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॥ दोहा ॥ ॥ काल दंम चंमाल घरे,रहतो इणिपरे राय॥ कार्य कार्य सहुकरे, हरियो नाम कहाय ॥१॥ कर्म कमाईनोगवे,शुन अशुन फल जीव ॥बेह न श्रावे पापनो, त्यां लगि दुःख सदीव ॥२॥ मन मूरखमम मुंफतुं, न मिटे सुख उःख लीह ॥ विण सरज्या मेलो नहीं, ज्यां लगि वांका दीह॥ ॥३॥ मन संवर करि धीर धर, म कर मिल गरी माम ॥ कुण जाणे कबही वसे,उजड खेडा गाम ॥४॥रे मन म करे उरतो, देखी परायु राज ॥ तड फड मरेसी सिंह ज्यु, सुणि श्राव णकी गाज ॥ ५॥ आशा विलुछा माणसां, क दिही मिलणो होय ॥ कादव पामी वरजीयुं, जे उर फटणो न होय ॥६॥ आशा संपें अखय धन, उपकारी जीवंत ॥ पंथि चले देशावरें, व रखां सफल फलंत ॥॥गाहा।। नवरस विलास समये, कंठं गहिऊण मुक्क निस्सासं ॥ सारयणी सो दोहो,तं पुःखं सहए हीयए ॥॥श्लोक॥
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