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( ५ ) पार न कोई, जंबुद्वीप तणो विधि जोइ ॥ सो० ॥ लाख जोयण जंबू परिमाणो, वृत्ताकारें तेह व खाणो ॥ ४ ॥ सो० ॥ क्षेत्र जरत तस जीतर सोहे, पंच सया जोयण मन मोहे | सो० ॥ ब कला ने जोयण बबीसें, श्रागममांदे कह्यो जगदीशें ॥ ५ ॥ सो० ॥ देश बत्रीश सहस नर नारी, जल थल मानव जरत मऊारी ॥ सो० ॥ आज देश साडा पचवीश, धर्म कर्म सेवा जगदीश ॥ ६ ॥ सो० ॥ अवर देशमां धर्म न ध्यान, देव न पूजा दान न मान ॥ सो० ॥ सांकेत देश अयोध्या चंगी, नव बार जोयण नवरंगी ॥ ७ ॥ सो० ॥ सहस त्र्यासी त्रण सय पचवीश, गाम एहनां कह्यां जगदीश ॥ सो० ॥ सोहे देवपुरी अनुमानी, राजा हरिचंदनी राज धानी ॥ ८ ॥ सो० ॥ नगरतणो विस्तार कहेशु, कनकसुंदर कहे सुजश लहेशुं ॥ सो० ॥ ढाल संपूर्ण कीधी पहेली, कीर्त्ति प्रगट थई जग व हेली ॥ ए ॥ सो० ॥
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