Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ ( ७३ ) डा रे, पूगे नहि मनोरथ कोडा रे ॥ सु० ॥ ३ ॥ माया विण निंद न आवे रे, मृग नयणी पण निं द निवारे रे ॥ प्रीतम प्राणी विना धन पहिडेरे, वन पुत्र कलत्र घणुं विहडे रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ तिए कारण मुऊ नारि संतापे रे, जइ परदेश ध न कांइ न व्यावे रे | यालयाने लखमी किहाथी रे, वि उद्यमे धन मिलतुं नथी रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ हाथ पग जांजी जे रहे बेठा रे, ते नर न्यायें जा णो देवा रे ॥ वचन पडुत्तर देवा शूरो रे, गीत जाषित पंदित पूरो रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ विदेशे जश् विद्या चलावो रे, देश जला बे मोहन मलवो रे ॥ मालवे जश्ने रहे जे पीयुडा रे, लोक जलां बे तिहांनां रूडां रे ॥ सु० ॥ ७ ॥ द्रव्य उपजावी वहेला जो रे, घणा नगरनां शालु लाजो रे ॥ वाडी तुमारी हरि फरि जोती रे, मुजनें आ जो गजने मोती रे ॥ सु०॥ ॥ सुंदर जांतिनुं श्रा जो रूडो रे, चंद्र वदनीने योग्य जे चूडो रे ॥ प्राण वल्लन वीनति अवधारो रे, नकवेसण लां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114