Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 55
________________ (५३) तमी रे लाल, गाथा शोले एह रे ॥ चं० ॥ कनकसुंदर कहे सांजलो रे लाल, हवे आगल थयुं जेह रे ॥ १७ ॥ चं० ॥ सुं॥ ॥दोहा॥ ॥राजा हरिचंद साहसी, उठ्यो थयोप्रजात॥ राणी तारालोचनी, नली कह| ए वात ॥१॥ सोंपी सागर शेग्ने,महोरसहसएकवीश ॥राजा रण मांहे गयो, नदि तीर अवनीश ॥२॥ बेगे तरुवर वासतले, बोडयुं मूल सरूप ॥ अंग वि लेपण धूलनो, निकुक रूप सरूप ॥३॥ ॥ ढाल आग्मी ॥ राग केदारो गोडी ॥ कु मरी जाणुं कारज सीधुं ॥ ए देशी ॥ ॥एक चंमाल तिहां आयो, राजा हरिचंदे बो लायो॥ करी लंगोटी करमें लाठी, बोले वचन वाणी पण काठी ॥१॥ काल रूप को कलकलतो, गालि देतो बलतो उबलतो ॥ धर्म तणी मति कीधी पाठी, जाल ग्रहिने आणी माजी ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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