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(३७) ॥ ढाल त्रीजी ॥श्रहो करमर वरसे मेहके
जीजे चुंदडी रे केली ॥ए देशी ॥ ॥ अहो तिण अवसर तिहां एक के, श्रावी मोकरी रे के॥ श्रावी॥मोदक जरीयो माट के, संबल शिर धरी रे के॥ सं०॥धूजें कंपे शरीर के, नजर नही तिसी रे के ॥ नि॥ ओढण धवलो वेश के, देवी हुए जिसीरे के॥दे॥१॥मुखे एहवी वाणि के, ते देवी वदे रे के ॥ ते ॥ अयोध्यानो पंथके, कोश्क दाखवेरे के ॥को०॥ देखावे को इमार्ग के, मावो जीमणो रे के ॥ मा॥ एह करे उपगार के, खेचं तस नामणोरे के॥खे ॥२॥ उठ्यो श्रीहरिचंदके,बोल्यो श्रावीने रे के॥बो॥ कर ग्रही आणी तास के, पंथ बतावीने रे के॥६॥ राजा हरीचंद पास के, बेठी मोकरी रे के॥॥ धरती नजर निवाड के, जोवे हित धरी रे के ॥ जो ॥३॥रे बेटा हरिचंदके, क्युं बेठगे शहां रे के॥क्यु॥वहु सुतारा नारि के, ते पण ने किहां रे के ॥ ते ॥ ए बेठी मुज पूठ के, निरखो मात
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