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________________ (४) श ॥ कुम ॥२॥ ए आंकणी ॥ रयण न गजे रं कने रे, वानरने गले हार ॥ घेली माथे बेडर्बु रे, रहे केती एक वार ॥ कुम ॥३॥ पंख वि हुणी पंखणी रे, कां सरजी किरतार ॥ अधविच राखी एकली रे, है है सरजणहार ॥ कुम ॥४॥ काया गढ मुफ विग्रह्यो रे, वाग्यां विरह निशान॥ घट चढियो मुज घरणणे रे, उडी न जाये रे प्राण ॥ कुम०॥५॥तुं मन रंजन नंदना रे, तुं मुज जीवन प्राण ॥ ऊंची चढी नीची पडी रे, सुंदर पुत्र सुजाण ॥ कुम ॥ ६ ॥ मुखलडे मन मोह तो रे, हसतो करतो हेज ॥ सुंदर नूर किहां ग युं रे, ताहारूं सूरज जेवू तेज ॥ कुम ॥७॥ आडो करीने आवतो रे, हुं लेती उबरंग॥मोदक मीग मागतो रे, रमतो नमतो रंग ॥ कम ॥ ॥७॥ उगे पुत्र उतावला रे, परवरिया परदे श॥ विरह थयो जरतारनो रे, पहोता दुःख अ शेष ॥कुमाए। तुं मुज हार हीया तणो रे, कि रण तपे जिम सूर ॥ उठी मलो हंसी हेजशुं रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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