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(१४) ( दोहा ) ॥ एक दिवस हरिचंद गयो, वन क्रीडा बहु सेन साधु एक मोटो महंत, बेठो दी वो तेण ॥ १ ॥ राजा पग प्रणमी करी, बेठो मुनिवर पास ॥ सा धु सुणावे देशना, हरिचंद सुणे उल्लास ॥ २ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ रागकाफी हुसेनी ॥ || निंदी लोयणा ॥ ए देशी ॥
॥ दुख सागर संसार ए, सायर जव जारि लाल ॥ चतुरनर चेतियें ॥ काम क्रोध मद लोन ए, ड खके अधिकारी लाल ॥ १ ॥ च० ॥ मोह मि थ्यात न राचीयें, जीउ जोइ विमासी लाल ॥ ॥ च० ॥ लाख चोरांशी जीउरा, जमे योनि म जारी लाल ॥ २ ॥ च० ॥ दान शील तप जा वना, ए नावे निबंधी लाल ॥ च० ॥ नवसाग रके पारकू, पामे एह प्रबंधी लाल ॥ ३ ॥ च० ॥ देव एक अरिहंत है, साधु सुगुरु सूधा लाल ॥ च ॥ केवल धर्म प्रकाशिया, नूपति प्रतिबुद्धा
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