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________________ ( ६७ ) हिडामें दरख न मावे, राणी मन प्रीतम आवे ॥ ६ ॥ वलि वेदन विरहे संतापे, घन नयण घटा र पे | वलि प्रोहितणी समजावे, दुःख म कर दिवे किस्युं पावे ॥ ७॥ धन धर्मी बोले कंता, वालेसर तु गुणवंता || मेलशे दैवतो मिलरयां, दुःख विरह सह निकलश्यां ॥८॥ धन सो दिन संग सुरंगी, मृगा नयणी त्रिया मनरंगी ॥ चंद्र जाए तो कुलचंगी, लहस्यां सुख वास अनंगी || निठ निव निहोरे कीधो, डुजी नारी उलं afa ॥ राणीने घेर लेई आई, सही सुद्ध कर जे सहराइ ॥ १० ॥ कहे ए निकली जासे, चं काल प्रीतमनी पासें ॥ केहने पढी दोष म दे जो, पेहलेथी जतन करेजो ॥ ११ ॥ एहनो दी वो श्राज तमासो, एक दुःख अने वली हासो ॥ शुं घणा वचनशुं कहीयें, राखीयें तो सोहीरा रहीयें ||१२|| बारमी ढाल सोरठ रागे, सुणतां पण मीठी लागे ॥ संपूर्ण खंग कह्यो त्रीजो, रा णीने रखे को पतीजों ॥ १३ ॥ जोतां मति www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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