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(३५) मुक्ति सजीवन दान ॥ सुर नर कर्मे विडंबीयाहो ॥ श्रा० ॥ तोहुँ केहे ग्यान ॥ ५ ॥ श्रागल आवी चालतां हो॥था॥गंगानदी असराल ॥ दूध सरीसो उज्ज्वलो हो ॥ श्रा॥ जल जेहवो सुविशाल ॥ ६ ॥ हंस विराजे पांखती हो ॥ ॥श्रा०॥ नीर हीलोले जाय ॥ शुक बक पंखी सारिका हो ॥ श्रा० ॥ बेग केति कराय॥७॥ तट श्रावीने ऊतस्या हो ॥आ॥ बहुविध पूरित फुःख ॥ बालक सोहग सुंदर हो ॥श्रा०॥ तेहनें लागी नूख ॥॥श्राडोमांमें श्रावटे हो॥श्रा॥ रोवे रीशे सोय ॥ सहेजे डोरू एहवां हो ॥श्रा॥ मरम न जाणे कोय ॥ए॥ यतः ॥ राजा वेश्या यमोवन्हिः ॥ प्राघूर्णो बालयाचकः ॥ परपीडां न जानाति, अष्टमोग्रामकोटकः ॥ १० ॥ ढाल पूर्वली ॥ माय समजावे पुत्रने हो ॥ श्रा॥ रोय म राजकुमार ॥ ढाल प्रथम मुनि वीनवे हो ॥ श्रा० ॥ राग जले केदार ॥ ११॥ गंग विमल दल दंपती हो ॥ श्रा० ॥ श्रास्थान कीयो सुवि
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