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________________ (५५) देशा मोकले रे लाल, प्रीतम प्राण आधार रे॥ ॥चं ॥माहरे मन पीयु तुं वस्योरेलाल, जिम चातक जलधार रे॥११॥ चं० ॥ सुं०॥ ब्राह्मण मृजने वेश् चल्यो रे लाल, जीत तणे अंतराल रें ॥ चं॥ध्रसके\ धरणी ढली रे लाल, मूळणी तत्काल रे॥१२॥ चं० ॥ सुंग ॥ विधुर मन थयो माहरूं रे लाल, कंतडो न दीसे केथ रे॥ चं० ॥ नीर बांटी चित्त वालियुं रे लाल, उवि बेठी थश्ते थ रे ॥ १३॥ चं ॥ सुं० ॥ वलि चित्त चेतन आवियो रे लाल, हा मुफ वेची नाथ रे॥ चं०॥ विरहे विलाप करे इस्या रे लाल, श्रावी बीजाने हाथ रे ॥ १४ ॥ चं० ॥ सुंग ॥ ब्राह्मण घरे पो हती सती रे लाल, रहती शील अखंग रे॥॥ तुझ्ने एम कहावीयो रे लाल, पीउ फुःख म कर प्रचंम रे ॥ १५ ॥ चं० ॥ सुंग ॥ साहसधीर प्रा णांतमे रे लाल, बंधन बांध्यो ज्यु कोय रे ॥चं॥ लाख महोर विधे पूरजोरे लाल, जिम मन निर्जय होय रे ॥ १६ ॥ चं० ॥ सुं ॥ ढाल सुरंगी सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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