________________
श्रीवीतरागायनमः
अथ श्री हरिचंदराजानो रास प्रारंनः
॥दोहा॥ ॥ पास जिनेसर पाय नमी, थंजण पुर थिरवास ॥ जुग जुगमांहें दीपतो, पूरे वांबित आश ॥१॥ अदि लखे कुण एहनी, वर्ष ग्यारे लद ॥ वर्णत पछिम देवता, कीधी पूज प्रत्यद ॥२॥ एंसी सहस वर्ष अचल, सेवा कीधी सार ॥ वासुक विष हरता हरि, प्रनु पाता ल मकार ॥३॥ पछिम महोदधि पाखती, पूज्यो राजा राम ॥ सात मास नव दिवस प्रति, तेहनां सीधां काम ॥४॥ नारायण बहु दिन नम्यो, बार वरस करी पत्त ॥ छारिका दाह जले वशे, प्रगट्यो सायर दत्त ॥ ५॥ कांति न गरी प्रगटीयो, योगी नागार्जुन ॥सेढी तट सीधो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org