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( १०५ )
घाडत रे ॥ अधर दशन फुनी आप आपने, का म जगाडत रे ॥ हुं० ॥ २ ॥ नृत्य करत फुनी पाय परत है, साकामातुरी रे ॥ कटी तटी देखत कुच पर करधरी, सी श्रतुरी रे ॥ हुं० ॥ ३ ॥ कर जय दिखावे नैन नचावे, तुमकुं मारुंगी रे ॥ मानोगे जो वचन हमारे, प्रेम वधारूंगी रे ॥ ॥ हुं० ॥ ४ ॥ नीर चीर यंजन मर्दन घुसक, ऋषिकुं जांखत रे ॥ विषय महारस मुदरी लीला, क्युं मन राखत रे ॥ हुं० ॥ ५ ॥ साधु महामुनि संवर कीनो, मौन महाव्रत रे ॥ हाव जाव करत बहु त्रीया, कुछ नही जावत रे ॥ हुं० ॥ ६ ॥ मु नि मन मदन पकरी विष जलतें, नेदत नाहीन रे ॥ बारह मेघ त्रीया जर लागी, न भेद तुं पाह नरे ॥ हुं० ॥ ७ ॥ धन धन ब्रह्मचारी वैरागी, टुक नही जीजत रे ॥ हाव जाव नही बाण काम के, तन नही बीजत रे ॥ हुं० ॥ ८ ॥ त्रीजी ढाल कही संपूर्ण, कनक सुंदर मुनिराय रे ॥ में तिनकुं प्रणाम करत हुं, जे साधु न चलाय रे || हुं० ॥ ॥ ॥
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