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________________ (६५) ल ॥॥ वी० ॥ शी॥ वलतोरे विप्र बोल्यो नहीं रे, लाज्यो हृदय मकार ॥वी०॥ धन धन तारा लोचनी रे, शील राख्यु एणी वार ॥१०॥वी॥ ढाल रसाल ग्यारमी रे, वैराडी ए राग वी॥ कनकसुंदर महिमा शीलनो रे, प्रगट्यो जग सोजाग ॥ ११॥ वी० ॥ शी० ॥ ॥दोहा॥ ॥वलतो ब्राह्मण वीनवे, बेहेनी सुणो मुजवा त॥राखो शील नली परे, में तुज परखी मात॥ ॥१॥ ए सघj घर ताहरूं, हुं तुज बंधव जे म ॥ में वचने करी दुहवी, खमजो करजो खे म ॥२॥ सति हटकथी कंपीयो, मत दे मुज ने शाप ॥ त्रिविध पणे खमजो वली, लाग्यो मुजने पाप ॥३॥ पाप कटे तुज नामथी, शी लतणे अधिकार ॥ में तुज मानी माजणी, ब हिन तणे अनुहार ॥४॥श्म अपराध खमा वतो, दीगे ब्राह्मण तेह ॥ सति सुतारा लोच नी, धरे धर्मशुं नेह ॥ ५॥ सुखे रहे दिन वो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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