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विशामो क्षण क्षण विचें, चाले लील विलास ॥ ॥६॥पुःख म करे गजगामिनि, मृगनयणी मन मांहि ॥ सुख दुःख बेहु सारिखां, निबंध पल टे नांहि ॥७॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग केदारो विरहि मल्हार॥ आज विमल गिरि नेटशुंहो सहीयर, श्रा
दीसर जिनराय ॥ ए देशी ॥ ॥हरिचंद मनमांहिं चिंतवे हो,श्रातम॥कर्म न बूटे कोय॥ःख नवि धरिये सांजलो हो, श्रा तम ॥ कर्म करे तेम होय ॥१॥ दोष न दीजे कोश्ने हो ॥ श्रा० ॥ कर्म विटंबन हार ॥ कर्म रुलावे जीवनें हो ॥श्रा ॥ जवजव फुःख अपा र ॥२॥ कर्म प्रमाणे पामशे हो॥श्रा० ॥ ल खमण बंधव राम ॥ सीता रावण लजशे हो ॥ ॥श्रा०॥ कर्मतणा ए काम ॥३॥ कर्म प्रमाणे नीपजे हो ॥ श्रा० ॥ देत्रे वाव्युं धान ॥ काने खीला गेकीया हो ॥ आ ॥ नवि बूट्या वर्क मान ॥॥ कर्म तणी गति एहवी हो ॥ श्रा॥
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