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________________ ( २४ ) स ॥ १ ॥ वलतो नृप बोले नही, हास्यो वचन नरिंद ॥ गयो माहाजन फरी ने सहु, एह करम हरिचंद ॥२॥ दिन प हिड्यां प हिडी सहु, लोक माहाजन मि त ॥ पटराणी पहिडी नही, एहिज रूडी रीत ॥३॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग केदारो चंद्रावलानी देश ॥ ॥ ॥ राजा हरिचंद्र वीनवे रे, सुणो तापस मुऊ वात ॥ एकज महिने पशुं रे, लाख महोर विख्या त ॥ १ ॥ लाख महोर आणी ने देशुं, जे न कीया ते काज करेशुं ॥ देशांतर इणिवार चलेशुं, उसिं गण तुमचा थायेशुं ॥ २ ॥जी राजेसरजी रे, हरिचंद राजा साहसी रे विनयी ज्ञानी जाण ॥ तव तेणेही तापसे रे, वचन की यो परिमाण ॥३॥ वचन कीयो प रिमाण जिवारे, चाल्यो श्रीहरिचंद तिवारें ॥ सत्य कर्म मन मांहि विचारे, नारि सुतारा श्राइ लारें ॥ जीजी वनजीजी रे ॥ ४ ॥ जीवन प्राण श्राधार, वा लिम माहरारे ॥ पाय न बोडुं श्राज, प्रीतम ता हरारे ॥ ५ ॥ पायन बोडं ताहरारे, श्रवीश ता हरे साथ ॥ विरह लगार सहू नहीरे, विलगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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