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________________ (१६) ॥ १८ ॥ श्लोक ॥ कृपानदी महातीरे, सर्वे धर्मा स्तृणांकुराः ॥ तस्यां शोषमुपेतायां, किंपुनस्ते तु नं दति ॥ १ ॥ सर्वशास्त्रमयी गीता, सर्वदेवमयो हरिः ॥ सर्वतीर्थमयी गंगा, सर्वधर्मोदयापरः ॥२॥ ढाल ॥ जीव दयायें कर ही लीधो रे, मारग चाल्यो कारज सीधो रे ॥ जिहां पंखी कहे तिहां मूकुं रे, ए वचन बे वाम न चूकुं रे ॥ सु० ॥ १७ ॥ पंखी बोल्यो अमृत वाणी रे, जीव दान दीयो वड दानी रे ॥ तुजशुं केम उसींगण थाउं रे, पण एक सूधो मर्म बताऊं रे ॥ सु० ॥ २० ॥ काशी राजाने नेट करेजे रे, लाख टकानी कांग णी लेजे रे || ति कारण तुम पासें श्राण्यो रे, वे करशो आपणो जायो रे ॥ सु० ॥ २१ ॥ वली शुक पंखी साख नरेसी रे, पिंगल जरह तर्क जणेसी रे ॥ लीधो पंखी नृप उबरंगे रे, राजा पूबे निज मन रंगे रे ॥ सु० ॥ २२ ॥ नी ले वरणे शुक नयणे निरख्यो रे, राजा मनमांहे गाढो हरख्यो रे ॥ तीखी चांच चंचल चतुराइ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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