Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 100
________________ (UG) दिन दीपतो, लाला अविचल पाले राज ॥ जीहो सुणी हरिचंद मन रंजीयो, लाला देव तणां ए काज ॥ मही० ॥ ६ ॥ जीहो देव गयो देवलोक में, लाला दाखी सघली वात ॥जी हो डें वखाण्यो तेहवो, लाला दीठो धरणीनाथ ॥ मही० ॥ ७ ॥ जीहो अग्यारमी ढाल कही जली, लाला कनकसुं दर मुनिराय || जी हो सांजलतां सुख उपजे, लाला आनंद अंग न माय ॥ मही० ॥८ ॥ जी हो जावडगछें राजीयो, लाला श्रीमणिरत्न मुणिंद ॥ जीहो अनंतकला उवायजी, लाला निजगन्न मांदे चंद ॥ मही || || जी हो तस पद कमल प्रसा दथी, लाला विचल बुद्धि अपार ॥ जीहो कन कसुंदर मुनि वीनवे, लाला चतुर्विध संघ जयका र ॥ मही० ॥ १० ॥ जी हो चोथो खंम सोहाम गो, लाला नवरस सरस विचार ॥ जी हो विजत्स जय करुणामयी, लाला रौद्र ने शांत प्रचार ॥ ॥ मही० ॥ ११ ॥ इति चतुर्थ खंमः समाप्तः ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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