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(४४) चाख्यो वर नार ॥ तब राजा धसके धरणी ढल्यो, मृतक तणे अनुहार ॥३॥ तव पटराणी गाढी गाबरी, आघो पग न नराय ॥ पाली परवस श्रावी शके नही, वयण न कहेणोरे जाय ॥४॥ ना ॥ प्रीतम सामुरे जोवे पदमणी, बेटो आवे रे लार ॥ बेडे वलग्यो रे रढ मांगी रह्यो, सुण माता सुविचार ॥५॥ ना ॥ साथें ते डोरे मुझने मात जी, न रखें राजा पास ॥ व ति देवरावो रे दाम ते महारा, कहे कुमर रो हिताश्व ॥ ६॥ ना ॥ दश मस वाडा उदरें तें धस्यो, दोहिला गर्लावास ॥ वरस दसां लगे सारे ताहरे, के सारे सुर वास ॥ ७॥ ना ॥ पाला श्रावो फरी एक वारसुं, ब्राह्मण वेद नंमार ॥ तातनणी समजावी द्यो तुमें, दश ह जार दिनार ॥ ॥ ना ॥ ब्राह्मणने मन करु णा उपनी, फिर आयो तत्काल ॥ सुंदर श्रावी तारालोचनी, मूर्गगत नूपाल ॥ ॥ ए ॥ ना॥ राजा बांट्यो ताढा नीरशुं, विंऊणे वीं वाय॥ह
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