Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 73
________________ (७१) वार ॥ आमा पडदा बांधीया रे, तिल घृत होम अपारो रे ॥ कर्म॥७॥ सति सुतारा लोचनी रे,करी माकिणनो वेश॥हाथ बुरी रुछिरें नरीरे, आणी पास नरेसो रे ॥ कर्म॥७॥ तेडाव्यो राजा तिहारे,कालममचंमाल॥हरियो पणसाथें श्रो रे, दीसंतो विकरालो रे ॥ कर्म० ॥ ए॥ राय कहे चंमालने रे,मुंमो एहनो शिश॥ खर च डावी सूली धरो रे, जय जय तुं जगदीशो रे ॥ ॥ कर्म०॥ १०॥ कालदंग हरिया प्रते रे, हुकम कीयो अविनीत, ए माकणने जालीने रे, माथो मुंमि तुरंतो रे ॥ कर्मः ॥ ११॥ एह तो माहारी नारी रे,सतीय शिरोमणी सार ॥ पापी पैशून्य विचें पड़ी रे, कर्म नडिया निरधारो रे ॥कर्मा ॥१॥ चंडजाणनी नंदनी रे, अबला नारी अ नाथ ॥ सती तणो शिर मुंमता रे, किम वहेमा हारा हाथो रे ॥ कर्म ॥ १३ ॥ तदपि हरिये मुख हाजणी रे, वचन की, परिमाण ॥ काम एह चांमालनुं रे,में करवो निरवाणो रे ॥कर्म॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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