Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 109
________________ (१७) कमें विटंबीया, चित्त विचारि जोय ॥कर्मा॥ रे मन कर्म विटंबना, मत आणो रोष ॥ कर्म क मार प्रमाण ते, केहनो नही दोष ॥ कर्म ॥ ॥३॥ परख देतां सोहिनु, सविहुनी रीत ॥ आपने सहेतां दोहिबुं, नवी सूधी नीत॥कर्म॥ ॥४॥ परने पीडा जे करे, नवी प्रजे न्याव ॥ संकट पामे साधु ज्युं, अन्याय प्रत्नाव ॥कर्म॥ ॥५॥ इम सुणी राजा उठीयो, आव्यो तत्का ल ॥ जोडाव्या बेहु जती, चमक्यो नूपाल ॥ ॥ कर्म ॥ ६॥ पायलागी प्रणिपत्य करे, हुं पा पी पुष्ट ॥ ऋषि मुफ मिठामि उकडं, था संतु ॥ कर्मः ॥ ७॥ राणी पण शंकी घj, मन चिंते एम ॥ ए महोटा अपराधथी, हूं बूटीस केम ॥ कर्म०॥ ॥ समकित व्रत बेहु श्रादरे, नागो मिथ्यात्व ॥ पाप आलोचे आपणां, त्रिहुं विध विख्यात ॥ कर्म ॥ ए॥ ते राणी तारा लोचनी, तुं ते हरिचंद ॥ साधु संताप्या तें जी के, पाया फुःख दंग ॥ कर्मः ॥ १० ॥ साधु मरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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