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(१) रागकेदारामांकही, राजा चोथी ढाल रसाल।कन कसुंदर मुनिवीनवे,राजा शुकने मंगल माल॥१३॥
॥ दोहा ॥ ॥ तत्क्षण पंखी श्याम धूम, धडधड पड्यो ध गन्न ॥ पंख समारी पंखीयो, उडी पड्यो अगन्न ॥१॥जिण वेला शुक पंखीये, कीनो कंपा पात॥ शीतल जल परें कमल दल, थर असंचव वात ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ राग परजीयो, जूठे
अगमगति पुण्यनी रे॥ ए देशी॥ ॥ए अधिकार देखी तिहां रे, हरख्यो नृप तत्काल रे॥ हरिचंदने तेडी कहे रे, तुं महोटो नूपाल रे॥१॥ कर्म कमाइ हरिचंद नोगवे रे, सुख दुःख सरज्यां होय रे ॥ कर्म ॥ ए श्रांकणी ॥ राय पसाय करे तिहां रे, दी तुज श्राधो राज रे ॥ वलतो हरिचंद वीनवे रे, रा जथी नथी को काज रे ॥ कर्म ॥२॥ राजा कहे महोटो करुं रे, दलं तुऊ माहारो देश रे॥
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