Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 96
________________ (ए) ॥ दोहा ॥ ॥ श्रीहरिचंद महिपति,साहस वंत अनंत ॥ कपडा माग्यां कुमरनां, बोली वाणी निरंत ॥१॥ सुरवाणी बोल्यो इसी, धन धन हरिचंद राय ॥ तुज सम त्रिजुवन को नही,नर किन्नर सुर राय ॥२॥ कुसुम वृष्टि हुई तिहां, वाग्यां जय निशा न ॥ देव कहे जय जय शब्द, पाम्या परम नि धान ॥३॥ सुर निज माया फेरवी, सना मांहे शिरताज ॥ण विधे बेगे तखत, नयरी अयो ध्या राज ॥४॥ ॥ ढाल दशमी ॥ राग खंनायती ॥ तारे कोडेरे ___ वैदरजी परणे कुमररे ॥ ए देशी ॥ __॥ हवे हरिचंद महीपती रे, नगर अयोध्या राजो रे॥राणो राण दीवानमें रे,आप बिराजे श्रा जोरे॥१॥राजनोगवे हरिचंद, इणीपरे आपणो रे॥नगरी कौशल्या आनंद, उत्साह ह घणो रे ॥ राज ॥ ए आंकणी ॥ चारे दिशें चामर ढले रे, राजा प्रजा मन मोहे रे ॥रा ॥२॥ केश्क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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