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(२५) प्रीतम हाथ ॥ ६॥ विलगी रही निज प्रीतम हाथें, खामि मयाकरि तेडो साथें ॥ हुँ हजूर र हेशुं दिन रातें, विपत पाडुं नही बीजी वातें ॥ ॥७॥ जी प्रीतमजीजी रे ॥जीप्रीतम आधार, हार हीया तणारे ॥ अंगतणा सिणगार, सलू णा साजणा रे॥७॥सयण सलूणे साहिबेरे, निरखि सवुणी नयण ॥ तब तापस आव्यो ति हारे, बोले एहवां वयण ॥ ए॥ तापस वयण कहे अविचारी,वेगे आणो महोर हमारी॥साथें जाण न देसुं नारी, राजरमणी झकि सहु हारी॥ ॥१०॥जीराजेसर जी रे, जीराजेसर राय ॥ मंत्रि कहे सही रे, परनारि कुण लाग, जावा द्यो न ही रे॥११॥जाण न द्यो परनारिने रे, ए तुम नही आचार ॥ राणा पण दंगे घणो रे, पण न लीये पर नारि ॥ १२ ॥ पण न लीये परनारिने कोश, एह श्रख त्रि किहां नवी हो॥ तापस हीए विमासी जोश, मतिसागर दाखे श्म सोश ॥ ॥ १३ ॥ जीराजेसर जी, जीराजेसर राय ॥ ता
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