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धुकर बेठा बाह पसारी॥५॥ काने रवि कुमल फल हले, अंधकार क्षण क्षणमांहे टले ॥ को किल कंठ सरिखो जीण, मणिधर श्याम जुयंगम बेणि॥६॥पीन पयोधरतंबा जिस्या,अमृत कलश बिराजे तिस्या ॥ हंस गयंद अनोपम गेलि, जाणे अनिनव मोहनवेलि ॥७॥अधर प्र वाली हीरा दंत, पावस वीज जिसी ऊलकंत ॥ अधर रंग तंबोल रसाल, सति शील सीता सुवि शाल ॥ ७॥ रूपे रंना लाजी रही, त्रिजुवन नार उपम नह। ॥ देव जगति सहगुरुनी सेव, पतिव्रता धर्म धरे नित्यमेव ॥ ए ॥ राजा राणी वाक्य ॥ गाहा गूढा अरथ अपार, राग रंग गुण गीत प्रचार ॥ बोले चौबोला सुविचार, प्रत्युत्तर आपे तत्काल ॥ १०॥ राज्ञीसवाक्यं ॥ एकनारी अति सुंदर रूप, प्रथविमांहे अधिक अनूप ॥ चतुर तणे मनमांहे तेह, पंच सखीसुं घणो स नेह ॥ ११ ॥ ऊंची चढि नीची उतरे, सुर नर नाग असुर मनहरे॥ चरण घणा पण चाले नही,
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