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________________ ( ४८ ) व्रत लइ कापीयां रे, के मारी जूं लीख ॥ के कूडां व्रतमें कीयां रे, के में जांजी दीख ॥ १३ ॥ है० ॥ के सुत शोक तथा दण्या रे, के में लीधी लांच ॥ के खट दरसण पोषिया रे, पर मारगमांहिं राच ॥ ॥ १४ ॥ ० ॥ के पासीगर हुं थयो रे, के में पाडी वाट ॥ के में गुरु जन लोपीया रे, के पाड्या घर हाट ॥ १५ ॥ ० ॥ के में साप विणासी या रे, बिमें रेड्यो नीर ॥ माढ बंधावी जीव नी रे; ते सहु सहे शरीर ॥ १६ ॥ ० ॥ पाप अघोर कीयां इस्यां रे, कहेतां न यावे बेह ॥ आज उदय श्राव्या तिके रे, जोगवे प्राणी ते ॥ ॥ १७ ॥ धि कमाई माहरी रे, धिग् जीव्यो मुफ आज || नारि विना बेटा विना रे, जीव्यां केही काज ॥ १८ ॥ है० ॥ कुण जाणे थाशे किस्युं रे, पद संपद होय ॥ कृत्य कमाइ आपणी रे, होणहारते होय ॥ १५ ॥ ० ॥ बवी ढाल पूरी य रे, कनक सुंदर मुनिराय ॥ विवरी शु वखातां रे, हिडे गर्व न थाय ॥ २० ॥ | है | || Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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