवाद ॥ मृ तक ले श्रावी तिहां, रोवे लांबे साद ॥३॥ आधी रातें आरडे, अबला विषमे ग्राम ॥ जीणे खर रोवे घj, लश् लश् सुतनुं नाम ॥४॥ ॥ ढाल बही ॥ राग मल्हार ॥ सांझ साचलो हो ॥ अथवा देखो गति देवनी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ रयण उमाड्युं माहरो रे, दया न कीधी रे दैव ॥ अबला फुःख सबले पडी रे, उडी न जा ये रे जीव ॥१॥ कुमर सुलक्षणा हो, मुख बोलो रोहिताश्व,विषमीवेलानंदनारे,कीधी माता निरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श ॥ कुम ॥२॥ ए आंकणी ॥ रयण न गजे रं कने रे, वानरने गले हार ॥ घेली माथे बेडर्बु रे, रहे केती एक वार ॥ कुम ॥३॥ पंख वि हुणी पंखणी रे, कां सरजी किरतार ॥ अधविच राखी एकली रे, है है सरजणहार ॥ कुम ॥४॥ काया गढ मुफ विग्रह्यो रे, वाग्यां विरह निशान॥ घट चढियो मुज घरणणे रे, उडी न जाये रे प्राण ॥ कुम०॥५॥तुं मन रंजन नंदना रे, तुं मुज जीवन प्राण ॥ ऊंची चढी नीची पडी रे, सुंदर पुत्र सुजाण ॥ कुम ॥ ६ ॥ मुखलडे मन मोह तो रे, हसतो करतो हेज ॥ सुंदर नूर किहां ग युं रे, ताहारूं सूरज जेवू तेज ॥ कुम ॥७॥ आडो करीने आवतो रे, हुं लेती उबरंग॥मोदक मीग मागतो रे, रमतो नमतो रंग ॥ कम ॥ ॥७॥ उगे पुत्र उतावला रे, परवरिया परदे श॥ विरह थयो जरतारनो रे, पहोता दुःख अ शेष ॥कुमाए। तुं मुज हार हीया तणो रे, कि रण तपे जिम सूर ॥ उठी मलो हंसी हेजशुं रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) कीधो अधिक असूर ॥ कुम० ॥ १० ॥ है है वज्र माहारो हीयो रे, परथी परचम॥ धरणी शरणे सुत पोढतां रे, न हुवो खंमो रे खंग॥ ॥कुम ॥११॥ तुं मुज जीवन जीवनो रे, निराधार आधार ॥ अंधानी जेम लाकडी रे, तुं कुल थंन कुमार ॥ कुम० ॥ १५ ॥ नयण कमलदल न्हा नडां रे, कोम रह्या तुज केड ॥ आंख तणी बिंदी जिस्यो रे, वसति उजड वेड ॥ कुम ॥१३॥ हुँ उर्जागिणी जाउं किहां रे, फुःख नरपूर प्र काश ॥ चं सूर्य त्रूटी पड्या रे, बटकी पड्यो रे आकाश ॥कुम॥१४॥त्रण्य नुवन नेलां थयां रे, धरणी हु निराधार ॥ तुं मुझने मूकी गयो रे, प्राणाधार कुमार ॥ कुम ॥१५॥णी परें बहु उखें जूरती रे, अबला हुरे अश्वास ॥ गाढे खरें रोई रही रे, नाखी रही रे निश्वास ॥ ॥ कुम० ॥ १६ ॥ दिवस निगमगुं किणी परे रे, अबला हुरे अचेत॥ विरह लहेरी वागी घणुं रे, है है मोहनी हेत ॥ कुम० ॥ १७ ॥ सुणी राजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) पाडो वख्यो रे, पटराणीनो साद ॥ रोहीताश्व मुठ सही रे, राय करे विषवाद ॥ कुम०॥ १७ ॥ है है कर्मगति माहरी रे, विषद विषाद विनाण॥ मुःख मांहें पुःख संपनां रे, दैव करे ते प्रमाण ॥ ॥ कुम ॥ १५ ॥ शुं रोवू शुं पारडं रे, किणगुं करुं रे पोकार ॥ कुण कुःख जाणे माहरु रे, जे रूठो किरतार ॥कुम॥२०॥ ढाल बही इणीपरें कही रे, विरही राग मलार ॥ कनकसुंदर कहे सांजलो रे, हवे आगे अधिकार ॥कुम ॥१॥ ॥ दोहा॥ ॥सुणी राजा पाडो चल्यो, तेणी वारें तत्काल॥ बालक एक बांध्यो अबे, वट तरुवरनी माल ॥ ॥१॥ दीठो महिपति वलवतो, मुख करतो पोकार ॥ रे रे मुजने मारशे, योगी रूठो अपार ॥॥को जायो तिथि चांजणी, को नर ने निरबी क॥पर उपकारी को पुरुष, डोडावो साहसिक॥२॥ ॥गाहा॥मुक्तिस्त्रीवशीकरणं,करणं परोपकारस्य॥ अनशन विधिनामरणं, स्मरणं च नगवता मस्ति। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 9 ) अ ॥ ढाल सातमी ॥राग केदारो ॥ जुंबखडानी देशी ॥ ॥ माले बांध्यो वलवले रे, सुंदर बालक एक ॥ मरुं रे मातजी ॥ शूरवीर कोइ साहसी रे, बे को ई सुविवेक ॥ मरुं० ॥ १ ॥ सातदिवस परण्या थयां रे, सुख दीठो नहिं कोइ ॥ मरुं० ॥ एकज पुत्र मा वित्रनो रे, अवर न दूजो होइ ॥ मरुं० ॥ ॥ २ ॥ राजपाटनो हुं धणी रे, काशीधरनो पुत्त ॥ मरुं० ॥ सूतो आयो सेजथी रे, भूत जस्म वधूत ॥ मरुं० ॥ ३ ॥ तेल कढाइ उकले रे, हो म करशे ए मुज ॥ मरुं० ॥ मरण सही इहां श्र वियो रे, किणशुं कीजें गुह्य ॥ मरुं० ॥ ४ ॥ रा जा हरिचंद चिंतवे रे, एह करूं उपकार ॥ मरुं० एह संकटथी बोडवुं रे, सुंदर राजकुमार ॥ मरुं० ॥ ५ ॥ वृक्ष चढ्यो ते साहसी रे, बंधन बोड्या तास ॥ मरुं० ॥ प बंधायो नूपति रे, तिऐ स्थानक दृढ पास ॥ मरुं० ॥ ६ ॥ रंज्यो कुमर घ रें गयो रे, जाइ मध्यो मावित्र ॥ मरुं० ॥ सबल कष्टथी उगस्यो रे, वात कही सुविनीत || मरुं० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥७॥ काशीधर पूजे कहो रे, बेटा निज अधि कार ॥ मरुं०॥ कोण उपकारी एहवो रे, जिणे कीधो उपकार ॥ मरुंग ॥ ॥ धन्य जन्म जग तेहनो रे,धन पिता धन मात ॥ मरुं० ॥ पुरुष र तन जग जाणीयें रे, वसुधा मांहे विख्यात ॥ ॥ मरुं० ॥ ए॥ जे सेवक चांमालनुं रे, हरियो नाम कहाय ॥ मरुंग ॥ तिणे मुजने तिहां थकी रे, बोड्यो कस्यो उपकार ॥ मरुंग ॥१॥ सातमी ढाल सोहामणी रे, राग जलो केदार ॥ मरुं० ॥ कनकसुंदर कहे सांजलो रे, सरस कथा सुवि चार ॥ मरुं० ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ण अवसर थाव्यो तिहां,जोगी ते अवधूत ॥दीसे अतिही बिहामणो,जस्म जयंकर नूत॥१॥ ॥ ढाल आग्मी ॥ राग गोडी ॥ बे कर जोडी ___ ताम रे, नसा वीनवे ॥ ए देशी ॥ ॥ श्राव्यो ते यमदूत रे, नूत जयंकर,दीसे अ तिही बिहामणो ए॥ महोटा दांत मुदत रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) काल कृतांतनां, रौष रूप रौजामणो ए ॥१॥ मक मक वाजे माक रे, गाढो बड बडे, नूत जयं कर दूक दे ए॥मण बाले तिहां तेल रे, होमक रण नणी, अग्नि कढाश्ये उकले ए॥२॥ जर मर जरमर जटराल, खेचर नूचरा, सोर करे थ ति बडबडे ए ॥ नूख्या पेट जाडंग रे, खालं खा जं करे, अंगारा जहण करे ए॥३॥ धूंधूंकार अपार रे, धडहडता धसे, मुखमां ज्वाला नीसरे ए॥ काला काल कराल रे, निमर निशाचरा, दंत घरटी ज्युं ते दले ए॥४॥ धडधड ध्रुजे अंग रे, गूमा लडथडे, नागा नूगा नड हडे ए ॥ विषम रूप विकराल रे, अग्नि उबालता, दह दिशि दोडे दडवडे ए॥५॥सड सड वाजे शोक रे, पेट था मिष नरे, हलफल ऊंचा उबले ए ॥ लागा पेट पायाल रे, लोयण काबरां, बल करता कायर बले ए॥६॥ आवे अति उगंध रे, आमिष ए हवा, व्यंतर वेग विकारीया ए॥ योगी आवे ते थ रे, हरिचंद ने जिहां, बावन वीर हकारीया ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए० ) ॥ ७ ॥ तोड्यां बंधन तास रे, बोड्यो तत्क्षणे, श्रीहरिचंद महीपति ए ॥ उतारयो नरनाथ रे, बोल्या बूमनो, म म शंके तुं शुभमति ए ॥ ८ ॥ अनि कडाइ मांदे रे, सुण हो मानवी, होम करीश हुं ताहरो ए ॥ तुं बो लक्षण बत्रीश रे, वि श्वा वीश ए, कारज सिद्धकर माहरो ए ॥ ए ॥ तुं हवे तहारे हाथरे, कापी कापी करी, तन काढी दे आपण ए ॥ म करीश विलंब लगार रे, वार लागे घणी, आरंभ में मांड्यो घणु ए ॥ १० ॥ बु गदो दीघो हाथ रे, श्रीहरिचंदने काया काटे जूपती ए ॥ मनमां न आणे शंक रे, निकलंक स त्यवंतो, सबल साहस छत्रपती ए ॥ ११ ॥ का ट्यो दाहिए हाथरे, वामा हाथशुं मन प्रमोद अधिक धरी ॥ जंघ चरण पण दोय रे, का या आपणा, दे तेहने तिल तिल करी ए ॥१२॥ काटण लागो जाम रे, मस्तक त्र्यापणो, श्याल एक आव्यो तिसें ए ॥ रोवे सरले सादरे, दुःख जर जंबूको, तापस पण प्रगट्या इसें ए ॥ १३ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए१) धमधमता धखराल रे,तेहि जंबूमनो,अनि कडाह मांहे धसे ए॥तिणे वेला तत्कालरे,बूम न बापडो, सोवन पुरिसो उपनो ए ॥ १४ ॥ ए ए श्री हरि चंदरे, तापस श्म कहे, धन्य धन्य सत्य राजा तणोए ॥दीधो फुःख अनंत रे,ए चूके नही,शील सत्य साहस घणुं ए ॥१५॥ संरोहणीतत्काल रे, श्राणी औषधी, सऊ कस्यो लेपन करी ए॥ अंगोपांग सुचंगरे, नवपद्धव थयां, सुर पहोता अमरा पुरी ए ॥ १६ ॥ पुण्य तणे परिमाण रे, पुरिसो सोवन तणो, सिद्ध थयो, हरिचंदनो ए॥ सत्य दाख्यो हरिचंदरे, सुरपति आग,श्री हरिचंद नरिंदनो ए ॥१७॥ाठमी ढाल रसा लरे, कनकसुंदर कहे, सुणतां मन आनंद घणो ए ॥सुणजो सकल सुजाणरे, हवे आगल वली. सरस संबंध सोहामणो ए ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे हरिचंद महीपति,पुरिसो राखी प्रस न ॥ बेगे जाइ मसाणमें, प्रह उगमतें प्रयत्न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ कालदंग आयो तिसे, क्रोधे कालचं माल ॥ वचन कहे हरिचंदने, वक्रति अति वि कराल ॥२॥ रे हरिया अति वेगशुं,मृतक वस्त्र लश् आव ॥ महोर एक मशाणनी,तरतथी जश्ने लाव ॥३॥ चिंतातुर हरिचंद थयो, पुत्र चीरने काज ॥ निश्चे लीधा जोश्य,गयो तिहां नर राज ॥४॥ कुमर मुठ केम कामिनी, कहो ते सकल विचार ॥ वाडीमा रमवा गयो,सर्प मस्यो निरधा र ॥५॥ हाहा हरिचंद चिंतवे, विषम कर्म गति एह ॥ फुःख कोण जाणे जे थयो, कहेवा लागो तेह ॥६॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग सारंग महार ॥ नाहली ये म जाये गोरी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ राजा हरिचंद वीनवे, राणी वस्त्र कुमरना आपो॥गरज अमारे एहनी, राणी बीजीरे वात म थापो॥१॥ कामिनी द्यो रे कपडांकुमरनां॥ अवसर एहवो रे आज ॥श्राजनो दाहाडो रे सुं दर एहवो ॥ कहेतां आवे ने लाज ॥ का०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) पहेली वेचीरे तुजने वालही, राणी पड़ी रे वेचा णा हूं॥बेहु बराबर उतयां,राणी रोष करे जे णे तूं ॥ का ॥३॥ राणी फुःख मांहे दुःख संपना, राणी मुजने तुजविण जेह ॥ ते मन जाणे माहरूं, राणी कहे परमेश्वर तेह ॥ का ॥४॥ नयन कमल दल सुंदरी, राणी आज निःफल सवि श्राश ॥ न्हानडीये मरते वली, राणी आ शा हु रे निराश ॥ का ॥ ५॥ शुं कीजें हो साहिबा, कंता कर्म तणी गति क्रूर ॥ मुख कहे तां श्रावे नहीं, कंता पुःख दीगं जरपूर ॥का॥ ६॥तरता थाग न पामीयें, कंता फुःख सागर नो पार ॥ ज्यं परमेसर निबंधीयं, कंता न मटे तेह लगार ॥का॥७॥ नारी खमी तुं नामिनी, राणी तुजमां राग नरोष ॥ महीयल तुं मोहोटी सती, राणी सघलो माहरो दोष ॥ का॥७॥ ढाल कही नवमी, नली राणी हर्ष घणो मन आ ण ॥ कनक सुंदर हवे बोलशे, राणी देव आका शे वाण ॥ का ॥ ए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ दोहा ॥ ॥ श्रीहरिचंद महिपति,साहस वंत अनंत ॥ कपडा माग्यां कुमरनां, बोली वाणी निरंत ॥१॥ सुरवाणी बोल्यो इसी, धन धन हरिचंद राय ॥ तुज सम त्रिजुवन को नही,नर किन्नर सुर राय ॥२॥ कुसुम वृष्टि हुई तिहां, वाग्यां जय निशा न ॥ देव कहे जय जय शब्द, पाम्या परम नि धान ॥३॥ सुर निज माया फेरवी, सना मांहे शिरताज ॥ण विधे बेगे तखत, नयरी अयो ध्या राज ॥४॥ ॥ ढाल दशमी ॥ राग खंनायती ॥ तारे कोडेरे ___ वैदरजी परणे कुमररे ॥ ए देशी ॥ __॥ हवे हरिचंद महीपती रे, नगर अयोध्या राजो रे॥राणो राण दीवानमें रे,आप बिराजे श्रा जोरे॥१॥राजनोगवे हरिचंद, इणीपरे आपणो रे॥नगरी कौशल्या आनंद, उत्साह ह घणो रे ॥ राज ॥ ए आंकणी ॥ चारे दिशें चामर ढले रे, राजा प्रजा मन मोहे रे ॥रा ॥२॥ केश्क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) लेइ वे नेटणारे, माता मयगल घोडा रे ॥ सत्तावीश तेरी रे, पुत्र कलत्र सजोडा रे ॥ ॥रा० ॥ ३ ॥ रोहिताश्व मनरंगशुं रे, रमतो रमतो आयो रे ॥ मंदिरमांहे सुंदरी रे, पटराणी सुख पायो रे ॥ रा० ॥ ४ ॥ पयलागें व्यहारिया रे, मोती मापक व्यावेरे ॥ याचक जय जय उच्चरे रे, उजा राज दुवारें रे ॥ रा०॥ ५ ॥ नगर सहु शण गारीयो रे, सोहव नारी यावे रे ॥ राय वधावे य प रे ॥ धवल मंगल गीत गावे रे ॥ रा० ॥ ॥६॥ बंदीवान बोडावीया रे, जयजय शब्द जणा वेरे ॥ देशविदेशें आपणी रे, प्राण तुरत वर्तावे रे ॥ ० ॥ ७ ॥ जगमांहे जस वापरे रे, दूर वनित निवारे रे || जीव श्रमारि देशमां रे, धर्म तणी गति धारे रे ॥ रा०॥ ८ ॥ हरिचंद एहवो नीपनो रे, दोलतनो दरबार रे ॥ दान देवे ब्राह्मण जीरे, जपे जग जयकारो रे || रा० ॥ ए ॥ म तिसागर शुक जे हतो रे, कुंतल सेवक शीयालो रे ॥ देवे मानव ते कीया रे, यावी मल्या नूपालो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए६) रे॥रा ॥ १० ॥ राजा हरिचंद चिंतवे रे, सुप नांतरमें दीगे रे॥ जीव पड्यो जंजालमें रे, नृप मन जर्म पश्ठो रे ॥रा० ॥११॥झानी विण जाणे नही रे, कर्म तणी गति कोरे॥पटराणी पासें गयो रे, हरिचंद हरखित हो रे ॥रा॥ ॥ १५ ॥ आगल आवी उनी रही रे, बोले अमृ त वाण रे ॥ हरिणादी हसीने मले रे,श्रावोजी वन प्राण रे ॥ रा०॥ १३ ॥ राय कहे सुण सुंद री रे, चित्त चमियो मुफ आज रे ॥ कहोनी ए वातडी किम थश्रे,कहेतां आवे लाज रे॥राण ॥ १४॥ | कां जाणो को नही रे, सांजलजो अधिकार रे ॥ दाखे तारालोचनी रे,ज्रम पड्यो जरतार रे॥ रा॥१५॥ चलचित्त राजा साहसी रे,कनकसुंदर सुख लहेसी रे ॥ दशमी ढाल खं नायती रे,सुर सघलो ही कहेसी रे ॥रा॥१६॥ ॥दोहा॥ ॥ देव एक आव्यो तिसे, जलकत कुंमलान रण ॥ तेजें सूरज सारिखो, काया कंचन वर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥१॥श्रावीने उनो रह्यो, रत्न मुकुट उर हार॥ काने कुंमल जलहले, सूर ज्युं ज्योति अपार ॥२॥ ॥ ढाल अगीआरमी॥ राग महार ॥ जीहो कुंवर बेगे गोखडे ॥ ए देशी ॥ ॥ जीहो इण अवसर तिहां श्रावीयो, लाला जनकत कंमल कान॥जीहो मस्तकें मकट सोहा मणो, लाला सुंदर तन सुझान ॥१॥महीपति, ख मजो अम अपराध ॥जीहो फुःख विविध परें में दीयो, लाला अधिक करी आबाध ॥मही॥२॥ जीदो इंच सजामा एक दिने, लाला बेगे उलट आण ॥ जीहो सत्य वखाण्यो ताहरो, लाला में नवी मान्यो जाण ॥ मही० ॥३॥ जीहो बलबल करी बहु वेदना, लाला में कीधी सवि एह ॥ जीहो दाय उपाय कीया घणा, लाला तुं नवी चूको तेह ॥ मही० ॥४॥ जीहो बेदन नेदन ताडना, लाला पामी तें नर पूर ॥ जीहो कसणी कसी में करी, लाला से ना जेम सनूर ॥ मही० ॥५॥ जीहो प्रत तुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UG) दिन दीपतो, लाला अविचल पाले राज ॥ जीहो सुणी हरिचंद मन रंजीयो, लाला देव तणां ए काज ॥ मही० ॥ ६ ॥ जीहो देव गयो देवलोक में, लाला दाखी सघली वात ॥जी हो डें वखाण्यो तेहवो, लाला दीठो धरणीनाथ ॥ मही० ॥ ७ ॥ जीहो अग्यारमी ढाल कही जली, लाला कनकसुं दर मुनिराय || जी हो सांजलतां सुख उपजे, लाला आनंद अंग न माय ॥ मही० ॥८ ॥ जी हो जावडगछें राजीयो, लाला श्रीमणिरत्न मुणिंद ॥ जीहो अनंतकला उवायजी, लाला निजगन्न मांदे चंद ॥ मही || || जी हो तस पद कमल प्रसा दथी, लाला विचल बुद्धि अपार ॥ जीहो कन कसुंदर मुनि वीनवे, लाला चतुर्विध संघ जयका र ॥ मही० ॥ १० ॥ जी हो चोथो खंम सोहाम गो, लाला नवरस सरस विचार ॥ जी हो विजत्स जय करुणामयी, लाला रौद्र ने शांत प्रचार ॥ ॥ मही० ॥ ११ ॥ इति चतुर्थ खंमः समाप्तः ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) ॥ अथ पंचमखंडः प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ हवे बोर्बु खंग पांचमो, पंच परमेष्ठी पाय ॥ कर जोमी प्रणीपत्य कलं, पूरण करो पसाय ॥१॥ बहुदिन बहु सुख जोगवी,राजा श्रीहरि चंद ॥ चारित्र लेवा चिंतवे, जो श्रावे जिणचं द ॥२॥ मनमांहे श्वा करे,सुतने सोंपुं राज॥ जो यहां आवे शांतिजिन, सारं आतम काज ॥३॥ देह नहीं सुख फुःखनु, धर्मविण गति न काय ॥ मुक्तिपंथ लहीयें नही, विण नेट्या जि नराय ॥४॥ नाव झषीश्वर नूपति,थयो हवे हरि चंद॥ चारित्र लेवा चिंतवे, जो आवे जिणचंद ॥५॥मेह वाट मन मोरज्यु,शांतिनाथ जिनराज॥ जोतां आवी समोमस्या, वन उद्याने आज ॥६॥ ॥ ढाल पहेली ॥राग बंगाल, शांति जि णंद जुहारीयें सुरती महीनाना देशी ॥ ॥णे अवसर तिहां श्राव्या, जिनवर जग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) दानंद ॥ साधु घणाशुं परवस्या, जगपति शांति जिणंद ॥ देव उंउही वाजित्र,वाजे जबर नेरी॥ ताल कंशाल अने श्री, मादल नाद नफेरी ॥ ॥१॥ महोटा महोत्सवें राजा, लोकशुं हर्ष ध रेवि ॥ श्रायुद्ध त्र मुकुट, सघलाही दूर करे वि ॥ तीन प्रदक्षणा देश, वांद्या श्रीनगवंत ॥ राय राणी मंत्रीश्वर, ते बेग एकत ॥२॥ यो जन वाणी वखाणे, जाणे अमृत धार ॥ धर्म कथा सांजलवा,बेठी परखदा बार ॥ निज निज नाषायें दाखवे,सहुने श्रीवीतराग॥ केश श्रावक व्रत श्रादरे, केश् चारित्र वैराग ॥३॥ जलधर बुंद तणी परें, चातक चित्त हरिचंद ॥ सरस व चन रस पावन, करत तृपति नरिंद ॥ राजा श्री हरिचंदजी, कहे करकमलने जोडी ॥ जवजय जंजन जिनवर, नव संकटथी बोड ॥४॥ कहो जगवन् पूरव नवें, पाप कीया कोण कोडी, बहु विध आपदा जोगवी,लागी सबली खोडि ॥कहे श्री शांति जिनेसर,नरवर सुण अधिकार॥पूर्वज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) वजे कर्म, कीया तस एह विचार ॥५॥ कर्म प्र माणे जोगवे,प्राणी फुःख अपार ॥ पूर्व दिशें श्रम रावती, नयरी जोयण बार ॥ अमरसेन राजा ति हां, पाले वरण अढार॥पटराणी अमरावती, मं त्रीश्वर मतिसार ॥६॥ अतुलीबल अलवेसर,रा जेसर अवनीश ॥ तेज प्रतापें दिनपति, नरपति विश्वावीश ॥ एक दिवस तिहां आव्या,दोय जति गुणवंत ॥ चारित्रीया वैरागी, महोटा साधुमहं त ॥७॥ मासी तप पारणे, मुनिवर श्राव्या तेह ॥ एणे अवसर तिहां जरमर, जरमर वरसे मेह ॥ नृप अंतेउर मंदिर, गोखतलें पहोंचेय॥ शरियावहि पडिकमवा, उन्ना मुनिवर वेय ॥७॥ सुरनर किंनीर दिणयर, अथवा पुरिसीह एम॥ कृषि दीगे राजानी,राणी मोही तेम ॥ सुंदर मं दिर रूप,पुरंदर सरिखे प्रेम॥नोग लोग रुषी साथै,राणी चिंते एम ॥ ए॥ दासी साथें बत्रह, देश बोलाया साध ॥राज जुवने बे श्राव्या,मुनि वर अकल अगाल ॥ आगध आवी उन्नी, राणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) बे कर जोड ॥ हाव नाव करी बोली, मुनि पूरो मुक कोड ॥ १० ॥ जन्म सफल कर सरिसा, स रस मल्यो संयोग ॥ वर्ष एक तुम बाना, राखुं विलसो लोग ॥ तुमे तरुण वय यौवन, हुं पण बालक वेश ॥ बीजो को नही जाणशे, राजा न गर नरश ॥ ११ ॥ प्रथम ढाल पूरे कर, साधु पड्यो जंजाल ॥ श्म सुणी मुनिवर पाग, बाहु लीया तत्काल ॥राणी पागल दोडी, दीधा म हेल कमाड, कनकसुंदर कहे इणी परें, प्रीत न थाये माड ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥राणी बोले ऋषि सुणो, मकरो हह अनं त ॥ बन्ने नही तो एक पण, विलसो जोग महंत॥ ॥ ढाल बीजी॥राग कालहरो॥रामग्री॥ रूडा रामजी नगर सूनो इण मेलीरे॥ए देशी॥ ॥ साधु कहे सुण माता गंगा, तुं ने मात स मान रे ॥ ताहरे पुत्र थकी अमे अधिका, हक किश्यो अशमान रे॥१॥ मोरी माताजी जावाद्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३) बे साध रे, अमे कवण कीयो अपराध रे॥मो॥ श्रमने थाये जे अधिकी बाध रे ॥ मोरी ॥२॥ ॥ ए आंकणी ॥ वैरागी अमें बाल ब्रह्मचारी, गंमयो कुटुंब परिवार रे॥रमणी मी अमेरंजा सरखी, एह अमारो आचार रे ॥ मो० ॥३॥ रन्ने वने रहिये इंजिय दहियें, सहियें यातप सी त रे॥प्रीत न करियें नव तट लहिये, वहियें चारित्र चित्त रे॥ मो० ॥४॥ काम न जागे, पाप न लागे, व्रत न नांगे हीर रे ॥ जे तुं मागे नही अम आगे, वैरागें मन धीर रे ॥ मो० ॥ ॥ ५॥ सी बाली जस्म करी नाखी, सुं दीगे कहे मात रे ॥ अमशुं श्राग्रह करीने एवडो, कांश विणासे वात रे ॥ मो॥६॥ अमने दे खीने तुं मोही, कारण के दाख रे ॥ शील र यण श्रम पास अनोपम, ते जोश्य तो राख रे॥ ॥ मो० ॥ ७॥ साधु घणुं राणीने समजावे, पण नवि माने तेह रे ॥ जीजे पण पाहाण नवी ने दे, नावे वरसो बारे मेह रे ॥ मो० ॥ ७ ॥ चो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) पडे घडे जिम बांट न लागे, उन्हे रंग मजीव रे॥ तिम मुनिने वचने नृपपत्नी, प्रतिबूजे नंही धीठ रे ॥ मो० ॥ ए ॥ ढाल रसाल कही ए बीजी, कनकसुंदर मुनिराय रे ॥ हाव नाव राणी बहु मांमे, मुनिवर मन न सुहाय रे॥ मो० ॥१०॥ ॥दोहा॥ __॥ बोली राणी पापणी, वचन सुणो कृषि राज ॥ एकंते तुमने लह्या, सही न बोडं आज ॥ ॥१॥षी जंपे माता सुणो, चले मेरु गिरि राय ॥ शील अमारुं न वि चले, वातां घणी बनाय ॥२॥ काम सुब्ध कामिनी कहे, राती विषया रस्स ॥ तु मने हुँ विण नोगव्यां, बोडु नहीं अवस्स ॥३॥ ॥ ढाल ॥ त्रीजी राग सारंग मल्हार ॥ ॥ मालाकिहां रे ॥ ए देशी॥ ॥ हुँ नही बोडुंगी रे ॥ ए आंकणी ॥ नैन न चावत व्रत जमावत, बाह बुवावत रे ॥राग या लापत यंत्र मचावत, शीस घूमावत रे॥हुं० ॥ ॥१॥आलस मोडत करके काहाडत, उर उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५ ) घाडत रे ॥ अधर दशन फुनी आप आपने, का म जगाडत रे ॥ हुं० ॥ २ ॥ नृत्य करत फुनी पाय परत है, साकामातुरी रे ॥ कटी तटी देखत कुच पर करधरी, सी श्रतुरी रे ॥ हुं० ॥ ३ ॥ कर जय दिखावे नैन नचावे, तुमकुं मारुंगी रे ॥ मानोगे जो वचन हमारे, प्रेम वधारूंगी रे ॥ ॥ हुं० ॥ ४ ॥ नीर चीर यंजन मर्दन घुसक, ऋषिकुं जांखत रे ॥ विषय महारस मुदरी लीला, क्युं मन राखत रे ॥ हुं० ॥ ५ ॥ साधु महामुनि संवर कीनो, मौन महाव्रत रे ॥ हाव जाव करत बहु त्रीया, कुछ नही जावत रे ॥ हुं० ॥ ६ ॥ मु नि मन मदन पकरी विष जलतें, नेदत नाहीन रे ॥ बारह मेघ त्रीया जर लागी, न भेद तुं पाह नरे ॥ हुं० ॥ ७ ॥ धन धन ब्रह्मचारी वैरागी, टुक नही जीजत रे ॥ हाव जाव नही बाण काम के, तन नही बीजत रे ॥ हुं० ॥ ८ ॥ त्रीजी ढाल कही संपूर्ण, कनक सुंदर मुनिराय रे ॥ में तिनकुं प्रणाम करत हुं, जे साधु न चलाय रे || हुं० ॥ ॥ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) (दोहा) ॥ निष्फल नृपपत्नी तणा, थया मनोरथ ए ह॥ करवा लागी कुकर्म, पुराचारिणी तेह॥१॥ मंदिर बार उघाडीया,श्राव्या नृप जन मांही। जाल्या ते बेहु जती, बांध्या काठी साही ॥२॥ मुनिवर मुख बोल्या नही, मोहकर्म बल मार॥ राजा आव्यो एटले,रमी वन गहन उदार ॥३॥ वात जणावी रायने, तेडाव्या बे साध ॥ निरप राध नितुरपणे, दीधी मार अगाध ॥ ४॥ बंदी खाने लश धस्या,मास एक मुनिराय ॥ एक दि वस रजनी समे, मुनि पनणे सद्याय ॥५॥ राजा राणी सांजले,सूता मंदिर मांहि ॥ कान देश एक चित्तशु, सुणे घणे उबाहि ॥६॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग गोडी ॥ वीरमति कहे चंदने ॥ ए देशी ॥ ॥ साधु कहे निज जीवने,सांजल मन वीर॥ जोगव पूर्व नवें कीया, ए फुःख जंजीर ॥१॥ कर्म कमाइ श्रापणी, बूटे नही कोय ॥ सुर नर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) कमें विटंबीया, चित्त विचारि जोय ॥कर्मा॥ रे मन कर्म विटंबना, मत आणो रोष ॥ कर्म क मार प्रमाण ते, केहनो नही दोष ॥ कर्म ॥ ॥३॥ परख देतां सोहिनु, सविहुनी रीत ॥ आपने सहेतां दोहिबुं, नवी सूधी नीत॥कर्म॥ ॥४॥ परने पीडा जे करे, नवी प्रजे न्याव ॥ संकट पामे साधु ज्युं, अन्याय प्रत्नाव ॥कर्म॥ ॥५॥ इम सुणी राजा उठीयो, आव्यो तत्का ल ॥ जोडाव्या बेहु जती, चमक्यो नूपाल ॥ ॥ कर्म ॥ ६॥ पायलागी प्रणिपत्य करे, हुं पा पी पुष्ट ॥ ऋषि मुफ मिठामि उकडं, था संतु ॥ कर्मः ॥ ७॥ राणी पण शंकी घj, मन चिंते एम ॥ ए महोटा अपराधथी, हूं बूटीस केम ॥ कर्म०॥ ॥ समकित व्रत बेहु श्रादरे, नागो मिथ्यात्व ॥ पाप आलोचे आपणां, त्रिहुं विध विख्यात ॥ कर्म ॥ ए॥ ते राणी तारा लोचनी, तुं ते हरिचंद ॥ साधु संताप्या तें जी के, पाया फुःख दंग ॥ कर्मः ॥ १० ॥ साधु मरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) सुर उपना, तापस सुर कोय ॥ तुज दुःख दीधुं जेटलुं, कर्मनी ए गति जोय ॥ कर्म० ॥ ११ ॥ हरिचंद सुणी एम चिंतवे, साची जिन वा ॥ संशय जांजे जीवना, सुखनी ए खाए ॥ कर्म० ॥ ॥ १२ ॥ वाणी सुणी जगवंतनी, हैए हर्ष न माय ॥ जाती स्मरणथी लघुं, पूरव जव राय ॥ ॥ कर्म० ॥ १३ ॥ कहे हवे चारित्र यादरुं, ह रिचंद भूपाल ॥ कनकसुंदर मुनि वीनवे, चोथी ढाल रसाल ॥ कर्म० ॥ १४ ॥ हवे हरिचंद वी घरे, रोहिताश्वने राज ॥ देईने उत्सुक थयो, चारित्र लेवा काज ॥ कर्म० ॥ १५ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ रसीयाना गीतनी ॥ श्री जव द्याय बहुश्रुत नमो नावशुं ॥ ए देशी ॥ ॥ हरिचंद श्राव्यो रे मंदिर आपणे, कुमरने सोंप्यो रे राज ॥ मुनीसर ॥ दान देने तव चारि त्र लीयो, धन दिन माहारो रे खाज ॥ मु० ॥ १ ॥ वडो रे वैरागी हरिचंद वंदीयें, धन धन करणीरे तास ॥ मुनि० ॥ सत्यवंत संयमधारी निर्मलो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) चारित्र पवित्र प्रकाश ॥ मुनि ॥ वडो० ॥५॥ पंच महाव्रत सूधा आदरे, थयो साधु निर्यथ ॥ मुनि ॥ बावीश परिसह डुक्कर ते सहे, पाले मुक्तिनो पंथ ॥ मुनि ॥ वडो ॥३॥ प्रतिबोधी राणी तारा लोचनी, चारित्र पीयुने रे साथ ॥ मुनि ॥दीधी प्रनु अमृत रस देशना, केवल आण्यो रे हाथ ॥ मुनि ॥ वडो ॥४॥ चारित्र पाले चतुर महासती, शीयल संयम स तसंग ॥ मुनि० ॥ पंच महाव्रत पाले परवडा, मुक्ति सधे मनरंग ॥ मुनि ॥ वडो ॥५॥ह रिचंद उग्रविहार क्रिया करे, उक्कर तपने रे ना य॥ मुनि ॥ काउस्सग्ग साधे मुनि खट मास ना, उपसर्ग कठिन सहाय ॥ मुनि ॥ वडोम् ॥ ॥६॥ उमासी पण तारालोचनी, उक्कर तपह तपंती ॥ मुनि ॥ आगे सहती उपसर्ग आरि या, आठेही कर्म खपंती ॥ मुनि ॥ वडो॥ ॥७॥ मुनिवर मास उठे हुवे पारणे, आवे अ योध्या एकवार ॥ मुनि ॥ दोष बेतालीश मुनि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) वर टालता, वहोरता नीरस श्राहार ॥ मुनि० ॥ ॥ वडो० ॥ ८ ॥ बमासीनुं साधी पारणुं, दोष र हित विहरति ॥ मुनि० ॥ सरस नीरस गोचरी लेतीयकी, वली बमासीनी खंत ॥ मुनि० ॥ ॥ वडो० ॥ ए ॥ हरिचंद शत्रुंजय जइ संचस्या, काउस्सग्ग रह्या इषिराय ॥ मुनि० ॥ तिहां पण काउस्सग्ग साधवी च्यादरे, यावेही कर्म खपाय ॥ ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १० ॥ वली ते साधवी तारालोचनी, चित्तमें चिंते एम ॥ मुनि० ॥ साधु संताप्या ति पातकथकी, बूटको थाशे रे के म ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ ११ ॥ राजा पण एहिज चिंता करे, समवाय केवल ना ॥ मुनि० ॥ त्रिभु वन बिहुंनो तेज प्रकाशीयो, ऐ ऐ पुण्य प्रमाण ॥ ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १२ ॥ बहु दिन प्रतिबोधी जवि जीवने, मुक्तियें पहोता रे दोय ॥ मुनि० ॥ कनकसुंदर गुण गातां तेहनां, सवि सुखलीला रे होय ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १३ ॥ पंचवरण कु सुमनी वृष्टि थइ, जय जय विविध प्रकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११ ) ॥ मुनि० ॥ दौं दौं वाजीरे गगने झुंडुही, गाजंती धनघोर ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १४ ॥ ॥ ढाल बही ॥ राग केदारो गोडी ॥ सेर सोना की उजली घडी दे चतुर सुजाण ॥ ए देश ॥ ॥ हरिचंदनी चोपाई, ती नीकी नवरंगी ॥ चंगी चोपाइ ॥ सुगुण होवे ते सांजले, उलट आणी अंग ॥ चंगी० ॥ १ ॥ सरस विसाणो श्रावको, पामीजे विण दाम ॥ चं० ॥ मोहन वेली चोपई, नाम तिस्यो परिणाम ॥ चं० ॥ ॥ २ ॥ खाण रतन हीरा तणी, प्रगटी पुण्य प्र माण ॥ चं० ॥ आदर करजो एहने, मुक्ति त णा फल जाण ॥ चं० ॥ ३ ॥ राग बत्रीशे जू जुश्रा, नवि नवि ढाल रसाल ॥ चं० ॥ कंठ वि ना शोने नही, ज्युं नाटक विए ताल ॥ चं० ॥ ॥ ४ ॥ ढाल चतुर म चूकजो, कजो सघ ला जाव ॥ चं० ॥ राग सहित आलापजो, प्र बंध पुण्य प्रजाव ॥ चं० ॥ ५ ॥ मरुधरदेश मही पति, जशवंत सबली हाक ॥ चं० ॥ सोजत स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 115) हेर शोहामणो, नवकोटीनुं नाक // चं० // 6 // नावडगळ गुरु साधुजी, साधु गुणे नंमार // // चं० // शिष्य पटोधर तेहना, शीलवंत सुवि चार // चं० // 7 // उपाध्याय महेशजी, गुरु गौतम अवतार // चं०॥ मुनिवर महोटा माहा जने, आगम ज्ञान अपार // चं॥ // कनक सुंदर शिष्य तेहने, गायो एह प्रबंध // चं० // श्रीहरिचंद नरिंदनो, शांतिनाथ संबंध // चं॥ // ए॥ नवरस नेद जूजुआ, ढाल एगुणचाली श // चं॥ नावन्नेद बहु जातना, विधिशुं वि श्वावीश // चं० // 10 // संवत् शोल सत्ताणुवे, शुभ पद श्रावण मास // चंग // पंचमी तिथि पूरो दूर्ज, श्री हरिचंदनो रास // चं०॥ // 11 // ॥दोहा॥ ॥गाथा साडी सातशें, तिण उपर गतीस // सांजलतां श्रीसंघने, पूगे आश जगीश॥१॥ति श्रीहरिचंद तारालोचनीचरित्रे शीलसत्वाधिकारे पंचमःखंमःसंपूर्णः॥इतिहरिश्चरास समाप्तः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only