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________________ (५५) खूट्या, कर्म अग्निश्री को न बूट्या ॥ कर्मे राम पांमव वन वासी, कर्मे सुरपति कष्ट प्रकासी ॥ ॥ १० ॥ कम कुबेरदत्ते मात विलसी, हरिचंद नगर विकाणो काशी।कम रावणे सीतापहारी, कमें माख्यो ना मोरारी॥११॥ कर्मे कौरवनो कुल खोयो, कर्म प्रमाणे समुख विलोयो । कर्म प्रमाणे रिसह जिणंद, पारणुं न लडं जगदा नंद ॥ १२॥ पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधा,कर्म प्र माणे कम फुःख दीधां ॥ कर्मे स्वामी श्रीवर्क मान, बिहुँ उदरें आया उधान ॥ १३॥ एहवो कर्म तणुं परिमाण, कर्म प्रतें नवि चाले प्राणि॥ चंद सूरज नमता न विलंबे, वलि म्लेड जे राहु विटंबे ॥१४॥ एह याठमी ढाल सुणाश, कर्म तणी गति देखो ना॥ मत करशो मनमांहि व डा, दण एक आपणी होय पराश॥ १५ ॥ च उदे चोकडी रावणे हारी, राजा मुंज थयो जी खारी॥ बोडी गयो रणमें नल नारी, कनकसुं दर कहे वात विचारी ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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