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तिहां, सोवन पुरिस रतन्न ॥६॥ वेबु अंतरें जिनवरू, रह्यो विबुझ तरु गूढ ॥ तुरत गया तस देहथी, गाली अढारे कोढ ॥ ७॥ त्रिनु वन पति तारण तरण, खंज नयर अहिगण ॥ सकल मूरति प्रज्जु निरखीया, जीवत जन्म प्र माण ॥ ७ ॥ हुं शरणे आव्यो हवे, अशरण शरण जिणंद ॥ सन्निध्यकारी तुं सदा, मुफ कर परमाणंद ॥ ए ॥ मुक मति बोटी मूढ मति, महोटा गुणशुं मोह ॥ मेरु चढे किम पां गलो, जे अति अधिक सोह ॥ १० ॥ नक्ति शक्ति मुज उपनी, पंखीने जिम पांख ॥ तिम श्रावी सेवक तणे, अंधाने जिम ांख ॥११॥ बोली न जाणे बोबडो, करे तर्कीशुं वाद ॥ श्रा संर्गे जिनर मट्या, तिहां गयो संवाद ॥ १२ ॥ जन्म सफल तो जाणीयें, कहीयें, गुण सत्य वंत ॥ आगें थोडो आउखो, बालस बंघ अ नंत ॥ १३ ॥ धंधो पण बूटे नहिं, क्रोध मो हने काम ॥ कर्म सबल दल काठीया, लेण न ये
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