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( ३२ )
पाटो आयो । नारी पुत्र दीया तस बेइ, राजा ह रिचंद साथै लेइ ॥ १५ ॥ राजा मनमां गाढो रंज्यो, मननो जरम तिवारे ज्यो । सुंदरि सुत स्वामी ससनेह, सुकृत खेति वुव्यों मेह ॥ २० ॥ jघ्याने पाथरियें तलाइ, श्रमलियाने अमल ख वाइ ॥ मूख्या नरने खीर जिमाइ, तरस्यो नीर पीये सुखदायी ॥२१॥ जमरें लाघ्यो कमलनो वन्न, तिम जलस्युं हरिचंदनुं मन्न ॥ पगपंथे चाल्या प रदेश, श्रव्य उजल वेडि नरेश ॥ २२ ॥ लोक नगरना हाहा करता, उजा मूक्या आंसु करता ॥ कर्म करे ते सत्य विचार सुखने दुःख ते कर्मनी लार ॥ २३ ॥ बीजो खंग थयो संपूर्ण, हरिचंद नृपनो दुःख अंकूरण | वनवासें राजा परवस्यो, सुंदरी सहित गहन संचस्यो ॥ २४ ॥ त्री जे खंग क हिरा अधिकार, कठिन कर्मगति एह विचार ॥ साते ढाल रसाल वखाणी, सुणतां प्रतिबूजे ज त्तम प्राणी ॥ १५ ॥ श्रीजावड गछ कमल दिणंद, तस गुरुश्री मणि रत्नमुणिंद ॥ श्रशित लब्धि अ
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