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( १७ )
म ॥ रति परति हास्या विना, नरके नही मुक ठाम ॥ २ ॥ अपाराधि मुऊ सारिखो, श्रवर नही जग कोय ॥ कर्म सबल मुकिं शिर चढयुं, किम निस्तारो होय ॥ ३ ॥
॥ ढाल बीजी ॥ राग गोडी ॥ मनज मरारे ॥ ए देश ॥
॥ राजा हरिश्चंद्र चिंतवे, मे कीधो रे ॥ मारी बला बाल, पाप में लीधो रे । हुं अपराधी पापियो. में० ॥ जन्म थयो विसराल ॥ १ ॥ पा० ॥ हिरण एकलो विलविले ॥ में० ॥ देशे मोहे शाप ॥ पा० ॥ जे गति ए बिहुं जीवनी ॥ में० ॥ सो गति करशुं आप || पा० ॥ २ ॥ तापस खायो दो डतो ॥ में० ॥ हरणी मारी केण ॥ पा० ॥ जस्म करुं नरके धरुं ॥ मे० ॥ विंधी मृगली जेण ॥ ॥ पा० ॥ ३ ॥ हरिश्चंद्र पायलागी कहे ॥ में० ॥ सबलुं पाप अघोर ॥ पा० ॥ जे विध दाखो ते करूं ॥ में० ॥ केहो कीजें सोर ॥ ४ ॥ पा० ॥ धूजे राजा धडहडे ॥ मे० ॥ हाहाकरे हरिश्चंद्र ||
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