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(३१) हित करी वारो॥चेलाने तुमे कहेजो सामी, मत खडशो इणशुं श्रनिरामी॥१२॥ हितकारी फेरी माथें हाथ, नणावजो लघु कुखक साथ ॥ अ कल प्रमाणे सूत्र नणाजो, वेद पूराण वखाण सु णाजो ॥ १३ ॥ मत दूहवशो मत रीसाशो, कु मया करीअविनय मकराशो॥घणुं घणुं तुमने शुं कहीयें, जला बूरा पण जे निर्वहीयें ॥ १४ ॥ महोटा मनमें कोप न आणे, महोटा शत्रु मित्र सम जाणे ॥ तुमेबो तापस दीन दयाल, तुमेडो तापस परम कृपाल ॥१५॥ तुमे बो तापस खीर मुणिंद,तुमे बोतापस दीनदिणंद॥तुमे बो तापस तप साधन्न. तुमे बो देव जिस्या महारे मन्न ॥१६॥ तुमे बो तापस करुणागेह, तुमे डो तापस ब्रह्मा देह ॥ तुमे डो तापस परम पुनीत, तुमे डो तापस अकल अजीत ॥ १७ ॥ में मृगली निरपराध वि राधि, हुं पापी सबलो अपराधि॥श्म कही राजा आघो चाख्यो, मन पांखे मेलीने हाख्यो । ॥ १७॥ पुर्वासा तापसें बोलायो, दोडी राजा
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