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________________ (६०) ॥ ढाल दशमी ॥ राग वसंत ॥ सुमति जिणंद जूहारीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे राणी ब्राह्मण घरे,रहेती फुःख अपा रो जी॥ श्रीपरमेश्वर ध्यावती, समरंती नवका रोजी ॥१॥शील सुरंगी चूनडी, सोहे तन श णगारोजी॥टीकाकजाल परिहस्या,सरसतज्यो आहारो जी ॥२॥ हार तज्यो काया तणो, मेख लनो ऊमकारो जी॥ नवो कंचुक पण परिहस्यो, ज्यां न मिले जरतारो जी॥३॥शी॥ बोड्या नेउर वाजणा,कर कंकण न सुहायो जी ॥तिलक तज्यो वली बहिरखो, हुलडी कंठ रहायो जी॥ ॥४॥शी० ॥ स्नान मजान नूखण तज्या, कुं मल युगल कपोलो जी ॥ राख्यां मंगलिक का रणे, चीर तज्यां रंगरोलो जी ॥५॥ शी० ॥ काथों पानसोपरडी, पीउ विण रंग न लागे जी ॥ मेंदी कुंकु कमकमा, अंगे अग्नि ज्युं लागे जी॥ ॥६॥शी० ॥ दर्पण दर्शन मुख तणो, राहु ग्रहे मुख चंदोजी ॥ चंद किरण चंदनविना दावानल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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