Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 74
________________ (१२) ॥ १४॥ बीजी ढाल पूरी कही रे, श्राशा सिंधु लाख ॥ हियडो नृपनो कल कले रे, जिम सू रज वैशाखो रे ॥ कर्मः ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥णे अवसर देशांतरी,आयो एक नृपपास। करी सुपंखी नेट', बोले वचन विकाश ॥१॥ एक वचन नृपर्नु हुवं, दोय वचन वलि धीर ॥ त्रिहुं वचने कारज तणी, कण नवि होवे धीर ॥ ढाल त्रीजी राग केदारो गोडी ॥ सुण मोरी सजनी रजनी न जावे रे ॥ ए देशी ॥ ॥सुण राजेसर वात हमारी रे, मुजने सबली श्राश तुमारी रे॥साचो दाखं वचन विचारीरे, कूड न बोर्बु राज कुवारी रे ॥ सु॥१॥ जाति टुं ब्राह्मण निर्धन फुःखीयो रे, माया विण नर नहि सुखीयो रे ॥माया विण निःस्वारथ ना रीरे, नीकली जाये स्वछंदा चारी रे॥सु० ॥२॥ मान न दीये को विण माया रे, पीडे सजन कुटुंब सखाया रे ॥ सुख महेल न होये गज घो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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