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________________ ( १२ ) जल काढ्यो जिन मति ॥ चंपापोल उघाडी जिणे प्रह ऊठी प्रणमीजें ति ॥ २२ ॥ ब्राह्मी चंदनवाला मती, इत्यादिक में शोले सती ॥ शि वपुर पद पाम्युं निराम पाप जाये समरंतां नाम ॥ २८ ॥ सूधो त्रिविध पांलंता शील, शिव पद विहड लहीयें लील ॥ जंबुस्वामीने या Sकुमार, कायवन्नो धन्नो अणगार ॥ २ ॥ बार कोडी धन विलस्यो जेण, मुगति पुहुतो श्रीनंद पेण ॥ कूड कपटि लडवारी लबाड, ते नारद ऋषि पाम्यो पार ॥ ३० ॥ तप विए शिव पुर लही नहीं, तप विष कर्म न बूटे कहीं ॥ जुवो हरिकेशी चंगाल, दृढप्रहारी पापी विकराल ॥ ॥ ३१ ॥ तप तपीने निर्मल थयो, कर्म खपावी मुगतें गयो || जाव विना पण मुगति न होय, नाव समोवड धर्म न कोय ॥ ३२ ॥ यतः ॥ दानेन प्राप्यते लक्ष्मी, शीलेन प्राप्यतेयशः ॥ तप शादीयते कर्म, जावेन मोक्षसंपदः ॥ ३३ ॥ चो पाइ ॥ वीरवंदण दर्डर मन रंग, जातां चांप्योच Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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