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(२) हुं तुज श्रालंबन ग्रही रे, करशुंनगर नरेश रे॥ ॥कर्म ॥३॥ न्हाना महोटा कुण करे रे, कर्म तणे वश होय रे ॥ हुँ सेवक चंमालनो रे, हरि चंद हुँ नहिं कोय रे॥कर्म ॥४॥सती ग घरे विप्रने रे, मन धरि अधिक आनंद रे॥साथ गयो चंभालने रे, श्रीहरिचंद नरिंद रे॥ कर्म ॥५॥ लांबन उतस्यो सती तणो रे, सत्य शीयल सुपसा य रे॥ श्रीनवकार सदा जपे रे, प्रणमु तेहना पाय रे ॥ कर्म ॥६॥ सबल सुदृढ राजा साह सी रे, मंदरगिरि जेम धीर रे॥अचल अनंगरा जा ध्रुव जिस्यो रे, सायर जेम गंन्नीर रे॥कर्म॥ ॥७॥राज गयो विरहो थयो रे, को करे श्रा पघात रे ॥ विष खाईने जति मरे रे, कोई करे ऊपापात रे॥ कर्म॥७॥को थाये घहेलो बा वरो रे, को थाये योगी अवधूत रे ॥ पण सत्य राखण कारणे रे, अमिग रह्यो अनुत रे॥कर्म॥ ॥णा सेज सुखासण बेसतां रे, सोवन खाट पलंग रे॥ते राजा नदीयां वसे रे, आज उघाडे अंगरे
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