Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 94
________________ ॥१॥ कालदंग आयो तिसे, क्रोधे कालचं माल ॥ वचन कहे हरिचंदने, वक्रति अति वि कराल ॥२॥ रे हरिया अति वेगशुं,मृतक वस्त्र लश् आव ॥ महोर एक मशाणनी,तरतथी जश्ने लाव ॥३॥ चिंतातुर हरिचंद थयो, पुत्र चीरने काज ॥ निश्चे लीधा जोश्य,गयो तिहां नर राज ॥४॥ कुमर मुठ केम कामिनी, कहो ते सकल विचार ॥ वाडीमा रमवा गयो,सर्प मस्यो निरधा र ॥५॥ हाहा हरिचंद चिंतवे, विषम कर्म गति एह ॥ फुःख कोण जाणे जे थयो, कहेवा लागो तेह ॥६॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग सारंग महार ॥ नाहली ये म जाये गोरी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ राजा हरिचंद वीनवे, राणी वस्त्र कुमरना आपो॥गरज अमारे एहनी, राणी बीजीरे वात म थापो॥१॥ कामिनी द्यो रे कपडांकुमरनां॥ अवसर एहवो रे आज ॥श्राजनो दाहाडो रे सुं दर एहवो ॥ कहेतां आवे ने लाज ॥ का०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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