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वर टालता, वहोरता नीरस श्राहार ॥ मुनि० ॥ ॥ वडो० ॥ ८ ॥ बमासीनुं साधी पारणुं, दोष र हित विहरति ॥ मुनि० ॥ सरस नीरस गोचरी लेतीयकी, वली बमासीनी खंत ॥ मुनि० ॥ ॥ वडो० ॥ ए ॥ हरिचंद शत्रुंजय जइ संचस्या, काउस्सग्ग रह्या इषिराय ॥ मुनि० ॥ तिहां पण काउस्सग्ग साधवी च्यादरे, यावेही कर्म खपाय ॥ ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १० ॥ वली ते साधवी तारालोचनी, चित्तमें चिंते एम ॥ मुनि० ॥ साधु संताप्या ति पातकथकी, बूटको थाशे रे के म ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ ११ ॥ राजा पण एहिज चिंता करे, समवाय केवल ना ॥ मुनि० ॥ त्रिभु वन बिहुंनो तेज प्रकाशीयो, ऐ ऐ पुण्य प्रमाण ॥ ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १२ ॥ बहु दिन प्रतिबोधी जवि जीवने, मुक्तियें पहोता रे दोय ॥ मुनि० ॥ कनकसुंदर गुण गातां तेहनां, सवि सुखलीला रे होय ॥ मुनि० ॥ वडो० ॥ १३ ॥ पंचवरण कु सुमनी वृष्टि थइ, जय जय विविध प्रकार ॥
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