Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५) कीधो अधिक असूर ॥ कुम० ॥ १० ॥ है है वज्र माहारो हीयो रे, परथी परचम॥ धरणी शरणे सुत पोढतां रे, न हुवो खंमो रे खंग॥ ॥कुम ॥११॥ तुं मुज जीवन जीवनो रे, निराधार आधार ॥ अंधानी जेम लाकडी रे, तुं कुल थंन कुमार ॥ कुम० ॥ १५ ॥ नयण कमलदल न्हा नडां रे, कोम रह्या तुज केड ॥ आंख तणी बिंदी जिस्यो रे, वसति उजड वेड ॥ कुम ॥१३॥ हुँ उर्जागिणी जाउं किहां रे, फुःख नरपूर प्र काश ॥ चं सूर्य त्रूटी पड्या रे, बटकी पड्यो रे आकाश ॥कुम॥१४॥त्रण्य नुवन नेलां थयां रे, धरणी हु निराधार ॥ तुं मुझने मूकी गयो रे, प्राणाधार कुमार ॥ कुम ॥१५॥णी परें बहु उखें जूरती रे, अबला हुरे अश्वास ॥ गाढे खरें रोई रही रे, नाखी रही रे निश्वास ॥ ॥ कुम० ॥ १६ ॥ दिवस निगमगुं किणी परे रे, अबला हुरे अचेत॥ विरह लहेरी वागी घणुं रे, है है मोहनी हेत ॥ कुम० ॥ १७ ॥ सुणी राजा
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