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________________ (६६) लवे, ध्यान धरे नवकार ॥ फुकर तप करणी करे, शील अखंमित सार ॥६॥ हरिचंद राय तिहां रहे, तापस लाग्या लार ॥ पण राजा चू के नही, सत्य सबल अधिकार ॥७॥ ॥ ढाल बारमी॥राग सोरठ॥ यतणीनी देशी॥ ॥एक दिवस सुतारा राणी, सहजे मन उल ट श्राणी ॥ वली पुरोहितनी प्रोतापी, गई नर ण सरोवर पाणी ॥१॥ पहोती सरोवर अनि राम, तिहां बाग अजे विसराम ॥ शिव निमित्त चंपकनी पांती, लेवा नर यौवन माती ॥२॥ बागमें वीणवा ते आई, हरियो दीयो वेग पठा ६॥ को तोडो रखे वनराश, कालदंम चंमाल री उवाच॥३॥चंमाल तणी ए वाडी, देखो जण जा उघाडी॥श्रावती दीठी पटराणी, हैहै ए जी वन प्राणी ॥४॥ गती जरी उःख समाणी, रो मंचक आंसु खूहाणी ॥ वलतां मन जाय न व लीयो, टलतां पग जाय न टलीयो ॥५॥ वर जंतां न जाए वयणे, निरखंता न जाए नयणे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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