Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ (६४) जांज्यो न लाजे तेहावी॥ सूरज पलटे उगतो रे, नियम न पलटे एह ॥३॥ वी० ॥ शी० ॥ सो ने श्याम लागे नही रे, रयण न कांखो होय ॥ ॥ वी० ॥ विषधर चंदन वींटीयो रे,वास न मूके तोय ॥४॥ वी० ॥ शी॥ रांधण इंधण हुँ क रूं रे, कहोतो आणुं नीर ॥ वी० ॥ कहोतो वा सीएं करूं आंगणे रे, व्रत न खंडं मोरा वीर ॥ ॥५॥ वी० ॥ शी० ॥ एहवां रे वचन उच्चारती रे, कां न पड्यो श्राकाश ॥ वी० ॥ कां न मुश्त काल हूरे, न हुओ प्राण विणास ॥६॥ वी०॥ ॥शी ॥ तुं मुज बंधव धर्मनो रे,तुं मुज पिताने गम ॥वी० ॥ जो तुनलु चाहे आपणुं रे, ए हवं मत दाखे नाम ॥ ॥ वी० ॥ शी० ॥ ए धिक् करणी ताहरी रे, ए धिक् तुज आचार ॥ वी० ॥ वारु त्रिवाडी ताहरो माहाजनोरे, षट कर्म तुजधिःकार ॥॥वीशी॥ जो तुं करी स हठ एहनो रे,तो मरसुं एकताल ॥वी॥ सां जली वचन सतीतणां रे,विप्र शिर पडी वज्रता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114